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लाला भोलानाथ जैन
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धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में आप सर्वत्र सम्मान्य है। श्री प्रात्म-वल्लभ जैन स्मारक शक्षण-निधि तथा दिल्ली प्रदेश भगवान् महावीर २५ वीं निर्वाण-शताब्दी समिति के आप महामंत्री हैं।
आप श्री हस्तिनापुर जैन श्वेतांबर तीर्थ समिति के ट्रस्टी हैं, सेठ प्रानंदजी कल्याणजी की पेढ़ी के प्रांतीय प्रतिनिधि हैं, तथा श्री प्रात्मानंद जैन सभा दिल्ली, म० भा० महावीर मैमोरियल समिति दिल्ली आदि अनेक संस्थानों के प्राणोपम कार्यकर्ता हैं।
आप अनेक बार विदेश यात्रायें कर चुके हैं, किंतु अपने जैनत्व को सुरक्षित रखते हुए। आप रूढ़ियों से मुक्त, किंतु धर्म के प्रति समर्पित चिंतनशील अध्यवसाय के धनी युवक हैं। हम आपकी औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ आपकी धर्मनिष्ठा की वृद्धि, सेवाभाव की समृद्धि की भी दाद देते हैं।
__ लाला भोलानाथ जी खंडेलवाल जैन प्रापका जन्म सनखतरा जिला स्यालकोट में श्वेतांबर जैन मूर्तिपूजक धर्मानुयायी लाला बेली राम जी के यहाँ हुआ। डी० ए० वी० कालेज लाहौर में शिक्षा प्राप्त की। आप विद्यार्थी अवस्था में ही जैनसमाज की सेवा के कार्यो में दिलचस्पी लेने लगे। आपने इन्डस्ट्री के कार्यों में रुचि होने से स्यालकोट में लाला टेकचन्द स्थानकवासी जैन की साझेदारी में सन् ई० १९३५ मे रबर के सामान तैयार करने की फेक्टरी लगाई। उत्तर भारत में यह रबड़ का कारखाना सर्वप्रथम था। पापकी सूझबूझ तथा परिश्रम के कारण इस कारखाने ने उत्तर भारत के पंजाब में खूब तरक्की की और लिमिटिड कम्पनी के रूप में प्रख्याति प्राप्त की। स्यालकोट में ही इस कारखाने को उन्नति के शिखर पर पहुँचाकर आप इससे अलग हो गये और कराची मे जाकर अपना नया धंधा शुरू किया। इस प्रकार प्रापने अनेक बार उत्कर्ष-अपकर्षों का सामना किया । आपका सारा जीवन जद्दोजहद में गुजरा। पर आपने हौसला कभी नहीं हारा और अपनी इमानदारी, परिश्रम और सूझबूझ से आपत्तियों को पार करते चले गये। पाकिस्तान बनने के बाद पाप अपने परिवार के साथ दिल्ली पाकर आबाद हो गये और यहां आकर भी आप ने साझेदारी में रबड़ इंडस्ट्री लगाई । आपका स्वर्गवास दिल्ली में ता० १६ जून १६७२ ई० में हो गया। इस समय पाप के पूत्रों की बहादुरगढ़ में अपनी निजी रबड़ इंडस्ट्री है। आप समाज सुधारक, क्रांतिकारी विचारों के थे । श्री प्रात्मानन्द जैन महासभा पंजाब के प्रधान, श्री आत्मानन्द जैनकालेज अंबाला, श्री प्रात्मानन्द जैनगुरुकुल पंजाव गुजरांवाला, श्री हस्तिनापुर जैनश्वेतांबर तीर्थ समिति मादि भनेक जैनसंस्थानों के कर्मठ पदाधिकारी रहे हैं । आप ने अपना सारा जीवन समाज सुधार, कुरीतियों के निवारन, सुलहकुन, संगठन के अग्रदूत, क्रांतिकारी, मिलनसार तथा जन-जन के कष्ट विवरण में व्यतीत किया।
पंजाब में पोसवाल-खंडेलवाल समाजों में परस्पर विवाह-शादी के प्रचलन की शुरुवात होना पाप की सूझबूझ, अदम्य उत्साह तथा क्रांतिकारी सुधारक विचारों का ही परिणाम है। इस कार्य में पाप ने अपनी बहन का रिश्ता ओसवालों में करके अपनी समाज के विरोध का सिंह के समान मुकाबिला किया और अपने दृढ़ संकल्प से टस से मस न हुए । अन्त में आप विजयी हए।
आप का सारा जीवन आर्थिक दृष्टि से संघर्षमय बीता है। ऐसी कटोकटी के अवसर पर भी प्राप सदा समाज की सेवा में अग्रणी रहे । जीवन के अन्तिम श्वासों तक आप धर्म मौर समाज की सेवा करते रहे। माप जैनसमाज के कर्णधार-वीर सेनानी के रूप में युग-युग तक युवकों के पथ प्रदर्शक के रूप में स्मरण किये जाते रहेंगे।
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