Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 564
________________ गणि श्री जन कविजय ५१७ गणि श्री जनक विजय जी महाराज आचार्य श्री समन्तभद्र ने भगवान महावीर के तीर्थ का स्वरूप बताते हुए उसे जिन विशेषणों से सूविभूषित किया है उनमें एक है 'सर्वोदयम्'-अर्थात् सब का--प्राणी मात्र का उदय या उत्कर्ष करने वाला। वर्तमान युग में महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमों को सक्रिय रूप से प्रचारित करने वाले सन्त विनोबा भावे ने आज इस शब्द को भारत के कोने-कोने में पहुंचा दिया है । भगवान महावीर के पथ के पथिक प्रायः जनसंतों ने शोसनसेवा और जैनधर्म को सीमा क्षेत्र में आबद्ध रखा है। कुछेक श्रमणों ने भगवान महावीर के सन्देश को जनता जनार्दन तक पहुंचाने का प्रयास किया और कर रहे हैं । उन में गणि श्री जनकविजय जी का नाम विशेष महत्त्वपूर्ण है। आपका जन्म वि० सं० १९८२ मिति जेठ वदि ५ सोमवार के दिन जिला भरूच (गुजरात) के जम्बूसर नामक ग्राम में हुआ । पिता श्री डाह्या भाई और माता श्रीमती तारा बहन धार्मिक संस्कार सम्पन्न सदाचारी व्यक्ति थे । बालक के जन्म के कुछ समय बाद ही वे शिशु को लेकर मुनिपुंगव शांतमूर्ति श्री हंसविजय जी के पावन करकमलों से वासक्षेप प्राप्त करने के लिए बड़ोदा गये । शिशु के कांतियुक्त मुख के मस्तक की रेखाओं को देख कर मुनिवर की अन्तरात्मा से ध्वनि परिस्फुरित हुई 'यह बाबा (गुजराती में बच्चे को बाबा कहते हैं) बड़ा होकर दीक्षा लेगा।' उनकी भविष्यवाणी अक्षरशः सत्य सिद्ध हुई । आज वह बाबा (बच्चा) अंबाला जिले की ग्रामीण जनता केलिये सचमुच बाबा (पंजाबी भाषा में दादा, बजुर्ग, पूजनीय सन्त) बन गया पूर्वजन्म के वैराग्य के संस्कार अंकुरित हुए और केवल १८ वर्ष की युवावस्था में वि० सं० २००० मिति मार्गशीर्ष वदि प्रतिपदा को जनकविजय जी की दीक्षा वरकाणा की तीर्थभूमि पर जैनाचार्य श्री विजयललित सूरि जी की छत्रछाया में सम्पन्न हुई । मुनि श्री चतुरविजय जी आपके दीक्षागुरु बने । परिवार में धर्मभावना का स्रोत प्रवाहित था । अापके पूज्य पिता तथा चार बहनें भी साधुमार्ग के पथिक बने । दीक्षा के केवल ११ मास बाद आपके दीक्षा गुरु का स्वर्गवास हो गया। उसके पश्चात् पाप विद्याभ्यास के लिए पंजाबकेसरी भारत दिवाकर, युगवीर प्राचार्य श्री विजयवल्लभ सूरिश्वर जी के चरणों में उपस्थित हुए। उन्होंने बड़ी दीक्षा बीकानेर में वि० सं० २००१ में दी। गुरुदेव के चरणों में आपने परिश्रम और निष्ठापूर्वक संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, व्याकरण, पागम, काव्य, दर्शनशास्त्र आदि का अध्ययन किया। पाप प्राचार्य श्री के वि० सं० २०११ के देवलोक गमन तक उनकी सेवा में रहे । इस अवधि में प्राचार्य श्री की सुधारवादी विचारधारा का आप पर गहरा प्रभाव पड़ा। फलतः आपने रचनात्मक क्षेत्र में उत्साह और निष्ठापूर्वक प्रवेश किया। शिक्षा प्रचार, समाज संगठन, सार्मिक भक्ति, समाज सुधार प्रादि गुरुदेव के मिशन के कार्यों को आपने गति प्रदान की। श्री आत्मानन्द जैन महासभा पंजाब और भारतवर्षीय जैन श्वेतांबर कान्फ्रेंस की प्रवत्तियों का भी मार्गदर्शन किया। नवयुवकों को धार्मिक शिक्षण और संस्कार देने के लिए पंजाबहरियाणा और हिमाचलप्रदेश में प्रथमबार शिविरों का प्रायोजन पाप ने किया। अम्बाला शहर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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