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णमोकार ग्रंथ
मुझको यह दोष लगा है, मालोचना है। दोष दूर होने के लिए प्रार्थना करना अथवा मैंने जो अपराध किए हैं सो निष्फल हों-इस प्रकार कहना प्रतिक्रमण है । पालोचना और प्रायश्चित प्रतिक्रमण दोनों का एक साथ करना तदुभयपादियत त है।
जिस वस्तु के ग्रहण करने से व जिस कार्य के करने से दोष लगा हो उसका त्याग करा देना विवेक प्रायश्चित तप है।
नियमित समय तक कायोत्सर्ग दंड लेना व्युत्सर्ग प्रायश्चित तप है । अनशन प्रादि तप करना तप प्रायश्चित है। दिवस, पक्ष, मासादिक की दीक्षा का घटाना छेदप्रायश्चित है। नियत समय के लिए संघ से बाहर कर देना परिहार प्रायश्चित तप है। पिछली समस्त दीक्षा को छेदकर फिर से नवीन दीक्षा देना छेदोपस्थापना प्राचित है ।
इस प्रकार प्रायश्चित तप नौ प्रकार का है। विनय तप
शंकादि दोष रहित तत्वार्थ श्रद्धान करना दर्शन बिनय है। संशय, विपर्यय, अनध्यसायरहित अष्टांग रूप ज्ञानाभ्यास करना ज्ञान विनय है । विवेक सहित निरतिचार क्रिया धारण करना चारित्र विनय है ।
देव, शास्त्र, गुरु तथा तीर्थ भादि का हृदय में वंदना रूप प्राचरण करना उपचार विनय है । वैयावृत्य तप
यह चार प्रकार का विनय तप है । जो शिक्षा, दीक्षा दें वह प्राचार्य हैं। जिनागम अध्ययन, अध्यापन करायें बह उपध्याय हैं । उपवासायिक विशेष तप करें वह तपस्वी हैं । जो श्रुतज्ञान के अध्ययन करने के अधिकारी हों वह शिष्य हैं । जिनका शरीर रोगादि से पीड़ित हो वह ग्लान है। वृद्ध मुनियों का समूह गण है । दीक्षा लेने वाले एक प्राचार्य के शिष्य कुल है । ऋषि (ऋद्धिधारी), मुनि (अवधि, मन पर्ययज्ञानी), यति (तेरह प्रकार चरित्र पालने में यत्न करने वाले तथा श्रेणी मांउने वाले), अनागार (शेष सर्व निनन्य साधु ) इन चार प्रकार के मुनियों का समुह संघ है । जो बहुत काल के दीक्षित हों उन्हें साधु कहते हैं । जो लोकमान्य प्रशंसनीय हों वह मनोज्ञ हैं।
इन सबका शरीर सम्बन्धी व्याधि तथा दुष्टजनों द्वारा कृत उपसर्गादिक में सेवा टहल करना वैयावृत्य तप है। स्वाध्याय तप
विनयवान धर्म के इच्छुक पात्रों को धर्म श्रवण कराना वांचना स्वाध्याय है । जाने हुए प्रर्य को बारम्बार विचारना अनुप्रेक्षा स्वाध्याय है। शुद्ध आचरण से घोषना प्राम्नाय स्वाध्याय है। संशय की निवृति के लिए बहुसानियों से पूछना पृच्छनास्वाध्याय है। उन्मार्ग को दूर करना प्रौर धर्म वृद्धि के लिए उपदेश देना धर्मोपदेश स्वाध्याय है। इह प्रकार यह पाँच प्रकार का स्वाध्याय तप है।