Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 614
________________ लीला रामलाल व ज्ञानचन्द लाला रामलाल और लाला ज्ञानचन्द आप दोनों भाइयों का जन्म पपनाखा जिला गुजरांवाला में लाला पंजाबराय जैन बीसा श्रीसवाल गद्दहिया गोत्रीय के यहाँ हुआ । बाल्यावस्था में ही प्राप के माता-पिता का देहांत हो जाने से श्राप असहाय अवस्था में अपने बहनोई के वहां स्यालकोट चले श्राये । यहाँ आकर श्राप दोनों भाइयों ने अलग-अलग फर्मों में नौकरी कर ली । उन्नति करते हुए धीरे-धीरे आप दोनों भाइयों ने अपने निजी व्यवसाय शुरु किये । लाला रामलाल ने कपड़े की दुकान तथा लाला ज्ञानचन्द ने सराफा ( सोना चाँदी ) के व्यापार की दुकान का श्रीगणेश किया। कुछ वर्षों में ही प्रापने व्यापार में उन्नति करते हुए अच्छी ख्याति प्राप्त की और आर्थिक दृष्टि से भी सम्पन्न हो गए । इस समय स्यालकोट में पाँच सौ घर स्थानकवासी श्रोसवालों लाला रामलालजी के थे । आपका परिवार ही श्वेतांबर जैन मूर्तिपुजक था । धर्माराधन के साधनों का प्रभाव होते हुए भी प्रापकी धर्म पर आस्था बनी रही । ५६५ लाला ज्ञानचन्द जी मार्गी समाज ने उग्र विरोध किया और से सफलता ने चरण चूमें। आपके परिवार में सहयोग दिया। उपाध्याय सोहनविजयजी ने स्यालकोट में चतुर्मास किया तब उन्होंने कुछ नये परिवारों को वासक्षेप देकर श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैनसंघ की स्थापना की उनके चतुर्मास कराने तथा संघ स्थापना के कार्यों में श्राप दोनों भाइयों ने वस्पुपाल - तेजपाल के समान उपाध्यायजी का सहयोग दिया। श्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरिजी के वि० सं० २००३ के स्यालकोट के चतुर्मास में तथा श्री जिनमंदिर के निर्माण एवं प्रतिष्ठा के अवसर पर और साधर्मीभाइयों के आगत स्वागत में दिल खोलकर खर्च किया तथा तन-मन-धन से पूरा-पूरा सहयोग दिया । इस चतुर्मास तथा मंदिर निर्माण के विरुद्ध यहाँ की स्थानक - हर प्रकार से निघ्न-बाधायें डाली, पर गुरुदेव के प्रताप ने इस अवसर पर निर्भयतापूर्वक गुरुदेव के हर कार्य पाकिस्तान बन जाने पर आप दोनों भाइयों के परिवार दिल्ली में आकर आबाद हो गये है । यहाँ श्राकर फिर एक इकाई से व्यवसाय शुरु किया और इस समय पंजाब से भी अधिक समृद्धिशाली हैं । लाला रामलालजी स्वर्गवासों हो गये हैं । Jain Education International लाला रामलालजी के सुपुत्र लाला जगदीशलालजी भी अपने पिता के समान ही उदार एवं धर्मनिष्ठ हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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