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णमोकार ग्रंथ
(३) जिसके उदय से छठे गुणस्थानवर्ती मुनियों के सूक्ष्म विषय के निर्णय के लिए जो आहारक शरीर की रचना हो उसे आहारक शरीर कहते हैं।
(४) जिसके उदय से उपांगरहित तेजस शरीर की रचना हो उसे तेजस शरीर कहते हैं।
(५) जिसके उदय से अंगोपांग का भेद प्रगट हो उसको अंगोपांग नाम कर्म कहते हैं। मरमना, पीठ, छाती का पंजर, बाहु, उदर, जांघ, हाथ और पात्र ये अंग और इनकी छोटी शाखा उंगली, नाक कान अदि उपांग है । यह अगोपांग नामकर्म तीन प्रकार का है
(१) प्रौदारिफ शरीरांगोपांगः (२) वक्रियिक शरीरांगोपांग (३) आहारक शरीरांगोपांग । इस प्रकार के शरीर के ही अंगोपांग होते हैं । जिससे अंगोपांग की ठीक-ठीक रचना हो- उसे निर्माण नाम कर्म कहते हैं जिस कर्म के उदय से प्रौदारिक प्रादि शरीरों के परमाणु परस्पर सम्बन्ध को प्राप्त हों उसक बंधन नामकर्म कहते हैं। बंधन नामकर्म इस प्रकार है-(१) प्रौदारिक बंधन (२) वैकियिक बंधन (3) पाहारक बंधन (४) तेजस बंधन और ( ५) कार्माण बंधन । जिस-जिस प्रकार का शरीर होता है उसमें उसी प्रकार के बंधन होते हैं।
पांच प्रकार की संघात प्रकृति है। संघात नाम मांस के लेशन का है। जैसे गारे में ईट मिली रहती है लेशन होने से बिखरती नहीं वै' ही मांस के संघात से हाड चिपके रहते हैं अर्थात जिस कर्म के उदय से औदारिक शरीरों से परमाणु छिद्ररहित एकता को प्राप्त हों वह संघात-(१) औदारिक संघात (२) वैक्रियक संघात (३) आहारक सघात (४) तेजस संघात और (५) कार्माण संघात ऐसे पांच प्रकार है। जिस प्रकार का शरीर है उसमें उसी प्रकार संघात होता है।
जिस कर्म के उदय से शरीर की प्राकृति हो उसे संस्थान नामकर्म कहते हैं। वह छह प्रकार का है:
(१) जिसके उदय से सर्व अंग यथोचित सुन्दर शोभायमान हों वह सम चतुरस्त्र-संस्थान है।
(२) जिसके उदय के नाभि से नीचे के अंग छोटे और ऊपर के बड़े हों जैसे वृक्ष, वह न्यग्रोधपरिमंडल संस्थान है।
(३) जिसके उदय से नीचे का भाग स्थूल और लम्बा हो और ऊपर का कद छोटा हो वह स्वाति संस्थान है।
{४) जिसके उदय से नीचे का भाग कुवडा हो, पीठ में कूबडा हो और छाती में गढा हो जिससे झुक कर चले वह कुब्जक संस्थान है।
(५) जिसके उदय से बौना शरीर हो वह वामन संस्थान है। (६) जिसके उदय से सर्व अंगोपांग छोटे-बड़े बेडोल हों वह हुंड़क संस्थान है।
जिस कर्म के उदय से हाड़ों के बंधन में विशेषता हो उसे संहनन नाम कर्म कहते हैं। वह छः प्रकार है: -(१) बमवृषभनाराच संहनन (२) वशनाराच संहनन(३) नाराच संहनन (४) अर्थ नाराच संहनन (५) कीलक संहनन और (६) असंप्राप्तासृपाटिका संहनन ।
(१) नशों के हाडों के बंधने का नाम वृषभ है। नाराच नाम कीलने का है और संहनन नाम हाडों के समह का है प्रतः जिस कम के उदय से वषम (बष्टन) नाराच (कील) और संहनन नाम (अस्थिपंजर) ये तोनों वववत् अभेद्य हों वह बनवृषभनाराच संबना है।
(२) जिस कर्म के उदय से नाराच संहनन तो अज में हों और वृषभ सामान्य हो यह वजनाराच संहनन है।