________________
णमोकार ग्रंथ.
२०५
श्री कृष्ण को जब इस भयंकर बृतान्त का ज्ञान हुआ तो वे उसी समय बलदेव सहित अपने माता-पिता को बाहर ले जाने का प्रयत्न करने लगे। परन्तु सब द्वारों के कपाट बन्द हो गये अतएव वे उसमें सफलता प्राप्त न कर सके। श्री कृष्ण को व्याकुल देखकर किसी देव ने कहा कि तुम व्यर्थ ही खेद उठा रहे हो समस्त द्वारका में तुम्हारे और बलदेव के सिवाय और कोई नहीं बचेगा ।
यह सुनते श्री कृष्ण समुद्र पर पहुंचे और वहां से जल का नाला लाकर अग्नि को शान्त करने लगे परन्तु प्रशुभोदय से वह जल भी तेल रूप होकर दूना दूना जलने लगा। ठीक ही है जब देव ही प्रतिकूल हो जाता है तब न तो पांडित्यता काम श्राती है न चतुराई। देवकी श्रौर वासुदेव अपना बचना कठिन समझकर सन्यास मरण कर उसके प्रभाव से स्वर्ग में देव हुए। देखते-देखते समस्त द्वारिकाभस्म हो गयी। इस घटना को देखकर श्रीकृष्ण और बलदेव बहुत दुःखी हुए और व्याकुलचित्त होकर साश्रुपात रुदन करने लगे । बहुत देर पश्चात् कुछ धैर्य धारण कर दोनों वहां से चल दिए । जब
कौशांबी नगरी के वन में श्राए तत्र श्रीकृष्ण बहुत व्याकुल हुए। उन्होंने बहुत तृपातुर होकर वलदेव से जल लाने के लिए कहा। बलदेव उनको एक वृक्ष की छाया में बैठाकर आप जल लाने के लिए चल दिए परन्तु वहां वन में जल कहां ? पर वे खोज करते-करते बहुत दूर चले गये वहां उनको एक सरोवर दिखाई दिया। वे वहां पहुँचे और कमलपत्रों का पात्र बनकर उसमें जल लेकर आने लगे। इधर उनके जाते ही श्रीकृष्ण शीतल पवन चलने के कारण वृक्ष के नीचे लेट गये और उन्हें निद्रा भी आ गयी । अकस्मात् दैवयोग से उधर जरत्कुमार आ निकले। श्रीकृष्ण के पांव में चमकते हुए पद्म को देखकर उनके चित्त में कल्पना उठी कि यह कोई मृग सो रहा है और जो यह चमक रहा है वह उसका नेत्र है। ऐसा विचारकर उन्होंने शीघ्रता से वाण चला दिया। बाण के लगते ही श्रीकृष्ण चिल्ला उठे और बोले कि- 'मुझको वन में अकेले सोते हुए देखकर किस पापी ने बाण मारा है ? मुझको मारकर उसने क्या लाभ उठाया ?
रुदन का यह शब्द सुनकर जरत्कुमार दौड़े आए। देखा तो श्रीकृष्ण सिसक रहे हैं। उससे यह घटना देखी न गयी और वह मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़ा। कुछ देर पीछे सचेत होकर कहने
लगा
हा हा तात कहा भयो, यह दुःखकारण प्राय । मैं खल प्राय रहो लहां तो भी भषो बनाय ॥
श्रीकृष्ण जरत्कुमार को पश्चात्ताप करते हुए देखकर क्षमा करके बोले - 'भाई ! जो होना था वह तो हो चुका। सब तुम व्यर्थं शोक न करो। मेरे कहने से तुम अभी यहां से चले जाओ । बलदेव मा गये तो तुमको मार डालेंगे। तुम ये सब वृत्तांत पांडवों को जाकर कह देना ।'
निदान श्रीकृष्ण ने जरत्कुमार को बलदेव के आने से पहले पांडवों के पास भेज दिया और परलोकवासी हो गये । इतने में बलदेव भी जल लेकर आ गये । श्रीकृष्ण को मृत्यु शय्या पर शयन करते देखकर भी मोह के वशीभूत हुए उन्हें रुष्ट हुआ जानकर प्रसन्न करने के लिए अनेक प्रकार से विनययुक्त वचन कहते हुए जल पीने का प्राग्रह करने लगे। कभी उनसे हास्य करने लग जाते और कभी रोने लग जाते । श्रीकृष्ण के शोक से उनकी पागलों जैसी अवस्था हो गयी। पांडवों को जब जरत्कुमार के द्वारा इस घटना का वृतांत विदित हुआ तब वे भी बलदेव के पास माए और उनकी इस अवस्था को देखकर बहुत दुःखी हुए। पांडवों ने बलदेव को बहुत कुछ दिलासा दिया और श्रीकृष्ण के शव का अग्नि-संस्कार करने के लिए कहा, परन्तु वलदेव ने उनके कहने को बिल्कुल नहीं माना और उल्टे उनसे रुष्ट हो गये ।