Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 598
________________ श्री वीरचन्द राघवजी गाँधी ५४६ प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि और सर्वधर्म सम्मेलन प्रेजीडेंट Bonney ने १८६१ ई० के मार्च-अप्रैल में धार्मिक परिषदों केलिये एक जनरल सभा की स्थापना की तथा John Henry Barrows को उसका प्रधान बनाया गया । स० १८६१ ई० में सब देशों में इसकी प्रारंभिक सुचना भेजी गई । प्रायः सर्वत्र इस विचार का स्वागत किया गया। क्योंकि इससे तुलनात्मक धार्मिक अध्ययन, भ्रांतियों के निराकरण और ऐक्यस्थापना में बड़ी भारी सहायता प्राप्त होने की संभावना थी। कुछ ईसाई पादरियों और टर्की के सुलतान ने विरोध भी प्रकट किया था । धार्मिक परिषद् के उद्देश्यों में इन बातों का उल्लेख किया गया था कि भिन्न-भिन्न धर्मों का विश्व को ज्ञान कराना और यह बताना कि वे अपनी सत्यता किस प्रकार प्रकट करते हैं । सब धर्मों के मानने वालों में भ्रातृभाव और प्रेम के भाव उत्पन्न करना तथा विचार विनिमय से बन्धुता की भावना को दृढ़ करना । भिन्न-भिन्न विद्वानों और पंडितों के . साहित्य, कला, व्यापार प्रादि के संबन्ध में विचार मालूम करना, उनके शिक्षा, श्रम, मादक वस्तूमों के निषेध आदि के विषय में मत मालूम करना । विभिन्न राष्ट्रों को एक सूत्र में बांधकर संसार में शांति स्थापित करने का प्रयत्न करना इत्यादि । इसी महान् परिषद् में भाग लेने के लिये श्री आत्माराम जी (विजयानन्द सूरि) को १६ नवम्बर १८६२ ई० का लिखा हुमा प्रथम निमंत्रण पत्र बम्बई की जैन ऐसोसिएशन की मारफत प्राप्त हुआ उस पत्र में आपकी संक्षिप्त जीवनी और दो फोटो माँगे गये थे और आपसे जैनधर्म का प्रतिनिधित्व करने की प्रार्थना की गई थी। उस समय आप अमृतसर के निकट वैरीवाल गांव (पंजाब) में विराजमान थे । अापके परामर्श से श्री वीरचन्द ने प्रापकी संक्षिप्त जीवनी तथा फोटो भी भेज दिये । साथ ही विवशता भी प्रकट की गई कि “प्रात्माराम जी वृद्धावस्था तथा कुछ अन्य कठिनाइयों के कारण स्वयं उपस्थित नहीं हो सकेंगे । सर्वधर्म परिषद् की ओर से पुनः पुनः अनरोध पत्र पाने पर प्रापने श्री वीरचन्द जी को अपने प्रतिनिधि के रूप में वहां भेजने का निर्णय किया। वीरचन्द ने वहाँ जाना स्वीकार किया। जाने के पूर्व प्रापने श्री वीरचन्द जी को अमृतसर जलाकर अपने पास जैनदर्शन तथा माचार का अभ्यास कराया और श्री वीरचन्द के प्रनरोध से आपने शिकागो प्रश्नोत्तर के रूप में एक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखकर उन्हें दी । प्राचार्य श्री जी ने उन्हें यह भी परामर्श दिया कि वे विदेशों में अपना स्वदेशी वेश ही रखें और नित्यनियम तथा प्राचार में शिथिलता न आने दें। __ श्री वीरचन्द भाई अमेरिका में विश्व की सर्वधर्म-परिषद् का उद्घाटन शिकागो में कोलम्बस हाल में ११ सितम्बर १८९३ ई० को हुआ था और लगातार १७ दिन तक उसकी कार्यवाही चलती रही। २७ सितम्बर मंतिम दिन था। पहले दिन C.C. Bonney ही अध्यक्ष थे। पाप World's Congress Auxiliary के प्रधान थे। जबकि J.H.Barrows धार्मिक परिषदों की जनरल सभा के प्रमुख थे। श्री वीरचन्द जी गांधी जैनधर्म के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित हुए थे। भारत से कुछ और प्रतिनिधि भी गये थे, जिनमें स्वामी विवेकानन्द, पी० सी० मजमदार, मणिलाल जी द्विवेदी भी सम्मिलित थे। गांधी जी का मुख्य भाषण परिषद् के पन्द्रहवें दिन २५ सितम्बर १८९३ ई० को हुआ था। जिसमें 1. Barrows :World's Parliament of Religions Vol. I p. 18. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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