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मोकार प.
ॐ ह्रीं मह श्रीशाय नमः ॥६५५॥ अंतरंग और बाह्यलक्ष्मी के स्वामी होने से आप श्रीश हैं ॥१५॥
ॐ ह्रीं अहं श्रीश्रितपादाभाय नमः ।।६५६॥ मापके चरण कमलों की सेवा लक्ष्मी करती है इसरिए माप श्रीश्रितपादाब्ज है ॥६५६।।
ॐ ह्रीं अह वीतभीराय नमः ।।९५७।। भय रहित होने से प्राप वीतभीर हैं ॥६५७।।
ॐ ह्रीं अह मभयंकराय नमः ॥६५८|| भक्त लोगों के भय दूर करने से माप भभयंकर हैं ॥१५॥
ॐ ह्रीं अहं उत्सन्नदोषाय नमः ॥१५६।। समस्त दोषों को नष्ट कर देने से माप उत्सन्न दोष कहलाते हैं ॥१५॥
ॐ ह्रीं अहं निर्विघ्नाय नमः ॥६६०॥ विघ्न रहित होने से आप निर्विघ्न है ॥६६॥ ॐ ह्रीं अहं निश्चिलाय नमः ॥९६१॥ स्थिर होने से आप निश्चल हैं ॥६६॥
ॐ ह्रीं अहं लोकवत्सलाय नमः ।।६६२। लोगों को प्रत्यन्त प्रिय होने से प्राप लोकवत्सल कहे जाते हैं ॥९६२॥
ॐ ह्रीं ग्रह लोकोत्तराय नमः ॥९६३|| समस्त लोक में उत्कृष्ट होने से प्राप लोकोत्तर है ।।९६३।।
ॐ ह्रीं अर्ह लोकपतये नमः ॥६६४॥ तीनों लोकों के स्वामी होने से पाप लोकपति है ।।१६।
ॐ ह्रीं श्रह लोकचक्षुषे नमः ।।६६५समस्त लोक को चक्षु के समान यथार्थ पदार्थों के दर्शन होने से प्राप लोकचक्षु है ॥६५॥
*हीं अहं अपारधिये नमः ॥६६॥ अनंतज्ञान को धारण करने से पाप अपारधी हैं ।।६६६।।
"ॐ ह्रीं अहं धीरधिये नमः ॥९६७|| पाप का ज्ञान सदा स्थिर रहता है इसलिये अाप धीरथी
___ॐ ह्रीं अहं बुद्धसन्मार्गाय नमः ।।६६८॥ यथार्थ मोक्षमार्ग को जानने से पाप बुद्ध सन्मार्ग हैं ॥६॥
ॐ ह्रीं अहं शुद्धाय नमः ।।६६६।। शुद्ध स्वरूप होने से आप शुद्ध हैं ।।६६मा
ॐ ह्रीं अहं सुनृतपूतवाचे नमः ।।६७०आपके वचन यथार्य और पवित्र होने से प्राप सुनृतपूतवाक् हैं ।।१७०॥
ॐ ह्रीं मह प्रज्ञापारमिताप नमः ॥९७१।। बुद्धि के पारगामी होने से आप प्रज्ञापारमित हैं ॥७॥
ॐ ह्रीं अहं प्राशायनमः ॥९७२।। अतिशय बुद्धिमान होने से आप प्राश हैं ॥७२॥
ॐ ह्रीं अर्ह यतिये नमः ।।१७३|| मन को जीतने से अथवा सदा मोक्षमार्ग का प्रयत्न करने से पाप यति हैं ॥६७३||
ॐ ह्रीं मह नियमितेंद्रियाय नमः ।।१४४॥ इन्द्रियों को वश में करने से प्राप नियमितेंद्रिय
हैं ॥९७४॥
ॐ ह्रीं महं भवंताय नमः ।।६७५॥ पाप पूज्य होने से भवंत हैं ॥७॥ ॐ ह्रीं मई भरकृते नमः ॥९७६॥ कल्याणकारी होने से आप भद्रकृत है ।।९७६॥