Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 616
________________ लाला प्यारालाल जी ( रायसाहब ) ५६७ स्वभाव - १. गुरु वल्लभ के आप अनन्य भक्त थे । आपकी प्राज्ञानों को तीर्थंकरदेव की श्राज्ञा मानकर सदा अपना सर्वस्व भी न्योछावर करने को कटिबद्ध थे । २. यही कारण था कि श्राप श्री को परम गुरुदेव बड़े प्यार से 'रायसाहब' के नाम से सम्बोधित करते थे और गुरुप्रदत्त शुभाशीर्वाद रूप 'रायसाहब' के नाम से ही श्राप सर्वत्र प्रख्यात हो गये । ३. श्री जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ को कार्यकारिणी के श्राप आजीवन सदस्य रहे । ४. श्राप बड़े सरल, उदार, मिलनसार और सुलहकुन थे । अनेकों के झगड़ों को आपने निपटाया । अपने जीवनकाल में आपने श्रीसंघ में सदा संगठन को बनाये रखने में पुरा-पुरा प्रयास रखा । आप जो निर्णय देते दोनों पक्ष उन्हें मान्य रखते थे । आप पर हर कोई को बड़ी श्रद्धा और विश्वास था | अपने परिवार के लिये विरासत १. सदा आप अपने परिवार के बच्चों को यही शिक्षा देते थे कि श्रीसंघ के कार्यों में सदा सहयोगी बने रहना, किसी भी विघटनात्मक कार्यों से दूर रहना । सब २. गुरुवल्लभ की जन्म शताब्दी को खूब शानो शौकत से मनाना, उस शताब्दी कार्यक्रमों में अपनी पूरी शक्ति में तन-मन-धन से सहयोग देना । ( जीवन के अंतिम श्वासों के समय सूचना) ३. धर्म कार्यों में सदा दान देते रहना । पूर्वजन्म के पुण्योदय से सब सुविधायें प्राप्त हुई हैं इसलिये पुण्यकार्यों में सदा तन-मन-धन से सहयोग देते रहना । जिससे अपने परिवार में सदा आनन्द मंगल होता रहेगा । ४. परिवार में एकता को सदा बनाये रखना । कोई ऐसा कार्य न कर बैठना जिसके कारण से विघटन हो । ५. वल्लभ स्मारक के निर्माण कार्यों में हमारा परिवार पूरा-पूरा सहयोग देता रहे । ६. घर में सदाचार, सद्व्यवहार, साधर्मीभक्ति, देव गुरु की सेवा भक्ति सदा कायम रहे ऐसा ध्यान रखना | परिवार का श्राज्ञापालन आपके स्वर्गवास के बाद आपका सारा परिवार संगठित रूप से दिन दुगनी रात चौगनी तरक्की कर रहा है । आप की दी हुई शिक्षा के अनुसार धर्मकार्यों में सदा अग्रसर रहता है। बढ़ चढ़कर सुकृत कार्यों में दान देता हैं । कहने का आशय यह है कि प्रापके परिवार का बच्चा-बच्चा श्रापकी प्राज्ञा का पालन तथा चरणचिन्हों पर सदा सर्वदा चलने के लिये प्रयत्नशील है । आपके सुपुत्र श्री राजकुमार जी तो प्रापकी आज्ञाओं को मूर्तरूप देने में आपसे भी आगे बढ़ गये हैं । वह भी श्राज 'रायसाहब राजकुमार' के नाम से जन-जन के प्रिय हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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