Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 583
________________ ५३४ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म केन्द्र सरकार द्वारा प्रदत्त अनुमति प्रादेश No. 1.1.78-M-31371 Government of India Archaeological Survey of India Mantoo Building Rajbagh, . Shrinagar. Dated the 6.11.1978 The Secretary, Shri Swetamber Jain Kangra, Tirath Yatra Sangh, Hoshiarpur (Punjab) Sub : Worship in the Jain temple in Kangra Fort. Sir, With reference to your letter No. nill dated 30.10.1978 on the subject cited above I am to inform you that worshippers can worship in the temple between 7 A.M to 12 P.M. and 6 P.M. to 7 P.M. daily as requested by you. The concerned officer is being instructed accordingly. Your faithfully __Sd/- (H. K. Narain) Superintending Archaeologist (२) इस चतुर्मास में आपके उपदेश से किले की तलहटी की समतल भूमि पर श्रीजैन श्वेतांबर संघ की तरफ से भव्य जैनधर्मशाला का निर्माण किया गया है। इस धर्मशाला के लिये भूमि स्व० लाला मकनलालजी मुन्हानी (गुजरांवालिया) दिल्ली निवासी ने प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरिजी के उपदेश से खरीदकर श्री जैन श्वेतांबर संघ को भेट स्वरूप दी थी। (३) इसी चतुर्मास मे आपके उपदेश से इसी धर्मशाला के प्रागंण में श्री जैनश्वेतांबर मंदिर के निर्माण हेतु इसका शिलान्यास लाला रिखबदास जी बीसा मोसवाल गद्दहिया गोत्रीय सराफ़ होशियारपुर निवासी (मालिक फर्म प्रार० सी०, पार० डी०) ने ता० १० फरवरी सन् ईस्वी १९७६ शनिवार को किया। तपागच्छीय प्राचार्य श्री विजयइन्द्रदिन्न सूरि की निश्रा में शिलान्यास का विधि-विधान किया गया । प्राचार्य श्री बटाला नगर (पंजाब) के यात्रासंघ के साथ यहाँ पधारे थे। इस अवसर पर साध्वी श्री निर्मलाश्री जी भी अपनी शिष्यानों सहित यात्रा संघ के साथ पधारी थीं। (४) इसी अवसर पर प्राचार्य श्री विजयइन्द्रदिन्न सूरि की निश्रा में उपस्थित चतुर्विध जनसंघ द्वारा जैनभारती साध्वी श्री मृगावती जी को-“कांगड़ा तीर्थोद्धारिका", एवं “महत्तरा" की पदवियां प्रदान की गई। इस अवसर पर विभिन्न संस्थानों की तरफ से साध्वी जी को महत्तरा पदवीं के उपलक्ष में चादरें भेंट की गईं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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