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नमोकार ग्रंथ
विघटा। निर्वाण तिथि-फाल्गुन ७ । मोक्ष जाने का समय-पूर्वान्ह। मोक्ष जाने के समय का पालनकायोत्सर्ग। मोक्ष स्थान-प्रभास कूट सम्मेद शिखर । भगवान् के मुक्तिगमन के समय १००० मुनि साथ भोक्ष गये। समवशरण से समस्त २३५६०० मुनि मोक्ष गये । इनके तीर्थ में भी धर्म का विच्छेद नहीं हना अर्थात इनके निर्वाण होने से चन्द्रप्रभ भगवान के जन्म पर्यन्त प्रखंड रोति से धर्मप्रवर्तता रहा ।
इति श्री सुपार्श्वनाथ तीर्थंकरस्य विवरण समाप्तः ।।
अथ श्री चन्द्रभ तीर्थकरस्य विवरण प्रारम्भः-- श्री सुपार्श्व नाश भगवान के निर्वाण होने के अनन्तर नव्वे हजार कोडि सागर के बाद श्री चन्द्रप्रभ भगवान ने जन्म लिया। इनका पहला भव-बैजयन्त विमान। जन्म स्थान चन्द्रपुरी (काशी)। पिता का नाम-श्री महासेन माता का नाम-सुलक्षणा देवी । वंश इक्ष्वाकु । गर्भ तिथिचैत कृष्ण पंचमी । जन्म तिथि-पौष कृष्णा ११। जन्म नक्षत्र-अनुराधा । शरीर का वर्ण-शुक्ल वर्ण । चिन्ह-चन्द्रमा । शरीर प्रमाण-१५० धनुष । मायु प्रमाण-दस लाख पूर्व । कुमार काल-ढाई लाख पूर्व । राज्य काल-छह लाख पूर्व और ६६ लाख पूर्वांग । पाणिग्रहण किया। समकालीन प्रधान राजा का नाम-दानवीर्य । दीक्षा तिथि-पौप कृष्णा ११ । भगवान के तप कल्याणक के गमन के समय को पालकी का नाम-मनोहरा । भगवान के साथ वीक्षा लेने वाले राजारों की संख्या-१००० । दीक्षा वृक्ष-नागवृक्ष । तपोवन-सहस्त्राभ्रवन (चन्द्रपुरी) बराग्य का कारण-दर्पण में मुख देखना। दीक्षा का समय-अपर.न्ह । दीक्षा लेने से एक बेला करने के पश्चात् प्रथम पारणा किया। नाम नगर जहां प्रथम पारणा किया-सौमसनपुर पद्मखंड । प्रथम आहार दाता का नाम-सोमदेव । तपश्चरण कालतीन वर्ष । केवल ज्ञान तिथि-फाल्गन कृष्ण सप्तमी। केवल ज्ञान समय-अपरान्ह काल। केवल ज्ञान स्थान-मनोहर वन । समवशरण का प्रमाण साढ़े पाठ योजन । गणधर संख्या-१३। मुख्य गणधर नाम-दंडक । बादियों की संख्या-७६०० ।चौदह पर्व के पाठी-२०००। प्राचारंग सत्र के पाठो शिप्य मुनि-१०४०० । अवधिज्ञानो मुनियों की संख्या-पाठ हजार । केवल ज्ञानियों की संख्या-दस हजार। विक्रिया ऋद्धिधारी मुनियों की संख्या-चौदह हजार । मनःपर्यय ज्ञानी मुनियों की संख्या-८००० । वादित्र ऋद्धिधारी मुनियों की संख्या-७६०० । प्रायिकाओं की संख्या-३८०००० । मुख्य प्रायिका का नाम-सुमना । श्रावकों को संख्या-तीन लाख । श्राविकाओं की संख्या-पांच लाख । समवशरण कालएक लाख पूर्व में ३८ पूर्वांग और चार मास कम । मोक्ष जाने के तीन दिन पहले समवशरण विघटा। निर्वाण तिथि-फाल्गुन शुक्ल सप्तमी । निर्माण नक्षत्र-अनुराधा । मोक्ष जाने ना समय-पूर्वान्ह । मोक्ष जाने के समय का प्रासन-कायोत्सर्ग । मोक्ष स्थान-सम्मेद शिखर ललित कूट। भगवान के मुक्ति गमन के समय एक हजार मुनि मोक्ष गए । समवशरण से समस्त दो लाख चौंतीस हजार मुनि मोक्ष गए। इनके तीर्थ में भी धर्म का विच्छेद नहीं हुआ अर्थात् इनके मोक्ष गमन से पुष्पदन्त भगवान के जन्म पर्यन्त प्रखंड रीति से धर्म प्रवर्तता रहा।
इति श्री चन्द्रप्रभु तीर्थकरस्य विवरण समाप्तः ।
अथ श्री पुष्पवंत तीर्थकरस्य विवरण प्रारम्भःश्री चन्द्रप्रभ भगवान के निर्वाण होने के अनंतर नब्वे कोडि सागर के बाद श्री पुष्पदंत भगवान ने जन्म लिया। इनका पहला भव-प्रारणनाम का पन्द्रहवां स्वर्ग। जन्म स्थान-काकंदी। पिता का नाम-श्री सुग्रीव । माता का नाम-रामा देवी। वंश-इक्ष्वाकु । गर्भतिथि-फाल्गुन कृष्ण नवमी।