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णमोकार म उसने वस्त्राभूषण त्याग कर उसी समय दीक्षा ग्रहण कर ली। वञ्चकुमार मुनि साधु बनकर खूब तपश्चर्या करने लगे । वनकुमार के दीक्षित होने के बाद की कथा इस प्रकार है
उस समय मथुरा के राजा पूतगंध थे। उनकी रानी का नाम था उमिला। वह बड़ी धर्मात्मा, सम्यक्त्व रूपी रत्न से भूषित जिन भगवान की परम भक्त थी । वह प्रत्येक अष्टान्हिका में भगवान की पूजा और रथोत्सव बहुत धूमधाम के साथ करती थी। इसी मथुरा नगरी में एक सागरदत्त नाम का सेठ था। उसकी स्त्री का नाम समुद्रदत्ता था। उसके पूर्वोपाजित पाप के उदय से दरिद्रा नाम की पुत्री हुई। उसके पाप के उदय से माता-पिता दरिद्र होकर पन्त में परलोक पधार गये । अब यह बेचारी दरिद्रा दूसरों के उच्छिष्ट भोजन खाकर दिन व्यतीत करने लगी । एक दिन नन्दन और अभिनन्दन नाम के दो मुनि भिक्षा के लिए मथुरा पाये । दरिद्रा को प्रन्न का एक-एक कण खाती हुद देखकर लघु मुनि अभिनन्दन ने नन्दन से कहा मुनिराज! देखिये, यह बेचारी बालिका कितने कष्ट से जीवन व्यतीत करती है। तब नन्दन मुनि ने कावधिको विमार लामा - होमसर इस समय इसकी दशा अच्छी नहीं, तथापि इसका पुण्य कर्म बड़ा प्रबल है, उसी से यह पूतिगंध राजा की पटरानी बनेगी।' मुनि ने जब दरिद्रा का भविष्य सनाया. सब एक भिक्षार्थ पाए हए बौद्ध साधने यह भविष्य सन लिया। जैन ऋषियों के वचनों पर उसका बहुत विश्वास था इसलिए दरिद्रा को अपने स्थान पर ले जाकर उसका पालन करने लगा। दरिद्रा जैसे-जैसे बड़ी होती गई वैसे यौवन में भी अपनी कान्ति से उसका सम्मान करना प्रारम्भ किया अर्थात् वह यौवन सम्पन्न होकर अपने शरीर से सुन्दरता की सुधा धारा बहाने लगी।
एक दिन बह यवती नगर के समीप एक उपवन में भले पर कल रही थी कि इतने में कर्मयोग से राजा भी वहां ना निकले । एकाएक उनकी दृष्टि भूले पर झूलती हुई दरिद्रा पर पड़ी। उस स्वर्गीय सुन्दरता को देखकर वह काम के बाणों से बिध गया। उसे दरिद्रा की प्राप्ति के बिना अपना जीवन व्यर्थ प्रतीत होने लगा । वह मोहवश होकर दरिद्रा के निकट जाकर उससे उसका परिचय पूछने लगा। उसने किसी प्रकार का संकोच न करके अपना स्थानादि सब पता बतला दिया । उस बेचारी भोली-भाली बालिका को क्या मालूम था कि मुझसे स्वयं मयुराधीश ही वर्तालाप कर रहे हैं । राजा काम के वेग से व्याकलचिस होकर किसी प्रकार से अपने महल पर पाए। माते ही उन्होंने अपने मंत्री पास भेजा। मंत्री ने पहुंचते ही श्रीबंधक से कहा प्राज तुम्हारा मौर तुम्हारी पुत्री का बड़ा भाग्य है जो उसको मयुराधीश अपनी पटरानो बनाना चाहते हैं । कहो, तुमको स्वीकार है या नहीं।
श्रीबंदक बोला यदि महाराजा बौद्ध धर्म अंगीकार कर लें तो मैं महाराजा से दखिा का विवाह करने को प्रस्तुत हूं।
__ मंत्री ने यह बात राजा से जाकर निवेदन की । महाराजा ने इस बात को स्वीकार कर लिया और दरिद्रा का उनके साथ विवाह हो गया। दरिद्रा मुनिराज के कपनानुसार बड़ी पटरानी हुई। दरिद्रा इस समय बुखवासी के नाम से प्रसिद्ध हो गई । बुद्धदासी पटरानी बनकर बुद्ध धर्म का प्रचार करने में सदा तत्पर रहने लगी।
____ इसके मन्तर मष्टान्हिका पर्व प्राया। उमिला महारानी ने सदा के लिए नियमानुसार सबकी मार भी उत्सव करना प्रारम्भ किया। जब रप निकलने का समय माया तब बुखदासी ने राजा से कहा कि 'मेरा रय पहले निकलना चाहिए, उर्मिला का पीछे।' राजा ने बुखदासी के प्रेम में अन्धा होकर उर्मिला का रप रुकवा दिया। उर्मिला रानी ने अपने में दुःखित चित्त होकर प्रतिज्ञा की कि जब तक