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गमोकार व
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अवसर प्रा मिला है। अब इस महावीर की सहायता से मेरी इच्छा पूर्ण हो जाएगी प्रतएव इससे मैत्री करनी चाहिए । ऐसा विचार कर वह ससैन्य लक्ष्मण के पास पहुंचा और नमस्कार करके बोला-"महाराज ! हे स्यामी, मैं प्रापकी सेवा करने के लिए उपस्थित हुमा । दुरारमा खरदूषण ने मेरे पूज्य पिता का वध कर डाला है । उसके बदले की इच्छा से मैं प्रापकी सहायता लेने के लिए माया हूं। प्रागंतुक को सहायता देना आप जैसे उत्तम पुरुष का कर्तव्य है।" यह सुनकर लक्ष्मण ने कहा-"तुम इसकी चिता न करो। तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी, परन्तु मुझे एक बात यह पूछनी है कि मुझे धोखा देने तो नहीं आये हो! यदि तुम धोखा देने भी पाए हो तो मुझे इसकी चिंता नहीं। मैं तुम्हारी सहायता करूंगा।"
उसर में विराधित ने कहा..."महाराज ! मैं शपथ पूर्वक कहता हूं कि मैं केवल अपने पिता का बदला लेने के अभिप्राय से सहायतार्थ प्रापके पास पाया हूं और किसी दुष्प अभिप्राय से नहीं । महाबाहु ! भाप तो खरदूषण से युद्ध करें क्योंकि वह महाबली हैं और शेष सेना के लिए मैं अकेला ही
ऐसा कह विराधित तो खरदूषण की सेना से युद्ध करने लगा और लक्ष्मण की वरदुषण से मुठभेड़ हो गयी । इधर तो विराधित ने अपने वचन के कयनानुसार खरदूषण की सारी सेना को वश में कर लिया और उधर लक्ष्मण ने खरदूषण को जीत लिया । जब खरदूषण की पराजय का वृत्तांत रावण को मालूम हुआ तो यह उसी समय पुष्पक नामक विमान पर प्रारुट होकर खरदूषण की सहायतार्थ वहाँ से जल दिया। जब चलते चलते दंडक वन में पाया तो वहां पर रामचन्द्र के समीप बैठी हुई सीता की अप्रतिम सुन्दरता को देखकर उसका हदय काम के बाणों से भेदा गया। उसने काम बेदना से पीड़ित हो सीता को उठा लाने के लिए अनेक उपाय किये परन्तु उसका उपाय कभी भी अभीष्ट सिा नहीं कर सका । तब अन्त में उसने अपनी विधा को उसको लाने के लिए भेजा परन्तु विद्या महातेजस्वी पूज्यमूर्ति श्री रामचन्द्र के भागे कुछ न कर सकी और निष्प्रभ हो वापिस आकर रावण से बोली- स्वामी ! मैं रामचन्द्र के निकट से सीता को लाने में असमर्थ हूं।"
सुनकर रावण ने कहा-"प्रस्तु। प्रब सू ये उपाय बता कि वह कैसे लाई जा सकती है।"
तब विद्या ने कहा- यदि लक्ष्मण युद्ध में सिंहनाद करें तो राम उसकी सहायतार्य चले जाएंगे तब सीता को ला सकते हो।"
सुनकर रावण ने विद्या से कहा--"तुम यहाँ से थोड़ी दूर जाकर सिंहनाद करो। उसे सुनकर रामचन्द्र अपने भाई का किया हुमा सिंहनाद समझ वहां से सहायतार्थ चले जाएंगे।"
विद्या ने ऐसा ही किया । उसे रामचन्द्र और सीता ने सुन लिया । रामचन्द्र अपने भाई को संकट में पाया जान कर जटायु को सीता की रक्षा के लिए छोड़कर आप वहां से चल दिये। उधर राषण भी यही चाह रहा था अतः रामचन्द्र के जाते ही रावण सीता को बलात्कार उठा ले गया जैसे पक्षी मासपिण्ड को उठा ले जाता है। जटायु अपनी स्वामिनी को ले जाते देखकर रावण को अपने तीखेतीखे नुकीले नखों से घायल करने लगा। यह देख रावण को बड़ा क्रोध पाया और उसने उस बेचारे पक्षी के ऐसा थप्पड़ मारा कि वह अधमरा होकर धड़ाम से पृथ्वी पर गिर पड़ा। यह घटना रत्नजटी नाम के विद्याधर ने जाते हुए देखी। उसने आकर रावण से कहा- "हे नीच विधाघर! बेचारो एक अबला स्त्री को चुराकर कहां लिए जाते हो। तुम्हें इस कर्म को करते हुए लज्जा नहीं पाती।" उस