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अमौकार ग्रंथ
ॐ ह्रीं ग्रह सूर्य कोटिसमप्रभाय नमः ।।८५१।। करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा होने से पाप सूर्य कोटिसमप्रभ हैं ।1८५१॥
ॐ ह्रीं अहं तपनीयर्यानभाय नमः ।।८५२।। सुवर्ण के समान सुन्दर पीतवर्ण होने से प्राप तपनीयनिभा कहलाते हैं ॥८५२॥
ॐ ह्रीं ग्रह तुंगाय नमः ।।८५३॥ ऊंचे शरीर को धारण करने से पाप तुंग है ॥८५३॥
ॐ ह्रीं मह वालार्कभाय नमः ।।८५४।। प्रातःकाल के उदय होते हुए सूर्य के समान कान्तिमान और सुन्दर होने के कारण आप बालार्कीभ कहलाते हैं ।।८५४॥
ॐ ह्रीं अर्ह अनिलप्रभाय नमः ।।८५५॥ अग्नि के समान प्रभावान होने से आप अनिलप्रभ हैं. १८५५||
___ ॐ ह्रीं अर्ह सन्ध्याभ्र वभ्र वे नमः ।।८५६।। सन्ध्या के बादलों के समान सुन्दर वर्ण होने से आप सन्ध्याभ्र वभ्र कहलाते हैं ।३८५६।।
ॐ ह्रीं ग्रह हेमाभाय नमः ।।८५७।। सुवर्ण के समान होने से पाप हेमाभ हैं ।।८५७।।
ॐ ह्रीं अह तप्त चामीकर प्रभाय नमः ||८५८] सुवर्ण के समान कान्तियुक्त होने से प्राप चामीकरप्रभ कहलाते हैं ।।८५८।।
ॐ ह्रीं मह निप्तप्तकनकच्छायाय नमः ||५६। कनकाचन सनिभायाय नमः ||१६|| हिरण्यवर्णाय नमः ।।८६१।। स्वर्णाभाय नमः ।।८६२।। शांतिकुंभनिभ प्रभाय नमः ।।८६३।। घुम्नाभाय नमः ॥८६४।। जातरूपाभाय नमः ॥८६५।। तप्तजाम्बूनदा तये नमः ॥८६६|| सुधौत कलधौत श्रिये नमः ।।६७॥ हाटका तये नमः ।।८६८।।
सुवर्ण के समान उज्ज्वल और कांतियुक्त होने से प्रार निप्तप्तकनकच्छाया ||८५६।। कनकाचन सनिभा ।। ६०| हिरण्यवर्गा ।।८६१।। स्वर्णाभा ।।८६२।। शांतकुंभनभप्रभा ।।८६३॥ गुस्नाभा ।।८६४॥ जातरूपाभ 1।८६५|| तप्तजाम्बूनद | ति ।।८६६।। सुधोतकलधौत श्री ।।८६७।। पौर हाटका ति कहलाते हैं ।।८६८॥
ॐ ह्रीं अर्ह प्रदीप्ताय नमः ।।६६६।। देदीप्यमान होने से पाप प्रदीप्त कहलाते हैं ।।८६६||
ॐ ह्रीं अहं शिष्टेष्टाय नमः ॥८७०॥ इंद्रादि उत्तम पुरुषों को प्रिय होने से प्राप शिष्टेष्ट हैं॥७ ॥
ॐ ह्रीं अहं पुष्टिवाय नमः ।७१॥ पुष्टि के दाता होने से प्राप पुष्टिदाता हैं ।।८७१॥ ॐ ह्रीं ग्रह पुष्टाय नमः ।।८७२|| महाबलवान् होने से पाप पुष्ट हैं ।।८७२।। ॐ ह्रीं पहँ स्पष्टाय नमः ।।८७३।। सबको प्रगट दिखाई देने से माप स्पष्ट हैं ।।८७३।।
ॐ ह्रीं महं स्पष्टाक्षराय नमः ॥८७४।। आपकी वाणी स्पष्ट तथा आनन्ददापनी होने से आप स्पष्टाक्षर हैं ।।०७४।
ॐ ह्रीं महं क्षमाय नमः ।।८७५।। आप समय होने से क्षम हैं ।८७५॥
ॐ ह्रीं ग्रह शत्रुघ्नाय नमः ॥८७६।। कर्म रूपी शत्रुओं को नाश करने से माप शत्रुघ्न कहलाते हैं ॥८७६||
ॐ ह्रीं पह प्रप्रतिगाय नमः ।।८७७। क्रोध रहित होने से आप अप्रतिग हैं ।।८७७॥
ह्रीं अहं प्रमोघाय नमः ।।८७८| सफल अर्थात् कृतकृत्य होने से पाप अमोघ हैं ।।८७८|| ॐ ह्रीं ग्रह प्रशास्त्रे नमः ।।८७६।। धर्मोपदेश देने से आप प्रशास्ता हैं 11८७६॥