Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 642
________________ लाला दौलतराम जी ५४३ विनती की। अनेक अन्य नगरों की भी विनतियां थीं। बोली बोली गई। आपने सर्वोच्च बोली लेकर पंजाब पधारने की विनती को स्वीकार कराया। मिति फाल्गुन सुदि ५ वि० सं० १९७८ को जब गुरुदेव (वल्लभविजय) जी ने होशियारपुर में प्रवेश किया था तब लाला जी ने आपके सामने गुरु पूजा में सच्चे मोतियों के साथिये पर एक सौ सोना मोहरें चढ़ाई थीं (एक सोना मोहर एक तोले वजन की) और सोना मोहरों से ही सरवारना (न्योछावर) किया था। अगले वर्ष जब गुरुदेव ने होशियारपुर में चतुर्मास करने के लिये प्रवेश किया था तो लाला जी ने प्रापका शाहाना प्रवेश कराया था। इस चतुर्मास में गुरुदेव ने जब पंजाब में जैन गुरुकुल की स्थापना का उपदेश दिया तब लाला जी की माता जी ने अपने तन के पहने हुए सब जेवर उतारकर इस फंड में दे दिये । आप के अनुकरण में उपस्थित महिलाओं ने भी अपनी-अपनी भावना के अनुसार जेवर दिये । यह गुरुकुल ई० स० १९२४ में गुजरांवाला में स्थापित किया गया। एक दिन प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि जी से आपके पितामह लाला गुज्जरमल जी तथा लाला नत्थूमल गद्दिया ने प्रश्न किया कि-'गुरुदेव ! क्या किसी प्राचार्य की उनके जीवन काल में भी प्रतिमा स्थापन करने का अवसर आया है ?" गुरुदेव ने फरमाया-'हां, राजा कुमारपाल ने अपने गुरु प्राचार्य हेमचन्द्र सूरि की प्रतिमा की स्थापना उनके जीवन काल में ही पाटण में की थी। तब लाला गुज्जरमल जी ने जयपुर के कारीगरों को बुलाकर प्राचार्य श्री विजयानन्द सरि की उनके पूरे कद की बैठी हुई प्रतिमा को बनवाकर प्राचार्य श्री के जीवन काल में ही होशियारपुर के अपने निर्माण कराये हुए जिनमंदिर में प्रतिष्ठत कराई। सारे भारत में यह एक ही ऐसी मूर्ति है जो गुरुदेव के जीवितकाल में स्थापित की गई थी। लाला दौलतराम जी ने भगवान की रथ यात्रा के लिए एक हजार तोले चाँदी का रथ बनवाया जिस पर सोने का काम भी है। इस पर आज भी भगवान की रथयात्रा निकाली जाती है। लाला जी ने होशियारपुर से श्री केसरियानाथ जी का यात्रा संघ भी निकाला था । इसी मंदिर की ऊपर की मंजिल में एक मूर्ति कलिकुंड पार्श्वनाथ की भी है। यह प्रतिमा अपनी इच्छा से इस मंदिर में आई हुई है। मूर्ति आने की घटना इस प्रकार बनी थी। लाला गज्जरमल जी की पत्नी को स्वप्न पाया कि कलकत्ता में रायबहादुर बदरीदास जी मुकीम के मंदिर में हम (श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ की प्रतिमा) विराजमान हैं। कलकत्ता से होशियारपुर हम पाना चाहते हैं । हम इस समय उस मंदिर में अमुक स्थान पर विराजमान हैं। रायबहादुर बदरीदास भी जौहरी थे और लाला जी भी जौहरी थे इसलिए दोनों को प्रापस में अत्यन्त घनिष्ठता थी। लाला जी जब कलकत्ता गये तब रायबहादुर से स्वप्न की बात कही। यह सुन कर रायबहादुर तथा लाला जी स्नान करके मंदिर जी पहुंचे तथा देखते हैं कि कलिकूड पार्श्वनाथ की वह प्रतिमा जहाँ विराजमान थी उस प्राले से सरक कर बाहर आई हई है। यह देख कर रायबहादुर ने यह प्रतिमा सहर्ष लाला जी को दे दी और लाला जी खशी-खशी इस प्रतिमा को होशियारपुर में ले आये और अपने इस मंदिर की ऊपर की मंजिल के पाले में विराजमान कर दी। यह प्रतिमा आज भी बड़ी चमत्कारी है। इस प्रतिमा की लगातार चालीस दिन तक पूजा कोई विशिष्ट भाग्यशाली ही कर पाता होगा। इस समय लाला गुज्जरमल जी के इस जिनमंदिर की व्यवस्था होशियारपुर श्री श्वेतांबर जैन मूर्तिपूजक संघ करता है और उसी के सुपुर्द कर दिया गया है। जो श्वेतांबर जैनमंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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