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णमोकार ग्रंथ
ॐ ह्रीं ग्रहं अनंत धामर्षये नमः ॥७६६ ।। अनन्त प्रकाश को धारण करते हुये भी पूज्य होने से प्राप अनंतधामषि हैं ॥ ७६६ ।।
ॐ ह्रीं श्रहं मंगलाय नमः ।।७६७ || सबको सुख देने से श्राप मंगल हैं || ७६७॥
ॐ ह्रीं अर्ह मलने नमः || ७६८ || पापों को दूर करने से श्राप मलहर हैं ।।७६८ ।।
ॐ ह्रीं श्रहं अनघाय नमः ॥ ७६६ ॥ समस्त पापों से रहित होने से आप श्रनध है || ७६६ ॥ ॐ ह्रीं अहं मनीदृद्धे नमः ||७७० || आप के समान अन्य कोई न होने से प्राप प्रतीदृक्
हैं ।। ७७० ॥
ॐ ह्रीं श्रीं उपमाभूताय नमः ॥ ७७१|| सबके लिये उपमा योग्य होने से भाप उपमाभूत
महाभाग्यशाली होने से अथवा शुभाशुभ दाता होने से
ॐ ह्रीं आप दिष्टि है ।। ७७२ ॥
ॐ ह्रीं महं देवाय नमः ॥ ७७३ || प्रबल अथवा स्तुति करने योग्य होने से भाप देव हैं ।। ७७३ ।। ॐ ह्रीं महं प्रगोचराय नमः | ७७४ || इन्द्रियों के अगोचर अथवा वचनों के प्रगोचर होने से माप अगोचर हैं ||७७४॥
हैं ।। ७७१।।
ॐ ह्रीं मह प्रमूर्तये नमः ।। ७७५॥ शरीर रहित होने से श्राप अमूर्त हैं ।। ७७५॥ मूर्तिमते नमः | ७७६ || पुरुषाकार होने से आप मूर्तिमान हैं ॥ ७७६ ॥
ॐ ह्रीं ॐ ह्रीं म प्राप्त कर लेने से प्राप
ॐ ह्रीं
होने से नैक हैं । ७७८६ ॥
दिष्टये नमः ॥ ७७२ ॥
एकस्मै नमः ॥७७७ ॥ श्रद्वितीय होने से अथवा बिना किसी भी सहायता के मोक्ष एक हैं ।।७७७॥
कस्मै नमः ||७७८ || श्राप अनेक रूप होने से अथवा सब भव्य जीवों का सहायक
ॐ ह्रीं मह नानैकतस्त्वदृशे नमः ||७७६ ॥ आत्मा से अतिरिक्त अन्य तत्वों को न देखने से र्थात् उनमें तल्लीन न होने से आप नाननैकतत्वदृक् कहलाते हैं ||७७६ ||
योगदित हैं ||७८३॥
ॐ ह्रीं श्री अध्यात्मगम्याय नमः ॥ ७८० || केवल अध्यात्म शास्त्रों के जानने योग्य न होने से आप अध्यात्मत्मगम्य हैं ||७८६० ॥
ॐ ह्रीं श्रगम्यात्मने नमः | ७८१|| संसारी जीवों के जानने योग्य न होने से श्राप प्रगम्यामा हैं ||७८१॥
ॐ ह्रीं श्रीं योगविदे नमः || ७८२ ॥ | योग के जानकार होने से प्राप योगवित् हैं ||७८२ ॥ ॐ ह्रीं योगवंदिताय नमः ।।७८३|| योगियों के द्वारा वंदना करने योग्य होने से प्राप
ॐ ह्रीं श्रीं सर्वत्रगाय नमः ||७८४ ॥ ज्ञान के द्वारा सर्वत्र व्याप्त होने से भाप सर्वत्रय
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ॐ ह्रीं अर्ह सदा भाविने नमः ॥७६५ || सदा विद्यमान रहने से माप सदा भावी हैं ।। ७८५ ।। त्रिकालविषयार्थदुगे नमः ॥७५६॥ तीनों काल अर्थात् भूत, भविष्यत् वर्तमान काल सम्बन्धी समस्त पदार्थों को देखने से त्रिकाल विषयाथंद्ग हैं ||७८६ ॥
ॐ ह्रीं
ॐ ह्रीं हुं शंकराय नमः ।। ७८७ ।। सबको सुख का कर्त्ता होने से आप शंकर हैं !७८७॥