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श्रा अमृतकुमार दूगड़
__ अमृतकुमार द गड़ जेन-देहली ___ कहते हैं कि मनुष्य के पतन अथवा उत्थान का कारण उसकी परिस्थितियां, संगत व वातावरण ही होते हैं। ऐसा तो संभव है कि-दूषित वातावरण में पड़कर मानव अपनी मनुष्यता एवं सच्चरित्रता को गंवा बैठता है और योग्य एवं शुद्ध-पवित्र वातावरण में पड़कर धार्मिक-सच्चरित्र
शुद्ध खान-पान वाला एवं योग्य मनुष्य के रूप में उभरता है। परन्तु-जव एक व्यक्ति प्रतिकूल वातावरण में भी अपने आपको सच्चरित्र-धार्मिक एवं शुद्ध खानपान की प्रवृत्ति वाला बनाकर रखे-हम उसे एक विलक्षण व्यक्ति ही कहेंगे।
२१ मई १६४१ को जन्मे श्री अमृतकुमार दूगड़ ने जब १८ वर्ष की आयु में भारतीय वायुसेना में भर्ती होकर देश व धर्म के प्रति सेवा भाव रखते हुए मिलिट्री के वातावरण में प्रवेश किया तो घर के बुजुर्ग लोग ही नहीं अपितु सारे जैन भाइयों को आश्चर्य हुआ कि हीरालाल दूगड़ शास्त्री जी का पुत्र तथा परिवार का सदस्य मिलिट्री के अभक्ष्य खानपान के वातावरण में किस प्रकार अपने आपको बचायेगा।
परन्तु एक विलक्षणता कहिए या संस्कार-प्रापने अपने अमृतकुमार दूगड़ जैन प्रतिकूल वातावरण में होते हुए भी लद्दाख जैसे पर्वतीय-बर्फीले
____स्थानों पर भी अपने आपको शुद्ध शाकाहारी बनाए रखा। मदिरा धूम्रपान, मांसाहार आदि अपवित्र व अभक्ष्य वस्तुओं का पूर्ण रूप से बहिष्कार किया। कई बार ऐसे अवसरों पर-जब कि संपूर्ण वातावरण मांसाहारी एवं मदिरापान करने वालों का होता था, अापके (अकेले) खानपान के लिए शुद्ध शाकाहारी भोजन की व्यवस्था नहीं हो सकती थी या अभक्ष्य पदार्थ खाने व पीने पर मजबूर किया जाता था। तब आपने कई दिनों तक मात्र दूध आदि लेकर या भूखे रहकर भी इन पदार्थों का संपूर्ण त्याग किया तथा कमांडिंग आफिसर को मजबूर होकर आपके लिए शाकाहारी भोजन की व्यवस्था करनी पड़ती थी।
उस समय भी जब कि १६६५ व १६७१ की लड़ाइयों में पाकिस्तान ने लद्दाख, जम्मू आदि पश्चिम-उत्तर बार्डर पर हमला करके भारतीय सीमाओं पर अपना कब्जा करने का स्वप्न देखा, आप लद्दाख, जम्मू व चंडीगढ़ से दिन रात अपने फौजी भाइयों के साथ क्षतिग्रस्त हवाई जहाजों को पुनः लड़ने योग्य बनाकर लड़ाई पर भेजते रहे और अंत में दोनों बार भारत की विजय
१५ साल देश की सेवा में व्यतीत करने के बाद २ नवंबर १६७४ को आपने वायुसेना से पेंशन सहित सेवा निवृति पाई है और आजकल आपका निवास देहली शाहदरा में है।
__आपकी धर्माराधना तथा प्रवृत्ति को जो रुकावट मिलिट्री के वातावरण से थी-उसके समाप्त हो जाने से-अब आपका समय नियमित रूप से नित्य नियम, पूजा पाठ एवं त्याग, तपस्या नादि धर्माराधना में व्यतीत होता है। नित्य नियम व पूजा पाठ के बगैर अाप अन्न जल ग्रहण नहीं
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