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जमोकार प्रय
ॐ ह्रीं है स्तुतीश्वराय नमः ३३१४॥ समस्त स्तुतियों के ईश्वर होने से पाप स्तुतीश्वर हैं ।।३१४॥
ॐ ह्रीं अर्ह स्तवनायि नमः ।।३१५॥ स्तुतियों के पात्र होने से पाप स्तवनाह हैं ॥३१॥ ॐ ह्रीं प्रहं हषीकेशाय नमः ॥३१६।। इन्द्रियों को वश में करने से आप हृषीकेश हैं ।।३१६
ॐ ह्रीं अह जितजेयाय नमः ॥३१७॥ काम, क्रोध, रोग मादि को जीत लेने से जिसजेय हैं ।।३१७॥
ॐ ह्रीं महं कृतक्रियाय नमः ॥३१८॥ पापने शुद्ध पात्मा के प्राप्ति के कुत्य पूर्ण किये है, इसलिए पाप कृतक्रिय हैं ॥३१८॥
ॐ ह्रीं महं गणाधिपाय नमः ॥३१॥ बारह प्रकार की समानों के स्वामी होने से पाप गणाधिप हैं ॥३१॥
ॐ ह्रीं भई गणज्येष्ठाय नमः ॥३२०॥ समस्त संघ के मुख्य होने से माप गण ज्येष्ठ ॐ ह्रीं अहं गण्याय नमः ॥३२१॥ अनन्त गुणों के स्वामी होने से पाप गण्य हैं ।।३२१।। ॐ ह्रीं मह पुण्याय नमः ॥३२२। पवित्र होने से प्राप पुण्य हैं ।।३२२॥ ॐ ह्रीं पहं गणाग्रण्ये नमः ।।३२३।। सब के अग्रेसर होने से गणाग्रणी हैं ॥३२॥ ॐ ह्रीं पहँ गुणाकराय नमः ॥३२४।। गुणों की खान होने से गुणाकर हैं ॥३२४।। ॐ ह्रीं अहं गुणांबोषये नमः ॥३२५।। गुणों के समुद्र होने से गुणांबोधि है ।।३२५१ ॐ ह्रीं महं गुणशाय नमः ।।३२६।। गुणों को जानने से गुण हैं ।।३२६।।
ॐ ह्री अहं गुणनायकाय नमः ।।३२७|| समस्त गुणों के नायक होने से गुणनायक हैं ।।३२७॥
ॐ ह्रीं मह गुणादरये नमः ॥३२८।। गुणों का आदर करने से गुणादरी हैं ॥३२८।।
ॐ ह्रीं अहं गुणोच्छेदये नमः ।।३२६।। क्रोधादि वैमानिक गुणों का नाश करने से प्रपवा इन्द्रियों का नाश करने से गुणोच्छेदी हैं ।। ३२६।।
ॐ ह्रीं ग्रह निर्गुणाय नमः ॥३३०॥ केवलज्ञानादि गुण निश्चित रूप होने से अथवा वैमानिक गुणों का नाश करने से अथवा गुण अर्थात् तन्तु वा वस्त्र रहित होने से निर्गुण हैं ।।३३०।।
ॐ ह्रीं अहं पुण्यगिरे नमः ॥३३१॥ आपकी वाणी पवित्र है इसलिए पुण्यगी हैं ॥३३॥ ॐ ह्रीं अह गुणाय नमः ॥३३२।। शुद्ध गुण स्वरूप होने से गुण हैं ॥३३॥ ॐ ह्रीं अहं शरण्याय नमः ॥३३३॥ सब के शरण भूत होने से शरण्य हैं ॥३३३॥ ॐ ह्रीं मह पुण्यवाचे नमः ।।३३४|| पुण्य रूप वचन होने से पुण्यवान हैं ।।३३४|| ॐ ह्रीं पह पूताय नमः ॥३३५।। पवित्र होने से पूत हैं ॥३३॥
ॐ ह्रीं मह वरेण्याय नमः १३३६।। सब में श्रेष्ठ होने से पथवा जीवों को अपना सा मुक्त स्वरूप करने से वरेण्य हैं ॥३३६॥
ॐ ह्रीं पहं पुण्यनायकाय नमः ॥३३७।। पुण्य के स्वामी होने से पुण्य नायक हैं ।।३३७॥
ॐ ह्रीं प्रहं प्रगण्याय नमः ।।३३८॥ प्रापका परिमाण नहीं किया जा सकता अथवा मापके गुण नहीं गिने जा सकते इसलिए मगण्य हैं ॥३३८||
ॐ ह्रीं मह पुण्यधिये नमः ॥३३६॥ पवित्र शान होने से पुण्यपी है ॥३३॥