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श्री बाबूराम व श्री खेतराम
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वह महान् स्वाध्यायी थे और जैनइतिहास में उनकी विशेष रुचि थी । पंजाब श्रीसंघ के तो वे जीवित इतिहास थे और समस्त गतिविधियों का उन्हें परिचय था ।
शिक्षा के कार्य में उनका योगदान अनुपम था । श्री श्रात्मानन्द जैनगुरुकुल के वे वर्षों तक ट्रस्टी और प्रबंधक समिति के सदस्य रहे । श्री श्रात्मानन्द जैनकालिज अम्बाला शहर के ये संस्थापक सदस्य थे और अनेक वर्षों तक मैनेजिंग तथा कालिज कमेटी के सदस्य रहे । उनकी अटल धारणा थी कि यदि हमारी शिक्षण संस्थाएं जैनसंस्कृति के अध्ययन और प्रवाह की ओर ध्यान नहीं देतीं तो उसका चलाना या न चलाना समान है । उनकी विचारधारा तार्किक, समयानुकूल और प्रगतिशील थी । समाज के उत्थान की उनके हृदय में सच्ची तड़प थी । उनका अनेक अन्य संस्थानों से भी सम्बन्ध था । आनन्दजी कल्याणजी की पेंढ़ी में वे पंजाब का प्रतिनिधित्व करते रहे । उनका १६७० ई० में निधन हुप्रा । सच तो यह है कि समाज में उनके स्थान की पूर्ति कठिन ही है ।
श्री खेतराम नौलखा
जीरा जिला फिरोजपुर (पंजाब) में वि० सं० १९५३ मिति जेठ प्रविष्ठे ६ को लाला हेमराज जी नौलखा की धर्मपत्नी श्रीमती परमेश्वरीदेवी की कुक्षी से श्री खेतराम जी का जन्म हुमा । श्री खेतराम जी अभी नव मास के ही थे कि पिताश्री का स्वर्गवास हो गया । चाचा ब्रह्मचारी शंकरदास जी तथा माता श्रीमती परमेश्वरीदेवी ने बालक का पालन पोषण किया ।
शिक्षा थोड़ी होने पर भी उर्दू भाषा के अच्छे लेखक, प्रस्तावों की ड्राफ्टिंग करने, तनजीम के लिये प्लानिंग बनाने में आपने विशिष्ट योग्यता प्राप्त की थी । उर्दू के सुलेख तो छापेखाने के सुलेख को भी मात करते थे । दिसम्बर १९४२ ई० में नारोवाल ( पंजाब ) ( वर्तमान में पाकिस्तान ) में आपको श्री आत्मानन्द जैन महासभा पंजाब के अधिवेशन का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया । उस समय आपका अध्यक्षीय भाषण "दिल की तड़प" आपके विचारों का दर्पण, सामाजिक व धार्मिक सूझ-बूझ का परिचय, योग्यता और संगठन का जीता-जागता प्रमाण है । उसे आज भी पढ़ने से नवीनता, दृढ़ता और उत्साह के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं ।
आपने १६ वर्ष की आयु में कारोबार शुरू किया और पचास वर्ष तक भरपूर अनथक पुरुषार्थ से उसे चारचाँद लगा दिये । मात्र इतना ही नहीं परन्तु सारे नगर, प्रदेश और समाज में भी आपने उचित और उच्चतम स्थान प्राप्त किया ।
आप वर्षों तक श्री आत्मानन्द जैनमहासभा पंजाब के महामंत्री रहे । पाकिस्तान बनने के बाद जब पंजाब प्राणाधार, पंजाब केसरी, युगवीर, जैनाचार्य श्री विजयवल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने महासभा का पुनर्गठन किया तब भी प्रापको महामंत्री बनाया गया । श्राप और लाला बाबूराम जी एम० ए० एल० एल० बी० की जोड़ी जैनजगत में प्रसिद्ध थी ।
श्राप ३५-४० वर्षों तक पंजाब जैनसमाज से, इनकी शिक्षण संस्थानों से मोर हस्तिनापुर तीर्थ से, जीरा श्रीसंघ और स्थानीय संस्थानों के साथ सम्बन्धित रहे । श्वेतांबर जैनउपाश्रय ट्रस्ट जीरा के आप जन्मदाता हैं। लहरा में गुरु आत्मकीर्ति स्तम्भ के निर्माण में आपका योगदान वशेष रूप से कुशलता का परिचय है ।
जीरा में गोहत्या के विरुद्ध आंदोलन में श्रापने तन मन धन से सेवा की। हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्राप कट्टर पक्षपाती थे । स्थानीय सेवासमिति के जन्मदाता तथा अनथक कार्यकर्ता थे
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