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वस्तुपाल तेजपाल
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२१ जैन महामुनियों को महोत्सव पूर्वक प्राचार्य पदवियाँ दिलवायीं उनमें सब खर्चा
स्वयं किया। २००० सोनये त्रांबावती नगरी में सुकृत के कार्यों में खर्च किया । उपर्युक्त दान सूचि से तीन निष्कर्ष निकलते हैं
१-~-वस्तुपाल-तेजपाल दोनों भाइयों ने अरबों-खरबों रुपये खर्च करके देश, राष्ट्र, समाज और जनता के लिए उदारता पूर्वक निस्वार्थ सेवाएं कीं।
२-दोनों भाई परमार्हत जैनधर्मानुयायी होते हुए भी सर्वधर्म समभावी थे। उन्होंने जैनों तापसों, ब्राह्मणों, वैष्णवों, सन्यासियों आदि भारत में बसनेवाले सबधर्म सम्प्रदायों के लिए निःस्वार्थ और उदार भाव से मंदिरों का निर्माण-जीर्णोद्धार, धर्मशालाएं, औषधालये, दानशालाएं तापसाश्रम आदि सार्वजनिक धर्मस्थानों का निर्माण कराया। मात्र इतना ही नहीं मुसलमानों के लिए भी मस्जिदें बनवाईं । सर्वसाधारण जनता के लिए बावड़ियां, कुंए, तालाब, घाट, प्याऊ, विश्रामगृहों का निर्माण कराया। देश और राज्य की सुरक्षा के लिए किलों का भी निर्माण कराया।
३-दोनों भाइयों ने न मात्र अपने राज्य की सीमानों तक ही ये सब सुकृत कार्य किये किंतु सारे भारत में कोई भी ऐसा स्थान बाकी न रहा होगा जहाँ की जनता को उनके सुकृत कार्यों का लाभ न मिला हो ।। पंजाब, सिंध, काश्मीर प्रादि जनपद भी उपर्युक्त धर्मोपयोगी और जनोपयोगी कार्यों से रिक्त नहीं रहे । इन जनपदों में भी इन दोनों भाइयों ने जैनमंदिरोंतीर्थों आदि के नवनिर्माण तथा जीर्णोद्धार तो करवाये ही थे परन्तु हिन्दुनों के मंदिरों का भी निर्माण तथा जीर्णोद्धार कराया था। उदाहरणार्थ-पंजाब में मूलस्थान (मुलतान) में वैष्णवों का महाप्रसिद्ध एक चमत्कारी प्राचीन सूर्यमंदिर भी था जिसके लिये लोगों की यह धारणा थी कि इस मंदिर का अद्भत सामर्थ्य है। इसका मुसलमान आततायी आक्रमणकारियों ने भंग कर दिया था । महामात्य वस्तुपाल ने इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार कराया। इससे इस बात की भी पुष्टि होती है कि इन भाइयों ने उत्तर-पश्चिमी जनपदों-गांधार, काश्मीर, सिंधु-सौवीर तथा पंजाब प्रादि जनपदों में भी सब सुकृत के कार्य अवश्य किये थे।
वस्तुपाल तेजपाल ने छरी पालते १२॥ तीर्थयात्रा के संघ निकाले जिनमें जैनाचार्य, साधु, साध्वियां तथा श्रावक-श्राविकायें हजारों की संख्या में शामिल थे। इन यात्रासंघों का सारा खर्चा दोनों भाइयों ने किया। भारत के शत्रुजय-गिरनार आदि अनेक जैनतीर्थों की यात्राएं की। तेरहवीं यात्रा पूरी न कर पाये क्योंकि बीच में ही वस्तूपाल का देहांत हो गया था। इसलिये १२॥ यात्रासंघ निकालने की बात कही जाती है। एक बार के संध में सात लाख मनुष्य थे इन यात्राओं में करोड़ों रुपये खर्च किये।
इन दोनों ने अनेक बार संघ पूजाएं तथा साधर्मीवात्सल्य भी किये । वस्तुपाल विद्वान भी थे, उन्होंने कई ग्रंथों की रचनाएं भी की।
___ कहने का आशय यह है कि इन दोनों भाइयों की उदारता केवल जैनियों अथवा गुजरातियों तक ही सीमित न थी। उन्होंने प्रत्येक धर्म-जाति वालों के लिये सारे भारत में दानशीलता का 1. दर्भावती की मेघनाथ प्रशस्ति श्लोक ६२ से १११ ।
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