Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 632
________________ श्री सन्दरलाल जी जैन ५८३ प्रतिभा के धनी स्वर्गीय लाला श्री सुन्दरलाल जी जैन "प्रतिभा स्कूल कालेज या यूनिवर्सिटी की देन नहीं होती, वह तो जन्मजात होती है और ऐसी प्रतिभाशालिता का प्रमाण ऐसे प्रतिभाशालियों के महान् कार्य ही होते हैं।" यह उक्ति स्व० लाला सुन्दरलाल जी पर सोलह आने चरितार्थ होती है। आपकी धर्मनिष्ठा, योग्यता, विद्वत्ता एवं कर्मकुशलता अपने पिता श्री मोतीलाल जी से वरदान के रूप में प्राप्त हुई थी। लाहौर में १५-२-१६०० में जन्म लेकर आप २३-१-१६७८ के दिन देहली के स्वर्ग सिधारे । आपकी फर्म "मोतीलाल बनारसी दास' का नाम पुस्तकों के क्षेत्र में विदेशों तक प्रसिद्ध है । प्राप संस्कृत, प्राकृत, इंगलिश, उर्दू, हिन्दी, गुजराती प्रादि भाषाओं के जानकार थे और तान्त्रिक अनुसंधान के क्षेत्र में रूचि रखते थे। धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र की दृष्टि से आप श्री आत्मानन्द जैन महासभा उत्तरी भारत, श्री आत्मानन्द जैन कालेज कमेटी अम्बाला, श्री हस्तिनापुर तीर्थ प्रबन्धक कमेटी, श्री आत्मानन्द जैन सभा रूप नगर, श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ सोसायटी वाराणसी, श्री प्रात्मवल्लभ जन स्मारक शिक्षण-निधि मादि अनेकश: संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर रहकर समाज-सेवा का पुनीत अनुष्ठान करते रहे हैं। पंजाब केसरी युगवीर श्रीमद् विजय वल्लभ सरीश्वर जी महाराज के चरणों में आपको अनन्य श्रद्धा थी और आप उनके तेजस्वी व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थे। देव-गुरु-भक्ति आपके महान् व्यक्तित्व की अभिन्न अंग थी। श्री प्रवीणकुमार जैन लाला खरायती लाल जी के सुपुत्र लाला देवराज जी जैन मालिक बी० के बूलन मिल्ज लुधियाना के सुपुत्र की प्रवीणकुमार बचपन से ही होनहार बालक थे आत्मवल्लभ जैनघामिक पाठशाला में निरंतर चारवर्ष तक धार्मिक शिक्षा प्राप्त कर जैनप्राज्ञ उपाधि प्राप्त की थी। बचपन से ही होनहार थे। कालेज की पढ़ाई के साथ-साथ व्यापार की भारी जिम्मेवारी भी प्रात्म प्रेरणा से सम्भालकर परिवार का हाथ बटाने लगे थे। आप सुन्दर व्यक्तित्व, मधुरभाषी, मिलनसार, व्यवहार कुशल, तुरत निर्णय वाली विलक्षण बुद्धि के धनी थे। और धर्म पर दृढ़ आस्था रखते थे। o Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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