________________
२७६
णमोकार ग्रंथ
दो वर्ष । केवल ज्ञान तिथि - पौष कृष्ण चोदश । केवलज्ञान समय - अपरान्ह काल । केवल ज्ञान स्थान - मनोहर वन । समवशरण का प्रमाण - साढ़े सात योजन । गणधर संख्या--८१ । मुख्य गणधर का नामनागार । वादियों की संख्या - ५७००। चौदह पूर्व के पाठी -- चौदह सौ । आचारांग सूत्र के पाठी शिष्य मुनि - ५६२०० | अवधिज्ञानी मुनियों की संख्या सात हजार दो सौ । केवल शानियों की संख्या - सात हजार | दिक्रिया ऋद्धि धारी मुनियों की संख्या एक हजार दो सौ मनःपर्षय ज्ञानी मुनियों की संख्यासात हजार पाँच सौ | वादित्र ऋद्धि धारी मुनियों की संख्या नौ हजार सात सौ समस्त मुनियों की संख्या एक लाख । श्राविकाओं की संख्या ३५००००। मुख्य भायिका का नाम सुयशा श्रावकों की संख्या दो लाख । श्राविकाओं की संख्या -चार लाख । समवशरण काल दो वर्ष कम २५००० पूर्व । मोक्ष जाने के लिये चौदह दिन पहले समवशरण विघटा निर्वाण तिथि- आश्विन शुक्ल ष्टमी । निर्वाण नक्षत्र - पूर्वाषाढ़ मोक्ष जाने का समय- अपरान्ह । मोक्ष जाने के समय का आसन - कायोत्सर्ग । मोक्षस्थान--- सम्मेद शिखर ( तबर कूट ) । भगवान के मुक्ति गमन के समय एक हजार मुनि सम्प मोक्ष गए। समवशरण से समस्त ५०६०० मुनि मोक्ष गए। इनके तीर्थ में चौरासी केवली हुए पश्चात् आधापत्य पर्यंत चतुविध संघ का सद्भाव होने से धर्म का प्रभाव रहा। जब श्री श्रेयांसनाथ भगवान का जन्म हुआ तव पुनः धर्म का प्रचार हुआ।
1
इति ।
श्रथ श्री श्रेयस नाथ तीर्थकरस्य विवरण प्रारम्भ:
श्री शीतल नाथ भगवान के निर्वाण होने के अन्तर सौ सागर ६६२०००० वर्ष कम एक कोडि सागर के बाद श्री श्रेयांस नाथ भगवान ने जन्म लिया। इनका पहला भव - अच्युत नामक सोलहवां स्वर्गं । जन्म स्थान - सिंहपुरी (काशी) । पिता नाम - श्री विष्णु राय माता का नाम - विष्णु श्री । वर्श – इक्ष्वाकु | गर्भतिथि— ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी जन्म तिथि - फाल्गुन कृष्णा ११ । जन्म नक्षत्रश्रवण | शरीर का वर्ण - सुवर्ण सम चिन्ह - गैंडा । शरीर प्रमाण- प्रस्सी धनुष । ग्रायु प्रमाणचौरासी लाख वर्ष । कुमार काल - २१ लाख वर्ष राज्य काल - ४२ लाख वर्ष पाणिग्रहण किया । समकालीन प्रधान राजा का नाम- त्रिपृष्ट वासुदेव । दीक्षा तिथि फाल्गुन कृष्णा ११ । भगवान के तप कल्याणक के गमन के समय की पालकी का नाम - विमल प्रभा । भगवान के साथ दीक्षा लेने वाले राजाओं की संख्या - एक हजार। दीक्षा वृक्ष - तिंदुक वृक्ष । तपोवन - मनोहर वन ( सिंहपुरी ) । वैराग्य का कारण - वसन्त ऋतु में परिवर्तन का देखना । दीक्षा समय-- प्रपरान्ह । दोसा लेने से एक बेला करने के पश्चात् प्रथम पारणा किया। नाम नगर जहां प्रथम पारणा किया- सिद्धार्थ पुर ( मिथुलापुर ) । प्रथम श्राहार दाता का नाम सुनन्दराय । तपश्चरण काल- दो वर्ष केवल ज्ञान तिथि - माघ कृष्णा ३० | केवल ज्ञान स्थान - मनोहर वन । केवल ज्ञान का समय -- अपरान्ह काल । समवशरण का प्रमाणसात योजन । गणधर संख्या- ७७ । मुख्य गणधर का नाम - कुंथू वादियों की संख्या पाँच हजार । चौदह पूर्व के पाठी - १३०० । अचारांग सूत्र के पाठी शिष्य मुनि - ३८४०० । अवधिज्ञानी मुनियों की संख्या – ६००० | केवल ज्ञानियों की संख्या - ६५०० विक्रिया ऋद्धि घारी मुनियों की संख्या-११००० | मन:पर्ययज्ञानी मुनियों की संख्या -छः हजार । वादित्र ऋद्धिघारी मुनियों की संख्या-पांच हजार । समस्त मुनियों की संख्या - ८००००। ग्रायिकाओं की संख्या -- एक लाख बीस हजार । मुख्य प्रायिका का नाम - धारिणी । श्रावकों की संख्या - दो लाख । श्राविकाओं की संख्या - चार लाख । समवशरण काल - दो वर्ष कम २१००००० वर्ष । मोक्ष जाने के चौदह दिन पहले समवशरण विघटा ।