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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
(८) किन्तु देश सेवा में जुट जाने के कारण व्यापार और स्वास्थ्य से हाथ धो बैठे। स्वास्थ्य बिगड़ गया और कारोबार समाप्त हो गया।
(९) देश के स्वतंत्र होने से दो वर्ष पूर्व ही स्वतंत्रता का यह सेनानी ई० स० १९४५ में संसार से उठ गया।
लाला दौलतराम जी जैन पट्टी (जि० अमृतसर) निवासी का संक्षिप्त जीवन परिचय ।
आपका जन्म वि० सं० १९४८ में २० मगर-भगुवार-मुताबिक १८६१ ई० में वैरोवाल जि० अमृतसर में लाला फकीरचन्द जी जैन-गोत्र नखत के घर हुआ ।
शिक्षा बी० ए० लाहौर में की। शिक्षा के दौरान में सन्यास जैन दीक्षा लेने की भावना जागृत हुई । परिवार वालों ने येनकेन रोक लिया। पढ़ाई के बाद एक वर्ष 'करों' गाँव में अध्यापक का कार्य किया।
। २५ वर्ष की आयु में शादी हुई । और सन् १९२७ ई० में स्थायी रूप से 'पट्टी' पाकर निवास करने लगे। "माझा स्वदेशी स्टोर का उद्घाटन और संचालन करते रहे।
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(१) श्री प्रात्मानन्द जैनगुरुकुल (पंजाब) गुजरांवाला । (२),
महासभा पंजाब। लाला दौलतराम जी जैन (३) ,
सभा पट्टी के आप सदस्य और बाहोश रहते हुए तीनों संस्थानों की वर्किंग कमेटी के सरगरम सदस्य रहे।
(४) सन् १९४२ ई० में आजादी के परवाने बनकर एक वर्ष मुलतान जेल में रहे ।
(५) सन् १९५२ से १९५८ ई० तक प्राचार्य श्री विनोवा भावे के सर्वोदय के उत्थान मेंभूदान यज्ञ में सेवा करते रहे।
(६) सन् १९५२ से १९६१ ई० तक "कताई मण्डल" संस्था पट्टी जो खादी ग्रामोद्योग 'आदमपुर'(जालंधर) के आधीन थी-उसका निस्वार्थ संचालन करते रहे। वही संस्था १-४-१९६१ ई० को खादी ग्रामोद्योग पट्टी में परिवर्तित हो गई और आप १९७६ तक उसके मंत्री रहे।
संक्षेप में यदि कहना पड़े तो कह सकते हैं कि जैन समाज को, देश को, किसी जैनसंस्था को, पट्टी श्रीसंघ को, नगर के किसी दुखिया को जहाँ भी जब भी आपकी सेवा की आवश्यकता हुईआपकी ओर से सदैव तन-मन और धन से परामर्श-स्नेह और सहानुभूति मिलती ही रही ।
__आपका जीवन बहुत सादा, शरीर सुन्दर, गौरवर्ण, पतला ६। फुट लम्बा, शुद्ध खद्दरधारीउच्च आचार, निर्मल विचार और निरपक्ष हृदय था-इसी कारण केवल श्वेतांबर समाज में ही नहीं अपितु प्रत्येक नगर निवासी के हृदय में आपका स्थान प्रतिस्ठित और लोकमान्य था।
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