________________
जनधर्म का महत्व
वास्तविक स्वरूप को जानते हुए सत्-श्रद्धा-वाला (सम्यक्त्ववान) गृहस्थ ही श्रावक धर्म का अधिकारी है। श्रावक किसे कहते हैं
संपत्त-दसणाई पइदियहं जइजणा सुणेईय।
सामायारि परमं जो खलु तं सावगं बिति ।। अर्थात्-जो सम्यग्दर्शन प्राप्त कर प्रतिदिन साधुजनों की परम सामाचारी (प्राचार विषयक उपदेश ) का श्रवण करता है, उसे श्रावक कहते हैं।
श्रावक-श्राविका का धर्म
जैनागम का विधान है- “चारित्तं धम्मो” अर्थात् चरित्र ही धर्म है । चरित्र क्या है ? इस प्रश्न का समाधान करते हुए कहा गया है कि--
"असुहाम्रो विणिवित्ति सुहे पवित्ती य जाण चारितं ॥" अर्थात्-अशुभ का त्याग करना तथा शुभ का प्राचरण करना चारित्र कहलाता है।
वस्तुतः सम्यक् चारित्र या सदाचार ही मानव की मानदता है। सदाचारहीन जीवन गन्धहीन पुष्प के समान है। श्रावक-श्राविका के चारित्र (धर्म) में बारह व्रतों का समावेश है।
श्रावक-श्राविका के १२ व्रतों के नाम
पांच अणुव्रत-१-स्थूल प्राणातिपात विरमण (अहिंसा) अणुव्रत, २-सत्याणुव्रत, ३-अचौर्याणुव्रत, ४-ब्रह्मचर्याणुव्रत, ५-परिग्रह परिमाणाणुव्रत ।
तीन गुणवत-६-दिग्परिमाणव्रत, ७-भोगोपभोग परिमाण व्रत, ८-अनर्थदंड विरमण व्रत ।
चार शिक्षाव्रत-६-सामायिक व्रत, १०-देशावकाशिक व्रत, ११-पौषधोपवास व्रत, १२-अतिथि -संविभाग व्रत ।
(१) अहिंसा अणुव्रत
पहला व्रत-'स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत है । अर्थात् जीवों की हिंसा से विरत होना। संसार में दो प्रकार के जीव हैं-स्थावर और त्रस । जो जीव अपनी इच्छानुसार स्थान बदलने में असमर्थ हैं वे स्थावर कहलाते हैं। पृथ्वी काय, अप्काय (पानी), अग्नि काय, वायुकाय तथा वनस्पतिकाय ये पांच प्रकार के स्थावर जीव हैं । इन प्राणियों के मात्र स्पर्शनेन्द्रिय होती हैं । अतएव इन्हें एकेन्द्रिय जीव भी कहते हैं ।।
जो जीव एक स्थान से दूसरे स्थान पर अपनी इच्छा के अनुसार आते जाते हैं, जो चलते, फिरते और बोलते हैं वे त्रस हैं । इन त्रस जीवों में कोई दो इन्द्रियों वाले, कोई तीन इन्द्रियों बाले, कोई चार इन्द्रियों वाले, कोई पाँच इन्द्रियों वाले होते हैं । संसार में समस्त जीव स्थावर और त्रस विभागों में समावेश पा जाते हैं ।
___ साधु-साध्वी दोनों प्रकार के जीवों की हिंसा का पूर्णरूप से त्याग करते हैं । परन्तु गृहस्थ ऐसा नहीं कर सकते । अतएव उनके लिये स्थूल हिंसा के त्याग का विधान किया गया है। निरापराध त्रस जीवों की संकल्पपूर्वक की जाने वाली हिंसा को ही गृहस्थ त्यागता है ।
जन शास्त्रों में हिंसा चार प्रकार की बतलाई गई है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org