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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
निर्माण कराया और उसमें चौदहवें तीर्थंकर श्री अनन्त जिन की प्रतिमा की स्थापना की।
२ मगल सम्राटों पर जैनधर्म का प्रभाव
२. जगत्गुरु श्री होर विजय सूरि तथा उनका मुनिसंघ विक्रम संवत् १६३६ में जैन श्वेतांबर तपागच्छाचार्य श्री हीरविजय सूरि मुग़ल सम्राट अकबर के निमंत्रण पर आगरा से २४ मील की दूरी पर फ़तेहपुर सीकरी में पधारे। उस समय आपके साथ
आपके शिष्य-प्रशिष्य १ – मुनि विनयहर्ष उपाध्याय, २-श्री शांतिचन्द्र गणि, ३- पंन्यास सोमविनय, ४.-पंन्यास सहजसागर गणि, ५-पंन्यास सिंहविमल, ६-पंन्यास गणविनय, ७-पंन्यास गुणसागर, ८-पंन्यास कनकविजय, ६-पंन्यास धर्मसी ऋषि, १०-पंन्यास मानसागर, ११-पंन्यास रत्नचन्द्र, १२--ऋषि कान्हो, १३--पंन्यास हेम विजय, १४-ऋषि जगमाल, १५-पंन्यास रत्नकुशल, १६--पंन्यास रामविजय, १७-पंन्यास मानविजय, १८-पंन्यास कीतिविजय, १६ --पंन्यास हंसविजय, २०--पंन्यास जसविजय, २१–पन्यास जयविजय, २२–पंन्यास लाभविजय, २३--पं० मुनि विजय, २४-पं० धनविजय, २५-६० मुनि विमल, २६-मुनि जसविजय आदि ६७ मुनि थे ।
अकबर ने आपको विक्रम संवत् १६४० में जगद्गुरु तथा शांतिचन्द्र गणि को उपाध्याय की पदवियों से विभूषित किया । क्योंकि शांतिचन्द्र जी वादिविजेता, शतावधानी और प्रतिभाशाली विद्वान थे। आप दोनों का प्रभाव अकबर पर ऐसा पड़ा कि उसके जीवन को ही पलटा दिया। आपके तथा आपके शिष्यों-प्रशिष्यों के प्रभाव से क्या-क्या जन कल्याणकारी कार्य हुए उनका हम आगे क्रमशः उल्लेख करेंगे।
___ अकबर ने हीरविजय सूरि को रोशन मोहल्ला आगरा में जैनश्वेतांबर मंदिर और उपाश्रय बनाने के लिए ज़मीन भेंट में दी जो श्वेतांबर जैनसंघ के सुपुर्द कर दी गई। जिस पर श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ का जैनश्वेतांबर मन्दिर तथा उपाश्रय का श्वेतांबर जैनसंघ ने निर्माण कराया । उस 1. सुरेन्द्र भावदेव सुरि रास की विक्रम संवत् १७८४ मिगसर सुदि ४ रविवार मूल नक्षत्र को भटनेरगढ (हनुमानगढ़) में रचना की। उपर्युक्त वृतांत इसी रास से लिखा है । इसी रास के कर्ता बड़गच्छीय मुनि जगरूप (यति) हैं । जिन्होने अपनी पट्टावली इस प्रकार लिखी है। पुण्यप्रभ सूरि, पट्टे भावदेव सूरि, तत्पट्टे शीलदेव सूरि, तत्पट्टे वीरदेव सूरि तत्पट्टे सांवलदास सरि, तत्पट्टे हेमहर्ष सूरि, तत्पट्टे शुभकरण (माता रूपादेवी, पिता धनराज श्रीमल जाति) तत्पट्टे बुघधीर सुन्दर शिष्य मुनि जगरूप । (बड़गच्छ की स्थापना विक्रम संवत् ६६४ में हुई। यह निर्ग्रन्थ गच्छ की एक शाखा है-देखें तपागच्छ पट्टावली इसो ग्रंथ में) ।
ग्रंथांक ६०५/६५०२ श्री वल्लभस्मारक जैनग्रंथ भंडार रूपनगर दिल्ली-७)
अकबर ने पंजाब में सामाना, स्यालकोट, रोहतास प्रादि के अनेक किलों को जीतकर अपने अधिकार में कर लिया था । यह भावदेव सूरि के मंदिर निर्माण कराने की घटना अकबर की इस किले की विजय से पहले की है । वि० सं० १६०४ में भावदेव सूरि को जब प्राचार्य पदवी हुई थी तब अकबर पांच वर्ष का था। अत: सामाना में यह अनन्तनाथ का मंदिर उस बादशाह ने निर्माण कराया था जिसका राज्य अकबर से पहले था। तथा अकबर की आज्ञा से इनके शिष्य शीलदेव सूरि ने इसका जीणोद्धार कराया था जिसका उल्लेख हम सामाना के वर्णन में कर पाए हैं। 2. सौभाग्यविजय जी कृत तीर्थमाला में लिखा है कि इस मंदिर की प्रतिष्ठा वि० सं० १६३६ में मानसिंह ने
करवाई। यह पोसवाल श्वेतांबर जैनी था और अकबर का सेनापति था।
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