Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 640
________________ लाला गुज्जरमल जी ५६१ श्वेतांबर मंदिर के आप ट्रस्टी हैं । चार वर्षों से इस मंदिर के जीर्णोद्वार कराने में आजकल एक कर्मठ उपप्रधान के रूप में संलग्न हैं । ५. अंबाला में बच्चों को जैनधर्म के शिक्षण के लिए प्राप स्वयं धार्मिक पाठशाला स्थापित करके सक्रिय शिक्षण दे रहे है । नित्य प्रतिक्रमण करना, रात्री भोजन तथा कन्दमूल का श्रापका सारा परिवार त्यागी है । लाला गुज्जरमल जी ओसवाल नाहर गोत्रीय आप होशियारपुर पंजाब निवासी थे । सोना-चाँदी - जवाहरात का व्यापार करते थे । उन दिनों पंजाब में श्वेतांबर जैन मूर्तिपूजक श्रावकों का प्रायः कोई घर नहीं था । मात्र ढूँढक पंथियों के ही घर थे । श्राचार्य गुरुदेव श्री विजयानन्द सूरि ( श्रात्माराम ) जी के उपदेश से यहाँ कई परिवार श्वेतांबर मूर्तिपूजक धर्मानुयायी बन गये । लाला गुज्जरमल जी भी इसी सद्धर्म के उपासक हो गये । गुरुदेव की कृपा तथा संद्धर्म के प्रताप से लाला गुज्जर मल जी का व्यापार दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की उन्नति करता चला गया । धन की वृद्धि के साथ ही श्रापकी धर्मश्रद्धा और विश्वास भी उत्तरोत्तर वृद्धि पाता गया । गुरुदेव के उपदेश से लाला गुज्जरमल जी ने होशियारपुर में मुहल्ला भाबड़ियां (वर्तमान में बाजार शीशमहल) में श्वेतांबर जैनमंदिर का निर्माण कराया और इसके साथ ही जैन उपाश्रय और धर्मशाला का भी निर्माण कराया । इस बहुत विशाल मंदिर की विशेषता यह है कि इसका सारा शिखर स्वर्ण पत्रों से जड़ा हुआ है। कहते हैं कि इस पर एक हजार तोला सोना मढ़ा हुआ है। यह मंदिर सारे भारतवर्ष के जैनमंदिरों से इस दृष्टि से अद्वितीय है । इस मंदिर के साथ काफी जमीन भी है और होशियारपुर में सबसे ऊँची इमारत है । इस मंदिर की प्रतिष्ठा भी प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरिजी ने कराई थी । इस मंदिर में मुख्य रूप से पाँच बड़ी जिनमूर्तियाँ पाषाण की हैं । जब इन मूर्तियों को गुजरात में पंजाब से लाने का निश्चय किया गया था तब यह निर्णय किया गया था कि इन पांचों में से मूलनायक रूप में श्री वासुपूज्य भगवान की प्रतिमा को ही विराजमान किया जावेगा । मूर्तियों के पंजाब में पहुँच जाने के बाद निर्णय बदल दिया गया और सहस्रफणा पार्श्वनाथ की मूर्तिको मूलनायक रूप में स्थापित करने का निश्चय किया गया । चारों मूर्तियां मंदिर जी के ऊपर आसानी से चढ़ा ली गईं। पर वासुपूज्य भगवान की प्रतिमा बहुत प्रयास करने पर भी टस से मस नहीं हुई । गुरु महाराज को स्वप्न में वासुपूज्य भगवान की यह प्रतिमा दिखलाई दी और प्रभु प्रतिमा ने कहा कि भूल गये अपने ( मुझे मूलनायक बनाने के) वायदे को ! यह क्या हो रहा है । इस पर गुरु महाराज ने श्रीसंघ के समक्ष स्वप्न की बात को दोहराया। फिर क्या था, श्री वासुपूज्य को मूलनायक रूप ही स्थापित करने का सर्वसम्मति से निश्चय कर लिया गया । तत्पश्चात् तीन चार श्रावकों ने मिलकर जब वासुपूज्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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