________________
हस्तिनापुर में जैनधर्म
२२३
है। कई छोटे-बड़े टीले इस से संबद्ध हैं । इन में प्रधान बड़ा टीला ही विदुर का टीला कहलाता है । खेड़ा बस्ती को कहते हैं। उल्टाखेड़ा शब्द से ध्वनित होता है कि जनश्रुति इसे एक उलटपलट गई बस्ती मानती है । यह टीला मेरठ हस्तिनापुर सड़क के सिरे पर दाहिनी ओर और श्वेतांबर जैन मंदिर की दक्षिण पश्चिम दिशा में सड़क के उस पार स्थित है। तथा आज भी पांडवों और कौरवों के धर्मात्मा चाचा विदुर महाराज की स्मृति को अक्षुण्ण बनाये हुए है। यह टीला श्वेतांबर जैनों का था। कुछ वर्ष हुए भारत सरकार ने इसे एक्वायर कर खुदाई करबाई थी। इस की खुदाई से प्राचीन इमारतों के भग्नावशेष तथा कुछ तीर्थंकरों की खंडित प्रतिमाएं मिली थीं। इनमें से एक खंडित मूर्ति का चित्र यहाँ दिया है। यह प्रतिमा सिर बिना का धड़ है और दोनों कंधों पर केशों की जटा-जट के निशान है। इससे स्पष्ट है कि यह खंडित प्रतिमा श्वेतांबर जैनों की मान्यता वाली प्रथम तीर्थकर श्री ऋषभदेव की है। इस टीले पर श्वेतांबर जैनों की एक छत्री भी थी जिसमें प्राचीन चरणपट्ट स्थापित थे । इस टीले की खुदाई से पुरानी इमारतों की दीवालें भी मिली है।
(२) पांडुकेश्वर महादेव शिवालय - यह वह छोटा शिवालय है जो विदुर टीले के पीछे की ओर निचली भूमि पर बना हुमा है । संभवतः प्राचीन पांडुकेश्वर शिवमंदिर इसी स्थान पर बना हुआ हो । जनश्रुति इसी शिवालय को पांडव निर्मित मंदिर मानती है। परन्त वर्तमान इमारत दो-डेढ़ सौ वर्ष से पुरानी नहीं है।
(३) बुढ़ गंगा का घाट-पांडव महाल में स्थित और उल्टाखेड़ा टीले से लगभग १ मील दक्षिण-पश्चिम में बढ़ी गंगा का द्रौपदी घाट है। उसी के निकट एक झील को द्रौपदी कड और दूसरी को वराह कुंड कहते हैं । पास में ही हाल में बनाया हुआ एक छोटा सा मकान द्रौपदी का रसोइघर कहलाता है।
(४) कौरव महल में स्थित बुड़ गंगा का जो घाट है । वह कोरवों के सखा अंगराज कर्ण के नाम से कर्णघाट कहलाता है। कार्तिक पूर्णिमा के पर्व पर निकटवर्ती ग्रामों की हिन्द जनता बड़ी संख्या में उक्त दोनों घाटों पर एकत्रित होती है और पर्व स्नान का पुण्य उपार्जन करती है। यहाँ अनेक संस्कार भी किये जाते हैं।
(५) बारहदरी-जैन निशियाँ जी के मार्ग पर दिगम्बरों की पहली और दूसरी निशि के बीच सड़क की दाहिनी ओर वाली टीलों की श्रेणी के मध्य वाले टीले की चोटी पर प्रस्तर और चूने से निर्मित बारहदरी नुमा एक प्राचीन विशाल बुर्ज बना हुआ था। जो अभी कुछ वर्ष हुए गिर कर नष्ट हो गया है । इस के पत्थर अब भी वहाँ पड़े हैं। यह बुर्ज किसी विशाल राजभवन या महत्वपूर्ण ईमारत का ऊपरी अंश प्रतीत होता है ।
(६) मुस्लिम राज्यकाल में भी शाह कबीर, शाह मखदूम, आदि कई मसलमान फ़कीरों, पीरों और सैयदों ने इस स्थान को अपनी इबादतगाह बनाया था । इन फ़कीरों आदि से संबंधित ईमारतों और मस्जिदों के खंडहर अब भी वहाँ मौज द हैं ।
(७) इन अवशेषों में सर्व प्रमुख मुग़लकालीन काजीपुर नगर के भग्नावशेष हैं। जो हस्तिनापुर और गणेशपुर के बीच स्थित हैं। इन के सामने ही नवीन हस्तिनापुर बसाया गया है। इस काजीपुर को मुगल सम्राट शाहजहाँ के एक अफ़सर काजी क़यामुद्दीन ने राजकीय प्राज्ञा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org