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णमोकार पंथ
२४ जानने चाहिए । प्रथम नरक रत्नप्रभा वा धर्मा भूमि की मोटाई एक लाख प्रस्सी हजार योजन है । उसके तीन भाग हैं -उन में से सोलह योजन मोटा पहला वर भाग है उसमें चित्रा, बना, बैडूर्य मादि एक-एक हमार योजन को मोटी सोलह पृथ्वी हैं। इनमें से ऊपर नीचे की एक-एक हजार योजन की दो पृथ्वी छोड़कर बीच की चौदह हमार योजन मोटी और एक राजू लम्बी-चौड़ी पृथ्वी में किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, भूत और पिशाच इन सात प्रकार के व्यंतर देवों के तथा नागकुमार, विद्युतकुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार उदधिकुमार, द्वीपकुमार, दिपकुमार इन नव प्रकार के भवनवासी देवों के निवास स्थान है । खरभाग के नीचे चौरासी हजार योजन मोटा पंक भाग है उसमें प्रसुरकुमार और राक्षसों के निवास स्थान है । पाताल लोक में जो सात कोड़ी बहत्तर लाख प्रकृत्रिम जिन मन्दिर कहे हैं उनकी संख्या प्रसुरकुमार नामक देवों के भवन में चौसठ लाख, नागकुमार देवों के भवन में चौरासी लाख, विद्युत्कुमार देवों के भवन में छिहत्तर लाख, सुपर्णकुमार देवों के भवन में बहत्तर लाख, अग्निकुमार देवों के भवन में छिहत्तर लाख, वातकुमार देवों के भवन में प्रयाणवें लाख, स्तनितकुमार देवों के भवन में छिहत्तरलाख बिनमन्दिर हैं। उदधिकुमार देवों के भवन में छिहत्तर लाख, दीपकमार देवों के भवन में छिहत्तर लाख और दिक्कमार देवों के भवनों में भी छिहत्तर लाख जिन मन्दिर हैं। इस प्रकार प्रानन्दकन्द श्री जिनेन्द्र देवाधिदेव के दस प्रकार भयनवासी संञ्चकदेवों के भवनों में समस्त सात कोड़ी बहत्तर लाख अकृत्रिम जिन चैत्यालय हैं। उन चैत्यालय स्थित जिन प्रतिमानों को मन, वचन, काय से मेरा बारम्बार नमस्कार हो । इति। पंक भाग के नीचे अस्सी हजार योजन मोटा अबहुल भाग है । उस में प्रथम नरक है । सर्व नरक पृथ्वियों की भूमि स्थान परलोक को लम्बाईचौड़ाई के समान लम्बी-चौड़ी है । अव्यहुल भाग में एक-एक हजार योजन ऊपर-नीचे मोटाई छोड़कर अठहत्तर हजार योजन की मोटाई में तेरह पाथड़े और तीस लाख बिल हैं । १ ।
दूसरा नरक शक राप्रभा या बंशा की भूमि बत्तीस हजार योजन मोटी है । नीचे-ऊपर एक-एक हजार योजन मोटाई छोड़ कर तीस हजार योजन की मोटाई में ग्यारह पाथड़े पोर पच्चीस लाख विल हैं।२।
तीसरे नरक बालुका प्रभा वा मेघा की भूमि अठाईस हजार योजन मोटी है । ऊपर नीचे एकएक हजार योजन मोटाई छोड़कर छब्बीस हजार योजन की मोटाई में नौ पाथड़े और पन्द्रह लाख बिल हैं। ३ ।
चौथा नरक पंक प्रभा वा अंजना की भूमि चौबीस हजार योजन मोटी है। ऊपर नीचे एकएक हजार योजनं मोटाई छोड़कर बाईस हजार योजन मोटाई में सात पापड़े और दश लाख बिल है।४।
पांचवा नरक धूमप्रभा वा मरिष्टा की भूमि बीस हजार योजन मोटी है। ऊपर नीचे एकएक हजार योजन मोटाई छोड़कर प्रहारह हजार योजन मोटाई में पांच पाथड़े मोर तीन लाख बिल
छठा नरक तमप्रमा वा मधवी की भूमि सोलह हजार योजन मोटी है। ऊपर-नीचे एक-एक हजार योजन मोटाई छोड़कर चौदह हजार की मोटाई में तीन पाथड़े और पांच कम एक लाख दिल
सातयां नरक महानमप्रभा वा माधवी की भूमि पाठ हजार योजन मोटी है । ऊपर नीचे मनु