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णमोकार प्रय
ॐ ह्रीं मह न्यायशास्त्रकृते नमः ॥१४३।। पाप प्रमाण पौर नयों के स्वरूप को दिखाने वाले है अतः भाप न्यायशास्त्रकृत कहलाते हैं ॥१४३॥
ॐ ह्रीं महं शास्ताय नमः ।।१४४।। पाप सभी को हितरूप उपदेश देने से शास्ता है ।।१४४।।
ॐ ह्रीं मह धर्मपत्तये नमः ।।१४५।। रत्नत्रय प्रपवा उत्तम क्षमादि धर्मों के स्वामी होने से माप धर्मपति है ॥१४॥
ॐ ह्रीं महं धर्माय नमः ।।१४६।। माप धर्मरूप होने से धर्म है ॥१४६।। ॐ ह्रीं महंधर्मारमाय नमः ॥१४७॥ आप धर्मात्मामों की वृद्धि करने से धरिमा ॥१४७॥
ॐ ह्रीं महं धर्मतीर्थकुते नमः १४८।। पाप धर्मरूपी तीर्थ की प्रवृत्ति करमे से धर्मतीकत कहलाते हैं ॥१४॥
ॐ ह्रीं प्रहं वृषध्वजाय नमः ॥१४६॥ पापकी ध्वजा पर बैल का चिन्ह होने से अथवा इषभ पर्यात् धर्म की ध्वजा फहराने वाले प्राप वृषध्वज कहलाते हें ॥१४६।।
ॐ ह्रीं मह वृषाधीशाय नमः ।।१५०॥ बाप अहिंसा रूपी धर्म के स्वामी होने से वृषाधीश कहलाते हैं ।। १५०॥
ॐ ह्रीं प्रहं वृषकेतवे नमः ॥१५१|| पाप धर्म को प्रसिद्ध करने से वृषकेतु है ॥१५॥
ॐ ह्रीं मह वषायुषाय नमः ॥१५२॥ आपने कमरूपी शत्रु को नाश करने के लिये धर्म रूपी शस्त्र को धारण कर रखा है इसलिये वृषायुध कहलाते हैं ॥१५२॥
ही अह वृषाय नमः । १५३१ माप धर्म की वृष्टि करने से वष हैं ॥१५॥ ॐ ह्रीं ग्रह वृषपतये नमः ॥१५४|| पाप धर्म के नायक होने से वृषपत्ति है ।। १५४।। ॐ ह्रीं पहं भवे नमः ॥१५५॥ पाप सबके स्वामी होने से भी हैं ॥१५५।। ॐ ह्रीं अहं वृषभाकाय नमः ।। १५६।। प्राप वृषभ का चिह्न होने से वृषाक है ॥१५६।।
ॐ ह्रीं पहं वृषोद्भवाय नमः ।।१५७।। माता को स्वप्न में वषम दिखाई देकर माप उत्पन्न हुये हैं अथवा महान् पुण्य से उत्पन्न हुये है। इसलिये आप पृषभोद्भव कहलाते हैं ।।१५७।।
ॐ ह्रीं पहं हिरण्यमामये नमः ।।१५८।। प्राय सुन्दर नाभि वाले होने से अथवा नाभिराजा की संतति होने से हिरण्यनाभि है ।।१५।।
ॐ हीं महं भूतात्मने नमः ।।१५६।पापका स्वरूप यथार्थ है, कभी नाश महीं होता इसलिये पाप भूतात्मा हैं ॥१५॥
ॐ ह्रीं अहं भूतमृते नमः ।।१६०॥ प्रापजीवों की रक्षा करने से मपवा कल्याण करने से भूतमृत कहलाते हैं ।।१६०॥
* ह्रीं पह भूतभावनाय नमः ।।१६।। पापको भावना सदा मंगल रूप है इसलिये माप भूतभावन कहलाते हैं ॥१६॥
ही प्रह प्रभन्ने नमः ॥१६२|| पापका जन्म प्रशंसनीय है पथवा मापसे प्रापके वंश की बखि हुई है इसलिये प्रभव कहे जाते हैं ॥१६२।।
ॐ ह्रीं महं विभवे नमः ॥१६३॥ संसार रहित होगे से पाप विभव है ।।१६३॥
ॐ ह्रीं पहं भास्थने नमः ॥१६४॥ केवलज्ञान नीति से प्रकाशमान होने से पाप भास्वम् है ॥१६॥
* हीं मई भवाम ममः ।।१६।। पाप में समय-समय में उत्पाव होता रहता है इसलिये पाप भव है ॥१६शा