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णमोकार ग्रंथ
ॐ ह्रीं अह महेंद्राय नमः ॥४३७।। पूजा के अधिपति होने से अथवा इन्द्र से भी अधिक संपतिवान् होने से आप महेन्द्र हैं ॥४३७॥
ॐ ह्रीं ग्रह अतींद्विवीय नमः । ४६५८६न्द्रित के प्रशन्न पदार्थों को भी जानने से श्राप अतींद्रियार्थदक हैं ।।४३८॥
ॐ ह्रीं अह अनोंद्रियाय नमः ।।४३६।। इन्द्रिय रहित होने से आप अनिद्रिय हैं ।।४३६॥ ____ॐ ह्रीं अह अहमिद्राचार्याय नमः ॥४४०।। आप अहमिन्द्रों के द्वारा पूज्य होने से अमिद्राचार्य
हैं ।।४४०॥
ॐ ह्रीं अह" महेन्द्रमहिताय नमः ॥४४१शा समस्त बड़े-बड़े इन्द्रों के द्वारा पूज्य होने से प्राप महेन्द्रमहित हैं ।।४४१।।
ॐ ह्रीं ग्रह महते नमः ।।४४२।। आप सबसे पूज्य व बड़े होने से महान् हैं ॥४४२॥
ॐ ह्रीं ग्रह उद्भवाय नमः ॥४४३।। जन्म, मरण रहित होने से अथवा सर्वोत्कृष्ट होने से आप उद्भव है ।।४४३॥
ॐ ह्रीं अर्ह कारणाय नमः ।।४४४।। मोक्ष के कारण होने से पाप कारण हैं ॥४४४|| ॐ ह्रीं अहं कृते नमः ॥४४५।। शुद्ध भावों के कर्ता होने से आप कर्ता हैं ।।४४५।। ॐ ह्रीं अहं पारगाय नमः ।।४४६॥ संसार समुद्र के परागामी होने से आप पारग हैं ||४४६॥
ॐ ह्रीं अहं भवतारकाय नमः ।।४४७॥ भव्य जीवों को संसार ससुद्र से पार कर देने से आप भवतारक हैं ॥४४७॥
ॐ ह्रीं अह अगाडाय नमः ।।४४८|| किसी के भी द्वारा अबगाह्न न करने से आप अगाय हैं ।।४४८।।
ॐ ह्रीं अहं गहनाय नमः ।।४४६।। प्रापका स्वरूप हर एक कोई नहीं कह सकता और न जान सकता है इसलिए गहन हैं ।।४४६।।
___ॐ ह्रीं अह गुह्याय नमः ॥४५०। परम रहस्यरूप अर्थात् गुप्त रूप होने से आप गुह्य हैं ।।४५०॥
ॐ ह्रीं ग्रह परााय नमः ॥४५१|| आप उत्कृष्ट विभूति के स्वामी होने से परायं हैं॥४५॥
ॐ ह्री अहं परमेश्वराय नमः ||४५२|| सबके स्वामी होने से अथवा मोक्षलक्ष्मी के स्वामी होने से आप परमेश्वर हैं ।।४५२।।
___ॐ ह्रीं अह अनंतर्द्धये नमः ॥४५३।। आप अनन्त ऋद्धियों के धारण करने से अनंतद्धि हैं ॥४५३॥
ॐ ह्रीं अह अमेयर्द्धये नमः ॥४५४।। आप अपरिमित ऐश्वर्य को धारण करने से अमेद्धि हैं ||४५४॥
ॐ ह्रीं अहं अचित्यर्द्धये नमः ।।४५५।। आपकी सम्पति का कोई चितवन भी नहीं कर सकता इसलिए आप अचियद्धि हैं ॥४५५॥
ॐ ह्रीं अहं समाधिये नमः ॥४५६।। जगत के समस्त पदार्थों को जानने योग्य होने से अथवा पूर्ण ज्ञानी होने से प्राप समग्रधी हैं ।।४५६॥
ॐ ह्रीं अहं प्राग्यग्राय नमः ।।४५७।। आप सब में मुख्य होने से प्राग्नय हैं ॥४५७।।