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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म लाला मोतीशाह जी ओसवाल गद्दहिया गोत्रीय लाला मोतीशाह जी स्यालकोट नगर की स्थानकवासी समाज के प्राजीवन प्रधान रहे । पाप नगरपालिका के सदस्य प्रानरेरी मजिस्ट्रेट तथा पंजाब के जैन समाज में एक गण्यमान्य रहीस थे । स्यालकोट नगर के हर कोने में पाप की अचल सम्पति थी। पाकिस्तान बन जाने पर नगर में सब से अधिक नकसान आप के परिवार को हुआ। स्यालकोट में मस्लिमली गियों ने जब जैन मुहल्ले पर हल्ला बोल दिया तो उन्हें रोकने के लिये आप के मकान पर ही मोर्चा कायम किया गया था। गोली का जबाव गोली से दिया गया । मुसलमानों के इस अाक्रमण को एक दम असफल बना दिया गया था।
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इस मोर्चे में आपके छोटे भाई लाला खजानचीलाल गोली लगने से वीरगति को प्राप्त हुए। बहुत बड़े परिवार के साथ पाकिस्तान से निकल कर दिल्ली में आकर आबाद हुए । पाप का देहांत ७६ वर्ष की आयु में दिल्ली में हुआ ।
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धर्मनिष्ठ श्रीयुत लाला गंगारामजी लाला गंगाराम जी अम्बाले शहर के निवासी थे । वे पहले स्थानकवासी थे स्वर्गवासी १००८ श्री मद्विजयानन्द सूरिजी (आत्माराम जी) महाराज जब ढूंढक धर्म छोड़कर शुद्ध जैन धर्मानुयायी हो गए तब जो श्रावक उनके अनुयायी हो गये थे उन श्रावकों में लाला गंगाराम जी भी एक मुख्य थे।
धर्मप्रेम इन्हें बचपन ही से था मंदिर बनवाने के काम में उन्हें बड़ी दिलचस्पी थी। सामाना, रोपड़ और अम्बाले के मंदिर प्रायः उन्हीं की देखरेख में बने थे । मुलतान का मंदिर भी तैयार होते समय कई बार जाकर देख पाए थे । मुल्तान के मंदिर की प्रतिष्ठा के मौके पर तो इन्होंने बहुत ज्यादा सहायता की थी। इसलिए कृतज्ञता दिखाने के लिए मुल्तान के श्रीसंघ ने एक स्वर्णपदक इन्हें भेंट में दिया था ।
अम्बाले में कोई उपाश्रय नहीं था। इन्होंने आश्रय के लिए अपना एक मकान दे दिया । अम्बाले में जब प्रतिष्ठा हुई तब इन्होंने चार पाँच दुकानें और एक तबेला मंदिर जी को भेट कर दिया । अम्बाले के मंदिरजी का प्रबंध मुख्यतया सब इन्हीं के हाथ में था।
हस्तिनापुर तीर्थ क्षेत्र कमेटी के ये सभापति थे । धार्मिक कार्यों में ये जहाँ बुलाये जाते थे वहीं तत्काल ही पहुंच जाते थे।
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