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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
हस्तिनापुर में पूरा चतुर्मास मौन रह कर-एकासने में आधा किलो दूध से १७-१७ घंटे केवल "नमो अरिहताणं" का एक करोड ४० लाख जाप सम्पूर्ण किया।
आर्थिक समस्या :-दिल्ली रूपनगर के मुखियाओं की कृपा दृष्टि से प्रायः हर यात्रासंघ में सम्मिलित होने और तीर्थ परिचय की सेवा का लाभ मिलता रहा। 'तीर्थ परिचय' विषयक तीन-चार पुस्तकें भी लिखी हैं।
लाला मंगतराम अंबाला प्रापका जन्म मालेरकोटला में ई० स० १८६२ में हुआ। छोटी आयु में ही माता-पिता का साया सिर से उठ गया। आपका पालनपोषण आपके मामा के परिवार में अम्बाला शहर के जिस परिवार के एक सदस्य लाला गोपीचन्द जी एडवोकेट थे, उनकी देख रेख में हमा। आपके
जीवन पर बाबू गोपीचन्द जी के जीवन की ऐसी छाप पड़ी कि एक कुशल जौहरी होने के साथ साथ आपका जीवन धर्मप्रेम और शिक्षाप्रचार में रचा रहा। फलस्वरूप प्राचार्य श्री विजय वल्लभ सरि जी महाराज की कृपा से अंबाला में श्री आत्मानन्द जैन कालेज की स्थापना हुई। उस कालेज के लिये धन संग्रह तथा बिल्डिग निर्माण कराने की सारी जिम्मेवारी आपने अपने ऊपर लेनी स्वीकार की। आज यह कालेज वटवृक्ष के समान फलता-फूलता जो विद्यमान है वह लाला मंगतराम जी की अनथक सेवा का ही परिणाम है। आप इस कालेज के अन्तिम श्वासों तक प्रधान रहे।
मालेरकोटला के श्री आत्मानन्द जैन कालेज, हाई स्कूल की प्रबन्धक कमेटी के पाप सदस्य रहे। श्री प्रात्मानन्द जैन
गुरुकुल पंजाब गुजराँवाला प्रादि अनेक जैन शिक्षणसंस्थानों के पाप सदस्य थे। श्री आत्मानन्द जैन महासभा पंजाब की कार्यकारिणी के भी पाप सदस्य रहे।
_श्री हस्तिनापुर जैन श्वेतांबर तीर्थ समिति की कार्यकारिणी के भी आप सदस्य थे। इस तीर्थराज से अन्तकाल तक आपका गाढ़-अगाध प्रेम रहा है। यहां तक कि अन्तिम समय में भी आप दिल्ली में इस तीर्थ की कार्यकारिणी की मीटिंग में शामिल होने जा रहे थे परन्तु जा न पाये क्योंकि हृदयगति बन्द हो जाने से आपकी जीवन लीला समाप्त हो गई।
श्री विजयकुमार दूगड़ अंबाला
आप अंबाला निवासी स्व. लाला गंगाराम जी के दत्तक पौत्र तथा लाला बनारसीदास जी के दत्तक पुत्र है। आपका जन्म अमृतसर में लाला चुनीलाल जी दूगड़ के घर पुत्र के रूप में हुप्रा और वहां से अंबाला में गोद आये।
आपने श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब गुजराँवाला में शिक्षा पायी है। आपके जीवन पर लाला गंगाराम जी, लाला चूनी लाल जी व श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल के जैनधर्म के दृढ़ संस्कार हैं। इसलिए आप जैनधर्म और समाज की सेवा में सदा रुचि रखते आ रहे हैं।
१. लगभग ३५ वर्षों से सदस्य रूप से श्री हस्तिनापुर तीर्थ की सेवा करते आ रहे हैं। २. श्री प्रात्मानन्द जैनकालेज अंबाला की कार्यकारिणी के सदस्य रूप भी आपने ३० वर्ष तक
सेवा की है। ३. श्री प्रात्मानन्द जैन महासभा पंजाब के सदस्य, कोषाध्यक्ष प्रादि पदों पर रहकर दस वर्ष सेवा की है। ४. अंबाला शहर के सुपार्श्वनाथ जैन
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