________________
प्रगुणाश्री जी
५४३
व्याख्यान शैली - सरल, रोचक, हृदयस्पर्शी. भोजस्वी, युक्तिपुरस्सर तथा श्रद्धा, ज्ञान एवं चरित्र की शुद्धि वृद्धि में प्रत्यन्त प्रेरणादाई है ।
स्वभाव - शांत, सरल, विनयी एवं मिलनसार तथा गहनगंभीर है । ३. साध्वी श्री प्रगुणाश्री जी
पट्टी नगर जिला अमृतसर (पंजाब) में लाला मथुरादास जी बीसा प्रोसवाल की सुपत्नी गंगादेवी की कुक्षी से सुभाषरानी का दिनांक १४-६-१६४७ ई० को जन्म हुआ । इसके दो भाई तथा दो बहनें हैं। तीव्र वैराग्य भावना होने से माता-पिता से दुष्प्राप्य श्राज्ञा मिलने पर मिति माघ सुदी तीज वि० सं० २०२१ दिनांक ४-२-१९६५ ई० के दिन १७ वर्ष की आयु में लुधियाना शहर में मुनि श्री शिवविजय जी तथा पंन्यास श्री बलवन्तविजय जी की निश्रा में उन्हीं के करकमलों से बड़ी धूमधाम से दीक्षा हुई और साध्वी जसवंतश्री जी की शिष्या बनी। नाम प्रगुणाश्री रखा गया । पश्चात् जंडियाला गुरु में शांतमूर्ति, जिनशासनरत्न आचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि जी ने बड़ी दीक्षा आश्विन मास में दी । दीक्षा लेने के पश्चात् अपनी गुरुणी जी के साथ ही विचरण कर रही है । चार प्रकरण, तीन भाष्य, कर्मग्रंथ, पंचसंग्रह, कम्मपयूडी, दशवेकालिक, इन्द्रीयपराजय शतक, वीतरागस्तोत्र, विशेषावश्यक भाष्य, प्रवचनसारोद्वार, योगशास्त्र, क्षेत्रसमात्र, वृहत् संग्रहणी, प्रशमरति प्रकरण, ज्ञानसार, संबोध सत्तरी, दानादिकुलक, श्राध्यात्म कल्पद्रुम, अध्यात्मसार, संस्कृत-प्राकृत व्याकरण, संस्कृत काव्य-नाटक आदि, तर्क संग्रह, न्यायमुक्तावली, षड़, दर्शनसमुच्चय, स्याद्वादमंजरी, सम्मति प्रकरण आदि दर्शन शास्त्र, धार्मिक तथा नैयायिक ग्रंथों का अध्ययन कर चुकी है और आगे के लिये भी सदा अध्ययन अनेक भिन्न-भिन्न विषयों का करने की भावना रखती हैं ।
बुद्धि विचक्षण, विद्या व्यसनी तथा स्वभाव विनम्र सरल, तथा विनीत हैं ।
४- साध्वीश्री प्रियधर्मा श्रीजी
जंडियाला गुरू जिला अमृतसर (पंजाब) में लाला किशोरीलालजी बीसा श्रोसवाल की भार्या श्रीमती कमलादेवी की कुक्षी से पुत्री नूतनबाला का जन्म वि० सं० २०१५ में हुमा । ये चार बहनें तथा एक भाई हैं । स्कूल में मैट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त की। अपनी माता जी के मुंह से सुना था कि नूतन की मौसीजी ने जैन साध्वी की दीक्षा ली हुई है और वे बहुत विदूषी हैं । उसके मन में अपनी मौसीजी के दर्शन करने की भावना हुई । अपने माता-पिता के साथ यात्रा करने के लिये पालीताना में आई । यहाँ पर उस समय साध्वी जसवंतश्रीजी भी अपनी शिष्याओं के साथ विराजमान थीं । उनके दर्शन करके उसके मन में बहुत श्रानन्द हुआ । अपनी मौसी साध्वीजी के पास कुछ समय रहने के लिये अपने माता-पिताजी से सानुनय अनुरोध किया । माता-पिता ने उसकी भावना का प्रादर करते हुए साध्वीजी के पास रहने दिया और स्वयं अपने घर को वापिस चले गये । साध्वियों के सानिध्य में रहने से नूतनबाला को वैराग्य हो गया । डेढ़ वर्ष तक साथ में रहकर प्रकरणों, तीन भाष्यों, प्रतिक्रमण आदि का अभ्यास किया और मातापिता से दीक्षा लेने की अनुमति प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की ।"
दीक्षा- भायखला - बम्बई में दिनांक १८ दिसम्बर सन ईस्वी १९७४ के दिन (वि० सं० २०३१ में भागवती दीक्षा ग्रहण की। नाम साध्वी श्रीप्रियधर्मा रखा गया और साध्वी श्रीजसवंत
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
.
www.jainelibrary.org