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णमोकार मंच
वे युगल जन्म दिन से सात दिन तक तो ऊपर को मुख किए पसे रहते हैं और अंगठा नमते रहते हैं तत्पश्चात् दूसरे सप्ताह में धीरे-धीरे घुटनों के बल चलते हैं, तीसरे सप्ताह में वे प्रायं मधुर भाषण करते तथा इधर-उधर पड़ते हुए अटपटी चाल से चलने लगते हैं, चौथे सप्ताह में सात दिन तक भूमि पर स्थिरता से पैर से.चलते हैं, तदनन्तर पांचवें सप्ताह में सात दिन गाना-बनाना थादि चातुर्य फलामों से तथा लावण्य, सौन्दर्य मादि गुणों से विभूषित हो जाते हैं 1 तदनन्तर छठे सप्ताह में सात दिन में ही नव यौवन सम्पन्न होकर अपने इष्ट भोग प्रादि के भोगने में समर्थ हो जाते हैं । तत्पश्चात सातवें सप्ताह में सम्यक्त्व के ग्रहण करने योग्य हो जाते हैं । वे शुभ लक्षण परिपूर्ण, उगते सूर्य से समान कान्ति के धारी स्त्री-पुरुषों के युगल तीन पत्य पर्यन्त देवों के समान मनचाहा दिव्य सुख भोगते हैं। न तो उन्हें किसी प्रकार की बीमारी, शोक, चिन्ता, दरिद्रता आदि के होने वाले कष्ट सत.ने पाते हैं और न किसी प्रकार के अपघात से मृत्यु होती है।
यहाँ न अधिक शीत पड़ती है और न अधिक गर्मी होती है किन्तु सदैव एक-सी सुन्दर ऋतु रहती है। यहाँ न किसी को सेवा करनी पड़ती है और न किसी के द्वारा अपमान सहना पड़ता है। न यहाँ युद्ध होता है न कोई किसी का बैर हो । यहाँ के लोगों के भाव सदा पवित्र और उत्साह रूप रहते है। यहां उन्हें कोई खाने-पीने की चिन्ता नहीं करनी पड़ती है। पुण्योदय से प्राप्त हुए दश प्रकार के कल्प वृक्षों से मिलने वाले सुखों को भोगते हैं और तीन फल्य श्रायु पूर्ण होने पर्यन्त ये इसी तरह मिराकुलित सुख से रहते हैं। वहाँ प्रशन, पान, शयन, प्राशन, वस्त्र, आभूषण, सुगंध प्रादि सर्व ही भोगउपभोग योग्य सामग्री कल्प वृक्षों से उत्पन्न होती है । उन दस कल्प वृक्षों के नाम इस प्रकार हैं :
मद्यातोद्धविभूषास्त्रग, ज्योतिदीपगुहाङ्गकाः ।
भोजनामत्र वस्त्राङ्गा, दशधा कल्प पावपाः ॥ अर्थ--मालांग, वादित्रांग, भाजनाङ्ग, भूषणाङ्ग, पानाङ्ग, ज्योतिराङ्ग, दीपांग, गृहांग, भोजनागौर वस्त्राङ्ग, ये दश प्रकार के कल्प वृक्ष हैं ।
" नाना प्रकार के फूलों से बनाई हुई उत्कृष्ट और उत्तम सुगन्धित मालाए जिससे प्राप्त हों उसे मालांग वृक्ष कहते है। १।।
तत, वितत, वन, सुषिर आदि बाजे जिससे प्राप्त हो वह वादित्रांग वक्ष है ।। कलश, थाली, कटोरा, गिलास प्रादि वर्तन देने वाला भाजनांग वृक्ष है।३।। मुफुट, माला, बाजूबन्द आदि अाभरण व भूषण देने वाला भूषणांग वक्ष है।४।
चिकर और सुगंधित, इन्द्रियो तथा बल की पुष्टि करने वाली तथा जिसके देखने से अभिलाता पंदा हो ऐसी पीने की वस्तु मद्यांग वृक्ष से मिलती है ।५.
ज्योतिरांग वृक्षों से सूर्य और चन्द्रमा से भी अधिक प्रकाश होता है । ६। दीपांग जाति के वृक्षों से घर में प्रकाश होता है ।७। गृहाँग वृक्ष से नाना प्रकार के मकान मिलते हैं 1८। जिनसे चार प्रकार, भोजन, प्राप्त हों वह भोजनांग वृक्ष है ।। जिससे उत्तमोत्तम रेशमी सूती, यादि वस्त्र प्राप्त हों उन्हें वस्त्रांग वृक्ष कहते हैं । १०॥
ऐसे ये दस प्रकार के कल्पवृक्ष न तो वनस्पति-काय हैं और न देवाधिष्ठित किन्तु पृथ्वीकाय रूपही सार वस्तु हैं। इन दश प्रकार के वृक्षो से मनवांछित पदार्थ प्राप्त करके सुख भोगते हए प्राय के अन्त में शुभ भावों से मृत्यु लाभकर शेष बचे पुण्य फल से स्वर्ग में जाते हैं और वहाँ भी महा वैभवशाली