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धर्मनिष्ठ श्रीयुत लाला गंगाराम जी
ये जैसे धर्मप्रेमी थे वैसे ही विद्याप्रेमी भी थे । अम्बाले के प्रात्मानंद जैन विद्यालय में इन्होंने एक खासी रकम दी थी। इतना ही नहीं अपनी वृद्धावस्था में भी विद्यालय के लिए चंदा जमा करने के लिए अम्बाले से एक डेप्युरेशन बम्बई आया था उसके साथ ये पाए थे । आत्मानंद जैन सभा अम्बाले के जब तक ये जीवित रहे पैटरन रहे थे। सारे पंजाब का जनसंध इनकी बात को मानता था । और एक मुरब्बी की तरह इनकी इज्जत करता और पिता की तरह मानते थे। जब महाराज साहिब की तबीयत ठीक नहीं थी, लाला जी ने उनसे पूछा था :- भगवन् श्राप हमें किसके भरीसे छोड़ जाते हैं ?" महाराज साहिब ने फर्माया था :-"मैं तुम्हें वल्लभ के भरोसे छोड़ जाता है।" तभी से वे वल्लभविजय जी महाराज पर असीम श्रद्धा रखने लगे।
आत्माराम जी महाराज के बाद विजयवल्लभस रिजी महाराज पर उनको जितनी श्रद्धा रही उतनी और किसी पर न रही।
का स्वर्गीय आत्माराम जी महाराज के ये अनन्य भक्त थे। उनके कथन को ये प्रभु आज्ञा मानते थे उनका स्वर्गवास सं० १९८२ के अाषाढ़ वदी १४ के दिन लुधियाना में हुआ।
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स्वर्गीय श्री गोपीचन्द जी एडवोकेट अम्बाला शहर
आपका जन्म ई० सन् १८७८ में अम्बाला शहर (पंजाब) में दुग्गड़ प्रोसवाल वश में हुआ । आपके पूर्वज केसरी (ज़िला अम्बाला) से आकर यहाँ बसे थे अतः आपका वंश 'केसरी वाबा' के नाम से प्रसिद्ध है । आपके पिता जी का नाम लाला गोंदामल जी था।
यद्यपि आज से पच्चास वर्ष पहले जैन समाज में शिक्षा का अभाव ही था तथापि आपको उच्च शिक्षा दिलाई गई। आपने मिशन स्कूल अम्बाला शहर तथा फार्मन क्रिश्चियन (मिशन) कालेज लाहौर में शिक्षा प्राप्त की । इसी ईसाई संस्था से जगद्विख्यात् स्वामी रामतीर्थजी जैसे अध्यापकों से कालेज से गणित आदि विषय पढ़ कर बी० ए० पास किया । ग्रेज्युएट होने के पश्चात् अापने वकालत की परीक्षा पास की और अम्बाला शहर में ही आप काम करने लगे।
_एक सुयोग्य वकील होते हुए भी माप प्रायः झूठे मुकद्दमे नहीं लिया करते थे । इसी लिए दूसरे वकील भाई और न्यायाधीश आपकी बात पर पूरा विश्वास किया करते थे और दीवानी के कमीशन का सरकारी काम बहुत कुछ प्रापको ही दिलाया करते थे। किसी झगड़े को निपटाने के लिए कहीं कोई कमेटी बने उसका सभासद आपको अवश्य बनाया जाता था। इसका एकमात्र कारण यह था कि आप थोड़ा बोलते थे, सत्य बोलते थे और सर्वथा निष्पक्ष थे ।
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