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कांगड़ा का ऐयिहासिक चौमासा
स्व० प्राचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि जी की भावना थी कि यह कांगड़ा तीर्थ पंजाब का शत्रुंजय तीर्थ बने । उनकी भावना को साकार करने के लिये कांगड़ा तीर्थ कमेटी की विनती से जैन भारती साध्वी श्री मृगावती जी ठाणा ४ ने वि० सं० २०३५ का वर्षाकालीन चतुर्मास काँगड़ा में करने का साहस किया। साध्वी समुदाय का यहाँ भव्य नगरप्रवेश बहुत ही महत्वशाली था । बम्बई, दिल्ली, लुधियाना, जंडियाला गुरु तथा पंजाब के सभी नगरों से गुरु श्रात्म-वल्लभ के भक्त जय-जयकार करते हुए जिन शासन रत्न के स्वप्न को साकार करनेवाली विदुषी साध्वी जी के सम्मान
बिछा रहे थे । आपके प्रवेशोत्सव में हिमाचल सरकार की ओर से शिक्षामंत्री, स्पीकर, विधानसभा, स्थानीय विधायक एवं उच्च अधिकारियों व नागरिकों ने भी आपका स्वागत किया । यहां विदुषी साध्वी जी महाराज ने साहसिक पग उठाकर तीर्थ की उन्नति तथा उद्धार किया । नवीन जैनमंदिर के निर्माण हेतु इसका शिलान्यास भी कराया। आपके इस चतुर्मास में लगभग ८००० यात्री भारत के दूर-दूर प्रदेशों से तीर्थयात्रा तथा श्रापको वन्दन करने आये जो इससे पहले कांगड़ा कभी नहीं प्राये थे वह भी श्राये । इससे यह भूला-बिसरा प्राचीन तीर्थ प्रकाश में श्राया ।
कड़ा एक पिछड़ा हुआ नगर है, यहां पर एक भी जैनघर नहीं है । साध्वी जी महाराज का चतुर्मास किला की तलहटी में नव-निर्मित जैन श्वेतांबर धर्मशाला में हुआ । साध्वी जी ने यहां आठ मास स्थिरता की । होशियारतुर की दो-चार श्राविकाएं तो सदा यहीं बनी रहीं । यात्रियों के ठहरने, उनके लिये भोजन श्रादि की सब व्यवस्था श्री कांगड़ा तीर्थयात्रा संघ कमेटी होशियारपुर ने की । भोजन सामग्री और इमारत संबंधी सामान सब होशियारपूर से ले जाना पड़ता था । कांगड़ा से होशियारपुर लगभग १०० किलोमीटर है । निकोदर के श्रावक श्री ऋषभदास जी ज्योतिषी खंडेलवाल ने तीर्थ की सेवा में आठ मास यही व्यतीत किए । श्री शांतिस्वरूप जी संचालक, श्री शांतिलाल जी नाहर मंत्री, आदि कर्मठ कार्यकर्त्ताओं की सेवा हर समय श्रर्पित रही है। श्री शांति स्वरुप जी का तो इस चौमासे में तन, मन, धन तथा समय का पूरा-पूरा सहयोग भुलाया नहीं जा सकता। श्री श्रात्मवल्लभ जैन यंगमैन सोसाइटी होशियारपुर का सहयोग भी भुलाया नहीं जा सकता जिसके कर्मठ कार्यकर्त्ता तीर्थकमेटी को बड़ी तनदही से सदा पूर्ण सहयोग देते रहे । यदि सच पूछा जाये तो इनके सहयोग से ही सब व्यवस्था और कार्य निर्विघ्न और सकुशल सम्पन्न हुए ।
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वि० सं० २०३६ में दिल्ली में चतुर्मास
चार वर्ष पहले दिल्ली चतुर्मास में आपने वल्लभस्मारक के लिए भूमि खरीदने के लिये कई अभिग्रह धारण किये थे जिसके फलस्वरुप दिल्ली से करनाल को जानेवाली जी० टी० रोड के २० वें किलोमीटर पर २७००० वर्ग मीटर रूपनगर दिल्ली के श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ द्वारा वल्लभस्मारक केलिये भूमि खरीदी गई थी। इस स्मारक के निर्माण की योजना को सफल बनाने के लिये इस वर्ष आपने अपनी तीन शिष्याओं के साथ रूपनगर - दिल्ली के श्री श्रात्म वल्लभ जैन भवन में चतुर्मास किया है। इसका खातमहूर्त प्रापकी निश्रा में लाला रत्नचन्द जी सवाल गद्दहिया गोत्रीय ( मालिक फर्म श्रार० सी० आर० डी०) दिल्ली वालों द्वारा हो चुका हैं, शिलान्यास ता० २६-११-१६७९ को हुआ है ।
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