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णमोकार प्रेम
अथ नरक बिलों की ऊँचाई का वर्णन :बिलों के भीतर धरती से छत तक की पोलाई को बिलों की ऊंचाई कहते हैं। प्रथम नरक के इन्द्रक बिल एक कोश, श्रेणी वद्ध कोश प्रकीर्णक; कोश ऊँचे हैं।।
दूसरे नरक में इन्द्रक बिलों की ऊँचाई डेत कोश, श्रेणीवन बिलों की ऊँचाई दो कोश और प्रकीर्णक बिलों की ऊँचाई साढ़े तीन को है।
___ तीसरे नरक में इन्द्रक बिलों की ऊँचाई दो कोश, श्रेणीवद्ध बिलों की ऊंचाई २१ कोश और प्रकीर्णक बिलों की ऊँचाई ४ कोश है।
चौथे नरक में इन्द्रक बिलों की ऊँचाई पढ़ाई कोश, श्रेणीवद्ध कोश बिलों की ऊँचाई.३ कोश पौर प्रकीर्णक बिलों की ऊँचाई ५१ कोश है।
पांचवें नरक में इन्द्रक दिलों की ऊँचाई तीन कोश, श्रेणीवद्ध बिलों की ऊंचाई चार कोश पौर प्रकीर्णक बिलों की ऊँचाई सात कोश है।
छठे नरक में इन्द्रक बिलों की ऊँचाई साढ़े तीन कोश, श्रेणीवख बिलों की ऊँचाई ४ कोश पौर प्रकीर्णक बिलों की ऊँचाई कोश है।
सातवें नरक में इन्द्रक बिलों की ऊँचाई पार कोश, श्रेणीवद्ध बिलों की ऊंचाई ५१ कोश मौर प्रकीर्णक बिलों की ऊँचाई कोश है। इति ।
अथ मरक के पायमों का पायु वर्णन प्रथम नरक के प्रथम पाथड़े में जघन्य मायु दश हजार वर्ष और उत्कृष्ट प्रायु नब्बे हजार वर्ष की है। दूसरे पाथड़े में नब्बे लाख वर्ष, तीसरे पाथड़े में पसंख्यात कोहि पूर्व है, चौथे में सागर का दसवां भाग, पांचवें में सागर का पांचवा भाग, छठे में . सागर, सातवें में ३ सागर, पाठवें में पर्श सागर, नवें में सागर, दशवें में ६ सागर, ग्यारहवें में सागर, बारहवें में ,. सागर, तेरहवें में एक सागर की भायु है।
दूसरे नरक के प्रथम पाथड़े में , सागर, दूसरे में १४, सागर, तीसरे में १३, सागर, चौथे में १६, सागर, पांचवें में १, सागर, छठे में २१, सागर, सातवें में २२, सागर, पाठवे में २१, सागर, नवें में २६, सागर, दशवें में में २६, सागर, और ग्यारहवें में तीन सागर प्रायु है।
तीसरे नरक के प्रथम पाथड़े में भायु एक सागर के सौ भाग में से चार भाग अधिक तीन सागर, २६, दूसरे में ३६ सागर, तीसरे में , सागर, चौथे में ४१ सागर, पाँचवे में ५१ सागर, छठे में ५सागर, सातवें में ६ सागर, पाठवें में ६ सागर, और नवें में सात सागर प्रायु है।
चौथे नरक के प्रथम पाथड़े में प्रायु ७. सागर, दुसरे पाड़े में ७: सागर, तीसरे पाथड़े में : सागर, चौथे पाथड़े में सागर, पांचवे पाथड़े में ६, सागर, छठे पापड़े : सागर और सातवें पाथड़े में दश सागर प्रायू है।
पांचवे नरक के प्रथम पाथर्ड में प्रायु ११६ सागर, दूसरे पाथर्ड में १२३ सागर, तीसरे में १४३ सागर, चौथे में १५६ सागर और पांचवे पाथड़े में सतरह सागर प्रायु है।
छठे नरक के प्रथम पापड़े में घायु १८ सागर, दूसरे पाय २०, सागर और तीसरे पाय में बाईस सागरमायु है।
सातवें नरक में पाथड़ा एक ही है इसीलिए तेतीस सागरही मायु है।