________________
गमोकार प्रय
।
ॐ ह्रीं अहं निर्मलाय नमः ॥७४५॥ आप ममत्व रहित होने से निर्मल हैं ।।७४५।। ___ॐ ह्रीं प्रहं अमोघशासनाय नमः ॥७४६॥ पापका शास्त्र कभी व्यर्थ म होने से अर्थात् जीवों को मोक्ष प्राप्त करा देने से आप अमोघशासन हैं ॥७४६॥
ॐ ह्रीं मह सुरूपाय नमः ॥७४७॥ आपका स्वरूप आनंददायक होने से प्राप सुरूप हैं ॥७४७।।
ॐ ह्रीं अहं सुभगाय नमः ॥७४८।। अापके ज्ञान का अतिशय महात्म्य होने से प्राप सुभग हैं ॥७४८॥
ॐ ह्रीं अर्ह त्यागिने नमः ॥७४६।। ज्ञानदान, अभयदान प्रादि देने से पाप त्यागी हैं ।।७४६॥
ॐ ह्रीं अह समयज्ञाय नमः ॥७५०॥ प्रात्म सिद्धांत तथा कालस्वरूप जानने से पाप समयश हैं ॥७५०॥
ॐ ह्रीं प्रहं समाहिताय नमः ॥५१॥ समाधान रूप होने से अथवा ध्यान स्वरूप होने से प्राप समाहित हैं ॥७५१॥
ॐ ह्रीं अहं सुस्ताय नमः !:५६ ।। निगपत एयर हाल में निमग्न रहने से पाप सुस्थित हैं ॥७५२।।
ॐ ह्रीं अहं स्वास्थ्यभाजे नमः ।।७५३॥ आत्मा को निश्चलता को सेवन करने से प्राप स्वास्थ्यभाक् हैं ॥७५३॥
ॐ ह्रीं अहं स्वास्थाय नमः ॥७५४|| सदा प्रात्मनिष्ठ होने से आप स्वस्थ हैं ।।७५४||
ॐ ह्रीं अहं नीरजस्काय नमः ॥७५५॥ कर्मरूप रज से रहित होने से अथवा ज्ञानावरण, दर्शनावरण कर्म रहित होने से आप नीरजस्क हैं ॥७५५।।
ॐ ह्रीं अहं निरुद्धवाय नमः ॥७५६।। आपका कोई स्वामी न होने से आप निरुद्धव हैं ।।७५६।।
ॐ ह्रीं अर्ह अलेपाय नमः ।।७५७।। कर्म के लेप रहित होने से आप निर्लेप हैं ।।७५७।।
ॐ ह्रीं ग्रहं निष्कलंकात्मने नमः ।।७५८॥ दोष रहित होने से आप निष्कलंकात्मा हैं ॥७५८॥
ॐ ह्रीं मह वीतरागाय नमः ।।७५६॥ रागादि दोषों से रहित होने से अथवा मोक्ष लक्ष्मी में प्रेम होने से आप वीतराग हैं ।।७५६॥
ॐ ह्रीं मह गतस्पृहाय नमः ।।७६०। आप इच्छा रहित होने से गतस्पृह हैं ।।७६०॥ ॐ ह्रीं मह वश्यंद्रियाय नमः ॥७६१॥ इन्द्रियों को वश करने से पाप वश्यन्द्रिय हैं ॥७६१॥
ॐ ह्रीं ग्रह विमुक्तात्मने नमः ॥७६२।। संसार रूपी बंधन से रहित होने के कारण भाप विमुक्तात्मा हैं ॥७६२॥
ॐ ह्रीं अहं निःसपलाय नमः ॥७६३॥ दुष्ट भाव न रहने से अथवा निष्कंटक होने से आप निःसपल हैं 11७६३।।
ॐ ह्रीं प्रहं जितेंद्रियाय नमः ॥७६४॥ आप इन्द्रियों को जीतने से जितेंद्रिय है ॥७६४॥
ॐ ह्रीं मह प्रशांताय नमः ॥७६५॥ शांत होने से अथवा राष रहित होने से आप प्रशांत हैं ॥७६॥