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गभौकार प्रय
(७) दृष्टि विष ऋद्धि-किसी को किसी सांप ने काटा हो पथवा किसी ने विष खा लिया हो जो मुनि के देखते ही निविष हो जावे।
(८) विष नाशन ऋद्धि-मुनि को भोजन में कोई बिष दे दे तो बाधा न करे ।
तीसरी क्षेत्र ऋद्धि है उसके दो भेद होते हैं - (१) अछिन्न ऋद्धि --मुनि जिसके घर में प्राहार लें तो उस दिन भोजन अटूट हो जाये।।
(२) अविछिन्न ऋद्धि-मुनि जिस चौके में आहार ले उसमें चक्रवर्ती की सेना अलग बैठकर भोजन करे तो भी कमी न होवे।।
चौथी बल ऋद्धि के तीन प्रकार हैं(१) मनोबल' ऋद्धि-जिसके बल से द्वादशांग वाणी का अंतर्मुहूर्त में पाठ कर लिया जाए।
(२) बचन बल ऋद्धि-जिसके बल से द्वादशांग वाणी का अन्तर्मुहूर्त में वचन द्वारा पार कर लिया जाए।
(३) काय बल ऋद्धि-द्वादशांग वाणी का पाट अन्तमुहूर्त में काय द्वारा कर लेना अथवा पहाड़ समान भारी बोझ को उठा लेना ।
पांचवी तप ऋद्धि सात प्रकार की है(१) घोर ऋद्धि-श्मशान आदि भयानक स्थानों में नि:शंक ध्यान लगा कर परिपह
सह लेना
(२) महत् ऋद्धि-निविघ्न १०८ ब्रत का क्रम पूर्वक पालन करना और उपवास करना ।
(३) उन तप ऋद्धि-एक दो अथवा तीन दिन तथा पक्ष मासादिक का उपवास प्रारम्भ कर मरणासन्न होने पर भी विचलित नहीं होता।
(४) दीप्ति ऋद्धि-घोर तप करने से भी देह की कान्ति न घटना।
(५) तप ऋद्धि-- जो वस्तु ग्रहण की जाए अथवा पान की जाए उसका मल, मूत्र, मॉस कुछ भी न बने । जिस प्रकार अग्नि में गिरने से सब पदार्थ भस्म हो जाते हैं उसी प्रकार भोजन का मल, मूत्र मादि रूप में परिणमन न होना ।
(६) धोर गुण ऋद्धि-रोग आदि के होने पर भी अनशन प्रादि व्रत का अतिचार रहित पालन करना।
(७) घोर ब्रह्मचर्य ऋद्धि-ऐसा ब्रह्मचर्य का पालन करना कि जिससे स्वप्न में भी चित्त चलायमान न हो।
छठी रस ऋद्धि के ४ भेद हैं
(१) पयस्त्रया ऋद्धि-मुनि जिस गृहस्थ के घर भोजन करें तो उनके पाणिपात्र में रुक्षमोबन भी क्षीर रस रूप में परिणमन हो जाए प्रोर उस दिन समस्त रसोई दुग्धमय हो जाए।
(२) घृतस्त्रवा ऋद्धि-मुनि जिस गृहस्थ के घर भोजन करें तो उस दिन समस्त रूक्ष भोजन भी घृतसहित हो जाए।
(३) मिष्टास्त्रव ऋद्धि-मुनि जिस गृहस्थ के घर भोजन करे तो उस दिन रसोई मिष्टरस
हो जाए।
(४) पमृतस्त्रदा ऋद्धि-मुनि जिस गृहस्थ के घर भोजन करे उस दिन रसोई ममतमय हो बाए।