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बापू मथुरादास जी दूगड़
५५६ __ वेशभूषा और रहनसहन-आपकी वेशभूषा राजस्थानी थी। परिवार की महिलानों की वेशभूषा भी राजस्थानी थी । भरावदार चेहरे पर राजपूती लम्बी दाढ़ी तथा लम्बी मूछे मुखमंडल की शोभा को चारचांद लगाते थे । कानों में सोने की बालियां तथा दाहिने कान के ऊपर के छेद में चार इंच का बड़ा सोने का बाला पहनते थे।
__ सामाजिक प्रवृत्ति उपर्युक्त गुणों से प्रभावित होकर गुजराँवाला की जैनसमाज ने आपको वि० सं० १९१५ में चौधरी पद से विभूषित किया जो गुजरात देश के नगर सेठ के पद की तुलना करता था। सारे सामाजिक, धार्मिक पंचायती कार्य आपकी अगवानी में होते थे। सारे नगरवासी फिर वे चाहे किसी भी धर्म. कौम या जाति वाले होते थे आपसी झगड़ों को निपटाने के लिये आपके पास आते थे और जो निर्णय आप देते थे वे सर्वमान्य माने जाते थे। सरकारी कोर्ट भी आपके फैसलों को मान्य रखती थी। यही कारण था कि आप पंजाब में बापूजी (पितामह) के नाम से प्रसिद्ध थे। इस प्रकार १. चौधरी साहब २. बापूजी, तथा ३. बालयाँवाले शाह इन तीनों बहुमान सूचक शब्दों से आप सर्व मान्य थे।
धार्मिक कार्यों में सहयोग तथा दान प्रवृत्ति प्रापका सारा परिवार ढूढक पंथ का अनुयायी था। वि० सं० १८६७ में आपके सारे परिवार ने भी यहां के जैन समाज के साथ श्वेतांबर जैन मूर्तिपूजक धर्म को स्वीकार किया। वि० सं० १९१५ से १९२० तक यहाँ श्री जिनमंदिर का निर्माण होकर उसकी प्रतिष्ठा पूज्य मुनि श्री बुद्धिविजयजी ने वि० सं० १९२० में करवाई। (१) श्री मंदिरजी के निर्माण में, श्री विजयानन्द सूरि जी के समाधिमंदिर के निर्माण तथा प्रतिष्ठा के अवसर पर और वि० सं० १९६५ में श्वेतांबरजैनों के सनातन धर्मियों के साथ शास्त्रार्थ के अवसर पर एवं प्राचार्य विजयानन्द सूरि के स्वर्गवास के अवसर पर और भी अनेक गंभीर, विकट समस्याओं और अवसरों पर आपने श्रीसंघ का नेतृत्व कर आर्थिक, शारीरिक सहयोग तथा बुद्धिबल की सूझ-बझ से संकट मुक्त होने में पूरा-पूरा सहयोग दिया।
(२) विक्रम संवत् १९१५ से लेकर १९६६-जीवन के अन्तिम श्वासों तक श्रीसंघ की कार्यकारिणी सभा के सदस्य रहे । वि० सं० १९१५ से १९६४ तक श्रीसंघ के धार्मिक खातों के कोषाध्यक्ष रहे । (३) गुजराँवाला से रामनगर का छरीपालित यात्रा संघ निकाला।
धामिक जीवन प्रतिदिन जिनपूजा प्रादि षडकर्म, सामायिक, प्रतिक्रमण प्रादि षडावश्यक, किया करते थे रात्रिभोजन का त्याग, प्रात: नवकारसी-पोरिसी का पच्चक्खाण, पर्वतिथियों को सचित आहार का सारे परिवार का त्याग, गोभी बैंगन, गठा, प्याज, लहसुन तथा तम्बाकू आदि नशैले पदार्थों का आज तक सारे परिवार का त्याग । सात व्यसनों का त्याग चला प्रा रहा है। सारे परिवार में आज तक धार्मिक वातावरण विद्यमान है।
जीवन की कुछ विशेषताएं १-सारे नगरवासी आपका बहुत सम्मान करते थे । जब आप बाजार में होकर निकलते थे उस समय बड़े से बड़ा व्यक्ति भी अपनी गद्दी से खड़ा होकर हाथ जोड़कर नतमस्तक हो जाता
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