Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 611
________________ साध्वी प्रियदर्शनाश्री ५६२ की । प्रातःकाल पोरिसी, रात्रि चौविहार पच्चक्खाण, वि० सं० १९८५ से सपत्नी आजीवन अखंड ब्रह्मचर्य व्रत का पालन; जिनबिंब-मंदिर प्रतिष्ठानों में सक्रिय सहयोग, गुरु के आदेशों का सर्वदा पालन करते थे। अपने निवासस्थान से निष्क्रमण ई. स. १६४७ (वि० सं० २००४) को स्वतन्त्रता प्राप्ति तथा देश के पाकिस्तान हिंदुस्तान के विभाजन हो जाने के कारण गुजरांवाला (उत्तर पंजाब का प्रसिद्ध नगर) भी पाकिस्तान में आ गया। इस समय इस नगर की जन गणना लगभग एक लाख की थी। उस समय यहां पर जैन बीसा ओसवाल भावड़ों के लगभग तीन सौ घर थे । श्वेतांबर जैनों के सवा दो सौ के लगभग तथा स्थानकमागियों के लगभग पचहत्तर घर थे। सभी परिवार सम्पन्न और सुखी थे। नगर में इस समाज की सब कोमों में बहुत मान-प्रतिष्ठा थी। पाकिस्तान बन जाने के बाद ता० २७ सितम्बर १९४७ ई० को प्रात: १० बजे मिलिटरी के ट्रक उपाश्रय के आगे आ खड़े हुए। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक तथा स्थानकमार्गी सकल श्रीसंघ तथा साधु-साध्वियों को साथ में लेकर प्राचार्य भगवान्-गुरुदेव विजयानन्द सूरि जी के समाधि मंदिर तक पैदल चलकर पहुंचे और गुरुदेव के समाधिमंदिर में अंतिम दर्शन कर सबने यहां से भारत पाने के लिये कूच किया और दूसरे दिन भादों सुदि १३ वि० सं० २००४ ता० २८ सितम्बर १९४७ को अमृतसर (भारत की सीमा) में प्रा पहुंचे। सबको अपनी मातृभूमि से तथा चल-अचल सम्पत्ति से सदा के लिए वंचित होना पड़ा। रास्ते में श्री दीनानाथ जी का द्वितीय पुत्र जिसका नाम लखमीलाल था यह संघ के साथ पाकिस्तान से भारत प्राता हुआ मुसलमान पातताइयों द्वारा लाहौर में कतल कर दिया गया जिसकी प्रायु उस समय ४० वर्ष की थी। प्राप (दीनानाथ जी) का परिवार भी ता० ५ सितम्बर १९४७ ई० को आगरा में आ गया हीरालाल अपने परिवार के साथ भिंड (ग्वालियर स्टेट) में चला गया। प्रागरा पहुँचने पर चार पंजाबी श्रावक भाइयों के साझे में महेन्द्रलाल ने सराफ़े (सोने-चांदी)की दुकान का मुहूर्त कर लिया। यह धंधा दिन प्रतिदिन उन्नति करने लगा और आपका परिवार स्थाई रूप से आगरा में प्राबाद हो गया। शादीलाल ने भी अपने पुत्र प्रशंसकुमार के साथ यहाँ पाकर बर्तनों की दुकान कर ली। रमणीक कुमार ने भी अपने बहनोई किशोरीलाल जी की साझेदारी में बसाती की दुकान कर ली। पश्चात् महेन्द्र लाल और रमणीककुमार ने सब साझेदारियां समाप्त कर दोनों भाइयों ने वि० सं० २००८ साख सुदि ६ रविवार को आगरा में लोहारगली में मनियारी (बसाती सौदागरी) की थोक दुकान कर ली। फ़र्म का नाम महेन्द्रलाल रमणीककुमार रखा गया। वि० सं० २००६ चैत्र सुदि १ बुधवार चैत्र प्रविष्टे १८ की नये संवत् के प्रथम दिन पंजाबी जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक भाइयों ने आगरा में श्री प्रात्मानन्दजैन पंजाबी संघ समिति की स्थापना को कार्यकारिणी के सात सदस्य निर्वाचित हुए। आपको इस कार्यकारिणी का मंत्री बनाया गया। इस दिन से लेकर पापने जीवन के अंतिम श्वासों तक मंत्री पद से श्रीसंघ की सेवा में बिताये। इस समय प्रापकी आयु ६७ वर्ष की थी। थोड़े दिन बीमार रहने के बाद वि० सं० २०१० मिति चैत्र वदि ५ को ६७ वर्ष की आयु में आपका आगरा में स्वर्गवास हो गया। उस दिन श्री पंजाबी मूर्तिपूजक श्वेतांबर जैन संघ प्रागरा ने अपना कारोबार बन्द रखा और आपकी अर्थी पर दोशाले डाले गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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