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णमोकार ग्रंथ
ॐ ह्रीं ग्रह भद्राय नमः ||६७७॥ निष्कपट ग्रथवा कल्याणस्वरूप होने से भाप भद्र हैं ।। ६७७ || ॐ ह्रीं कल्पवृक्षाय नमः || ६७८ ॥ इच्छित पदार्थों के दाता होने से श्राप कल्पवृक्ष है ।। ६७८ ॥ ॐ ह्रीं श्रीं वरप्रदाय नमः ||६७६॥ इष्ट पदार्थों की प्राप्ति करा देने से श्राप वरप्रद कहलाते
हैं ।६७६॥
ॐ ह्रीं समुन्मूलित फर्मारये नमः ||६८० ॥ कर्मरूप शत्रुओं को उखाड़ फेंक देने से श्राप समुन्मूलित कमर कहे जाते हैं ||८०||
ॐ ह्रीं श्रीं कर्मकाष्ठशुशक्षिणिये नमः ||६८१ ॥ कर्मरूपी लकड़ी को जलाने के लिये प्राप अग्नि के समान हैं इसलिए श्राप कर्मकाष्ठशुशक्षण हैं ||६८१ ॥
ॐ ह्रीं अर्ह कर्मण्याय नमः ||६८२ ॥ क्रिया अर्थात् चारित्र में नितांत कुशल होने से आप कर्मण्य हैं ||६८२||
ॐ ह्रीं अहं कर्मठाय नमः ||३|| क्रिया करने में शूरवीर श्रथवा सर्वथा तैयार रहने से आप
कर्मठ हैं
ॐ ह्रीं श्रीं प्रशिवे नमः ||१४|| सबसे ऊँचे अर्थात् उत्कृष्ट या प्रकाशमान होने से श्राप प्रांशु
हैं ||४||
ॐ ह्रीं यह यादेयविचक्षणाय नमः ।। ६८५|| त्यागने योग्य और ग्रहण करने योग्य पदार्थों के जानने में चतुर होने से ग्राप हेयादेय विचक्षण कहलाते हैं ||६८५ ॥
ॐ ह्रीं
अनंतशक्तये नमः ||६८६ ॥ प्राप में ग्रनन्त शक्तियां प्रगट होने से आप अनंत
शक्ति हैं ।।६८६||
ॐ ह्रीं अर्ह अवाय नमः || १८७२ छिन्न भिन्न करने योग्य न होने से प्राप प्रछेद हैं ॥ ६८७ || ॐ ह्रीं अहं त्रिपुरारये नमः ॥६८८ || जन्म जरा थोर मरण इन तीनों को नाश करने से आप त्रिपुरारि कहलाते हैं ||६८८ ||
ॐ ह्रीं त्रिलोचनाय नमः ॥६८॥ ॐ ह्रीं यह त्रिनेत्राय नमः ६६०॥
ॐ ह्रीं यह त्र्यंबकायनमः ||६६१|| ॐ ह्रीं ग्रह यक्षाय नमः ॥२॥ भूत, भविष्यत और वर्तमान तीनों कालों के जानने और देखने से प्राप त्रिलोचन ||६८६॥ त्रिनेत्र ॥ ६०॥ त्र्यंबक ॥६६१ ॥ तथा दक्ष कहे जाते हैं | ||६६२ ॥
ॐ ह्रीं केवलज्ञानवीक्षणाय नमः ॥ ६३ ॥ केवलज्ञान ही आप के नेत्र होने से आप केवलज्ञान वीक्षण कहलाते हैं ||३||
ॐ ह्रीं श्रर्ह समंतभद्राय नमः ||६६४॥ सर्वथा मंगल स्वरूप होने से श्राप समंतभद्र हैं ॥६४॥ ॐ ह्रीं श्रीं शतारिणे नमः ||६६५॥ कर्मरूप शत्रुओं को नाश करने से श्राप शांतार हैं ।। ६६५॥ ॐ ह्रीं धर्माचार्याय नमः ॥ ६६ ॥ धर्म के आचार्य होने से आप धर्माचार्य हैं । ६६६ ।। ॐ ह्रीं अर्ह दयानिधये नमः ॥६७॥ जीवों पर अतिशय क्या करने से आप दयानिधि
हैं ||६६७।।
ॐ ह्रीं ग्रह सूक्ष्मदर्शये नमः ||८|| सूक्ष्म पदार्थों को भी साक्षात् देखने से आप सूक्ष्मदर्शी कहलाते हैं ||८||
ॐ ह्रीं श्रीं जितानंगाय नमः |IEEE || कामदेव को जीतने से आप जितानंग हैं ||६|| ॐ ह्रीं यह कृपालुवे नमः ॥१०००|| दयावान होने से आप कृपालु है ॥ १००० ॥