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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
आप श्री जैनसमाज के सब फिरकों में संगठन के लिये सदा प्रयत्नशील रहे हैं। इसके लिये अ.प सदा ही ऐसे भाव व्यक्त किया करते थे
"होवे कि न होवे परन्तु मेरी प्रात्मा यही चाहती है कि सांप्रदायिकता दूर हो कर जनसमाज एक मात्र श्री महावीर स्वामी के झंडे के नीचे एकत्रित होकर श्री महावीर की जय बोले तथा जैनशासन की वृद्धि लिये जैन विश्वविद्यालय संस्था स्थापित होवे । जिस से प्रत्येक जैन शिक्षित हो और धर्म को बाधा न पहुंचे। इस प्रकार राज्याधिकार में जैनों की वृद्धि हो। सभी जैन शिक्षित हों और भूख से पीड़ित न रहें। शासनदेव मेरी यह भावना सफल करे ।”
स्पष्ट है कि आप मानवकल्याण के लिये सदा जागरुक रहते थे। यही कारण था कि आप जन-जन के हृदय सम्राट तथा लोकमान्य कहलाये ।
महान शिक्षा प्रचारक प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि के सरस्वती मंदिर की स्थापना के अन्तिम आदेश को पूरा करने के लिये आपने शिक्षा के मिशन (उद्देश्य) और योजना को सफल बनाने के लिये जो-जो प्रयास किये वे जगत प्रख्यात हैं और यह बात अधिकारपूर्ण शब्दों से कही जा सकती है कि समस्त जैन समाज में शिक्षा के क्षेत्र में जो रुचि तथा सक्रिय प्रवृत्ति प्रापने दिखाई वह अनन्य और अद्वितीय थी। अन्य किसी भी साधु अथवा गृहस्थ ने ऐसा अदम्य साहस नहीं दिखलाया है। आप श्री ने तीन जैन कालेज, ७ जैन विद्यालय, ७ जैन पाठशालाए, ६ जैन पुस्तकालय, ६ वाचनालय तथा दो जैन गुरुकुल एवं अनेक अन्य संस्थाएं पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में स्थापित की। जिन में विशेषकर १-श्री महावीर जैन विद्यालय बम्बई तथा २-श्री प्रात्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब गुजरांवाला, ३-श्री प्रात्मानन्द जैन डिग्री कालेज अम्बाला विशेष महत्वपूर्ण संस्थाएं रही हैं । आप स्त्री शिक्षा के भी महान समर्थक रहे हैं । स्त्री तथा पुरुष मानव समाज़ रूपी रथ के दो पहिये हैं इसलिये दोनों के समान रूप से उन्नत होने से ही समाज आदर्श बन सकता है ऐसी आपकी दृढ़ मान्यता थी। अतः आपने अनेक शिक्षण संस्थानों को स्थापित किया।
शिक्षण संस्थाएं स्थापित करने का उद्देश्य सरकार की ओर से सर्वत्र शिक्षण संस्थाएं कायम हैं फिर जैन शिक्षण संस्थाएं कायम करने का क्या उद्देश्य है, इसे समझने की भी आवश्यकता है। प्रापका विचार था कि मात्र धार्मिक पाठशालाएं चालू करने से उनमें पढ़ने वाले विद्यार्थी वर्तमान युगीन विज्ञान, डाक्टरी, इन्जीनियरिंग इतिहास, भूगोल-भूस्त र व्यवसायिक, व्यापारिक अनेक भाषाओं, कानून आदि विविध प्रकार की महान् उपयोगी अर्थात् जीवन, समाज एवं राष्ट्रोपयोगी शिक्षण प्राप्त करने से रह जायेंगे जिससे व्यापारिक तथा राजनैतिक क्षेत्र में पिछड़ जायेंगे। मात्र सरकारी शिक्षण संस्थाओं में शिक्षण पाने वाले विद्यार्थी धार्मिक ज्ञान और धार्मिक संस्कारों से वंचित रह जायेंगे। ऐसा होने से अपने प्राचार को पवित्र न रख पायेंगे और प्रात्मस्वरूप तथा प्रात्मविकास की ओर से विमुख हो जावेंगे। अत: जैन संस्थाओं में शिक्षण पाने वाले विद्यार्थी दोनों प्रकार की शिक्षा प्राप्त कर व्यवहारिक तथा प्राध्यात्मिक दोनों शिक्षाओं से लाभान्वित होकर अपनी संस्कृति में कायम रहते
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