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णमोकार पंप
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निकल गये और मैं पीछे रह गयी। यही मेरा वन में रहने का कारण है। प्रब न तो मैं घर का मार्ग जानती हू मोर न पिताजी ही लौटकर मुझको लेने पाये हैं। प्राज मेरा बड़ा भाग्योदय है जो इस निर्जन वन में आप जैसे महाभाग्य के दर्शन हुए हैं। सुन्दर स्वरूप ! प्रापके इस कामदेव सदृश रूप पर मेरा हृदय न्यौछावर हुआ जाता है। प्रतः मापसे मेरा निवेदन है कि मुझ प्रनाथ बालिका को ग्रहण कर मुझको कृतार्य करें तो बहुत अच्छा हो।
उत्तर में लक्ष्मण ने कहा-तुम जो कहती हो वह तो ठीक है परन्तु मैं तुमसे एक बात कहता है कि मेरे बड़े भाई के उपस्थित होते हुए मैं स्वयं तुम्हें ग्रहण नहीं कर सकता। प्रतएव तुम मेरे बड़े भाई के पास जाकर अपनी प्रार्थना करो। तुम यह न समझो कि मैं ही सुन्दर हूं किन्तु मेरे भाई मुझसे भी अधिक मुन्दर है तुम्हारी सुन्दरता के योग्य वह ही उचित जान पड़ते हैं। तुम उन्हीं के निकट जाओ।
___ इस प्रकार लक्ष्मण के कहने पर मूर्पनखा रामचन्द्र के पास पहुंची और कहने लगी मुझे प्राप से कुछ प्रार्थना करनी है। उसे आप ध्यान देकर सुन लें तो आपको बहुत कृपा हो मैंने पहले लक्ष्मण जी से विवाह करने का निवेदन किया था। उन्होंने कहा है कि मेरे बड़े भाई के पास जाकर निवेदन करो। मुझे अभी प्रवकाश नहीं है। उनके कथनानुसार मैं पापकी सेवा में उपस्थित हूं। मुझ प्रनाथ बलिका परं क्या कर पाणिग्रहण करके मेरे जीवन को कृतार्थ कीजिए ! प्राशा है कि प्राप मुझ मनाथ मजला पर दया कर स्वीकृति वचन प्रदान करेंगे।"
रामचन्द्र ने उस कामातुर सूर्पनखा को वार्ता श्रवण कर उत्तर में कहा-“हे बाले ! अब तुम मेरे ग्रहण करने योग्य नहीं रही हो क्योंकि तुम मेरे छोटे भाई लक्ष्मण से अपने विवाह की प्राकांक्षा कर चुकी हो प्रतएव तुम अब लघु भ्रातृ जाया कहलाने योग्य हो । तुम लक्ष्मण के ही पास जाओ और उसी से अपनी इच्छा पूर्ण करो।"
रामचन्द्र के वचन श्रवण कर सूर्पनखा फिर लक्ष्मण के पास गयी और उनको समस्त वृत्तांत सुनाया । लक्ष्मण ने फिर उत्तर में कहा-"तुम हमारे बड़े भाई से विवाह की इच्छा प्रकट कर चुकी हो प्रतएव तुम प्रब मेरे योग्य भी नहीं रही क्योंकि यह प्रसिद्ध ही है कि बड़े भाई की स्त्री माता के समान होती है प्रतएव तुम श्री रामचन्द्र के पास जाकर उनसे ही अपनी इच्छा पूर्ण करो।"
निदान वह काम से पीड़ित होकर कितनी ही बार राम और लक्ष्मण के पास आई और गयी । पंत में कपटी बालिका रूप सूर्पनखा की यह दशा देखकर सोता ने उससे कहा-"तू बड़ो मूर्ख है। जरा अपने माप का भी तो ध्यान कर । जरा विचार तो कर कि कहीं काक के संसर्ग से मकान भी काला हुप्रा है।"
सीता के कटाक्ष भरे वचन को सुनकर वह कहने लगी कि-"अच्छा ! तुझे काक संसर्ग से ही मकान काला होता दिखाऊँगी।"
यह कहकर वह चली गयी । जाकर उसने मायामल से सपने शरीर को नखों से नोच कर केशों को बिखेरे हए धूल रमाकर अपने पति के पास गमन किया और मूछित होकर गिर पड़ी । खरदूषण ने शीतोपचार कराकर उसे सचेत किया और उससे पूछा-प्यारी। प्राज यह क्या हमा? किस पापी की मृत्यु पाई है जिसने तुम्हारी यह दुर्दशा की है ? प्रिय शीघ्र कहो ! मुझसे तुम्हारी यह दुर्दशा नहीं देखी जाती।"