Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 617
________________ ५६८ लाला टेकचन्द जी (फगवाड़ा निवासी) बीसा सवाल गद्दहिया गोत्रीय लाला काशीराम जी स्थानकवासी जैन मतानुयायी एक समृद्ध श्रावक थे । प के यहाँ बालक टेकचन्द ने ई० सं० १९०२ में जन्म लिया । स्कूल की पढ़ाई के बाद आप भी अनाज का व्यवसाय करने लगे। बचपन से ही श्रापकी धर्म में रुचि थी स्थानकवासी साधु-साध्वियों के सानिध्य से प्रापको सामायिक प्रतिक्रमण, व्रत- पच्चक्खाण करने में विशेष लगन थी! साम्प्रदायिक भेदभाव से आप कोसों दूर थे 1 फगवाड़ा स्थानकवासी श्रीसंघ के श्राप प्रधान थे । ३२ वर्ष की आयु में आप परिवार के साथ अमृतसर चले आये वहाँ पर आपका व्यवसाय खूब चमका। जैसे-जैसे धन बढ़ता गया वैसे-वैसे ही आप विनम्र दानी तथा सर्वप्रिय बनते गये । ई० स० १९५० में आप अपने परिवार के साथ दिल्ली चले आये । आढ़त का व्यवसाव शुरू किया तत्पश्चात् आपने जैन फायनेन्स कम्पनी की स्थापना की । इसका प्रधान कार्यालय दिल्ली में तथा काश्मीर और ग्रासाम में शाखायें स्थापित कीं। जिनके द्वारा मोटरों, बसों, ट्रकों का व्यवसाय होता हैं । आप बहुत बड़े समृद्धिशाली होते हुए भी जैन धर्म के दृढ़ श्रद्धावान, सच्चरित्र, सरल, विनम्र, गुप्तदानी, व्रत- पच्चक्खाण, सामायिक, प्रतिक्रमण प्रतिदिन करते थे । जैन साहित्य के प्रचार और प्रसार में विशेष रुचि रखते थे । वीरनगर जैन कालोनी दिल्ली स्थानकवासी श्रीसंघ के प्राप प्रधान थे । श्रापका स्वर्गवास ई० स० १६७४, ता० २६ नवम्बर को दिल्ली में हो गया । अपने पीछे श्री मदनलालजी, श्री श्रोमप्रकाशजी, श्री जिनेश्वर दासजी, तीन पुत्रों के भरे-पूरे परिवार के साथ छोड़ गये । मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म -:०: ला० खजानचीलाल जी ( लाहौरवाले) श्रापका जन्म सन १८६४ ई० लाहौर में हुआ । लाहौर में जो भी साधु-साध्वी प्राते रहे उनके विहार में आप हमेशा साथ रहे । जिससे सभी गुरु महाराजों से परिचय रहा और धर्म में लगन रही । लाहौर में मंदिर - जी की प्रतिष्ठा पर भोजनशाला का सारा प्रबन्ध मापने ही किया । Jain Education International दादावाड़ी श्री जिनकुशल सूरिजी महाराज, गुरुमांगट (लाहौर) का प्रबन्ध श्राप ही करते थे और वहाँ पर कमरों के लिये जगह आपने खरीद कर दी । पाकिस्तान बन जाने पर जंडियाला गुरु में श्रा गये For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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