Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 563
________________ ५१६ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म मुनि श्री प्रकाशविजय जी के अत्यन्त आग्रह से आपने श्री आत्मानन्द जैन बालाश्रम हस्तिनापुर की सेवा केलिए वहां के सुपरिन्टेंडेंट का कार्यभार संभाला और वहां की व्यवस्था को अपने हाथ में लिया। संस्था दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की करने लगी। छात्रों में धार्मिक वृत्ति जागृत हुई। किन्तु संस्था के संचालक आपको देर तक न रख पाये और आपने विवश होकर संस्था से त्याग पत्र दे दिया और पुनः दिल्ली में आकर आप अपना दलाली का धन्धा करने लगे। ___ आचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि का वि. स. २०२४ का चतुर्मास श्री आत्मानन्द जैन भवन रूपनगर दिल्ली में था। तब आपकी वैराग्य भावना ने ऐसा रंग जमाया कि सपरिवार दीक्षा लेने को तैयार हो गये। वि. स. २०२४ मिति मार्गशीर्ष सुदि १० के दिन बड़ौत नगर जिला मेरठ (उत्तरप्रदेश) में आपने अपने सारे परिवार जिनशासन रत्न, शांतमूर्ति, प्राचार्य श्री विजयसमुद्र सूरि से दीक्षा ग्रहण की। जिसका विवरण इस प्रकार हैगृहस्थ नाम साधुनाम आयु संबंध गुरु १-श्री चिमनलाल मुनि अनेकान्तविजय ४५ वर्ष स्वयं विजयसमुद्र सूरि २-श्रीमति राजरानी साध्वी अमितगुणाश्री ४० वर्ष पत्नी साध्वी सुभद्राश्री ३---श्री विलायतीराम मुनि नयचन्द्रविजय ५५ वर्ष चाचा पं० जयविजय ४-चि० अनिलकुमार मुनि जयानन्दविजय १३ वर्ष पुत्र मुनि अनेकांतविजय (जन्म चैत्र वदि १० वि. स. २०१० सोमवार) ५---चि० सुनीलकुमार मुनि धर्मधुरेन्द्र विजय ११ वर्ष पुत्र मुनि अनेकांतविजय (जन्म फाल्गुन सुदि ७ वि. सं. २०१२ सोमवार) ६-चि० प्रवीणकुमार मुनि नित्यानन्द विजय वर्ष पुत्र मुनिश्री अनेकांतविजय (जन्म द्वि. श्रावण वदि ४ वि. सं. २०१५ रविवार) मुनि श्री अनेकान्तविजय जी दीक्षा लेने के बाद तपस्या करने में जुट गये। १-बीकानेर के चौमासे में ५१ उपवास, २-लुणावा के चौमासे में ६१ उपवास तथा ३-बम्बई के चतुर्मास में ६३ उपवास क्रमशः वि. स. २०२५, २०२६, २०२७ में किये । सब तप चौविहार और मौन की प्रतिज्ञा सहित सलंग किये । अंतिम तपस्या के पारने के बाद आपका बम्बई में स्वर्गवास हो गया। आपके तीनों पुत्र बालमनि सतत विद्याध्ययन, ज्ञानार्जन में संलग्न रहते हैं। छोटी उम्र में ही आप की योग्यता तथा विद्वता प्रशंसनीय है। आप बाल त्रिपुटी के नाम से प्रख्याती प्राप्त हैं। आचार्य श्री विजयइन्द्रदिन्न सूरि के गुरुकुलवास में रहकर आप तीनों सब प्रकार की प्रगति में अग्रसर हैं । आशा की जाती है कि आप लोग आगे चलकर पंजाब धरा को धर्मामृत से सिंचन करने में कोई कसर उठा नहीं रखेंगे और गुरु वल्लभ की भावनाओं को चारचांद लगाकर स्वपर का कल्याण करेंगे। मुनि श्री विशुद्धविजय ___ जंडियाला गुरु जिला अमृतसर (पंजाब) में बीसा प्रोसवाल लोढ़ा गोत्रीय श्री खज़ानचीलाल ने वि. स. १९८३ में बिनोली जिला मेरठ के जिनमंदिर की प्रतिष्ठा के समय आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि से दीक्षा ग्रहण कर उन्हीं के शिष्य बने । नाम मुनि विशुद्धविजय रखा गया। प्राप अपने गुरु के जीवन प्रसंगों का उर्दू भाषा में आजीव संकलन करते रहे । भाप का स्वर्गवास हो चुके कई बर्ष हो गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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