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नौकार
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भक्षण करने का स्वाग कर देता है तब उसे सचित्त त्याग नामक पंचम प्रतिमा का धारी कहते हैं । अम दिवा मैथुन व रात्रि भुक्ति स्याग प्रतिमा स्वरूप
प्रार्या छन्द अन्नं पानं खा, लेहव नारनातियो विभावर्याम् ।
सच रात्रिभुक्तिविरतः, सम्वेवनुकम्पमानमनाः ॥ अर्थ-जो जीवों पर दया रूप चित्त वाला होता हुआ अल (रोटी, दाल, चावल प्रादि पदार्थ) पान (दषि, जल, शर्बत आदि पदार्थ) खाच फलाद, मोदक पादि) लेह (रबड़ी पादि चादने योग्य वस्तु इस प्रकार चार प्रकार के पदार्थों को रात्रि में ग्रहण नहीं करता है यह रात्रि भुक्ति त्याग नामक प्रतिमा का धारी है।
भावार्य इस प्रतिमा का शास्त्रों में दो प्रकार से वणन किया है। एक तो कारित अनुमोदना से रात्रि भोजन का त्याग और दूसरे दिवा मैथुन का त्याग । यद्यपि रात्रि भोजन का त्याग तो सातिचार प्रथम प्रतिमा में हो जाता है और प्रचुर प्रारम्भ जनित त्रस हिसा की अपेक्षा व्रत प्रतिमा में होता है परन्तु यहाँ पर पुत्र, पोत्र आदि कुटुम्ब तथा अन्य जनों के निमित्त से कारित, अनुमोदना सम्बन्धी जो प्रसिचार लगते हैं उनके यथावत् त्याग की प्रतिज्ञा होती है और इसके अतिरिक्त इस प्रतिमा वाला मन, वचन, काय, कृत, कारित प्रौर मनुमोदना से दिषा मैथुन का त्याग कर देता है तब उसे रात्रि भुक्ति त्यागी कहते हैं। यथोक्त--
मन्ये चाहुदिवाब्रह्मवयं, बामशन निशिश।
पालयेत्स भवेत्षष्ठः, श्रावको रात्रि भुक्तिक: ।। प्रर्थ पूर्वोक्त प्राशयानुसार है। अथ ब्रह्मचर्य प्रतिमा स्वरूप
प्रार्या छंदमलमीज मलयोमि, गलन्मलं पूतिगग्धिवीभत्स ।
पश्यन्नंगमनंग, द्विरमति यो ब्रह्मचारी सः ।। अर्थ-जो मल का बीज भूत, मल को उत्पन्न करने वाले, मल प्रवाहो, दुर्गन्धियुक्त, लज्जाजनक पथना ग्लानियुक्त अंग को देखता हुमा काम सेवन से विरक्त होता है वह ब्रह्मचर्य नामक प्रतिमा का पारी ब्रह्मचारी है।
भावार्थ-राति भुक्ति मोर दिया मैथुन त्यागी स्त्री के शरीर को मल का बीजभूत मल को उत्पन्न करने वाला, मल प्रवाही दुर्गन्धियुम्त, लज्जाजनक जानता हुमा स्व-स्त्री तथा परस्त्री पपीत स्त्रीमात्र में मन, बचन, काय, कृत, कारित, अनुमोदना से काम सेवन तथा काम सम्बन्धी प्रतिचार स्यागकर ब्रह्मपयं ब्रस में प्रारुढ़ होता है तब ब्रह्मचर्य संज्ञक सप्तम प्रतिमा का पारी कहा जाता है। पपपारम्भ स्याग प्रतिमा स्वरूप-~
प्रार्या छन्दसेवाकृषि वाणिज्य, प्रमुखारारम्भतो व्यपारमति । प्राणानिपातहेतोपर्यो, सावारम्भविमिवृत्तः ॥