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मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म
विद्यमान चतुर्विध संघ की परिस्थिति और सुरक्षा का एवं शास्त्राज्ञा का विचार करके अनिच्छा होते हुए भी आप ने यह अपवाद ग्रहण किया । और अमृतसर प्रा पहुंचे।
प्राप के शिष्य पंन्यास विकासविजय (पश्चात् प्राचार्य विजयविकास सूरि) तथा इन के शिष्य मुनि हीरविजय जी भी लाहौर (पाकिस्तान) से पहले ही अमृतसर पहुंच चुके थे।
अमृतसर में पहुंचने के बाद मिति प्रासोज सुदि ६ वि० सं० २००४ को प्रवर्तनी साध्वी श्री देवश्रीजी का स्वर्गवास हो गया। ___ आप अपने मुनिमंडल के साथ तथा सब साध्वियां भी अमृतसर से विहार कर मिति चैत्र सुदि २ वि० सं० २००५ को बीकानेर पधारे ।
आप ने बीकानेर से विहार कर राजस्थान, गुजरात, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र तक ग्रामानुग्राम विहार करते हुए वि० सं० २००६ जेठ सुदि ५ को (२६ मई १९५२ ई० को) श्री गोड़ी जी के उपाश्रय बम्बई में प्रवेश किया । अनेकानेक जिनशासन प्रभावना के कार्य करते हए वि० सं० २०१० गुजराती प्राश्विन वदि ११ को बम्बई में पाप श्री का स्वर्गवास हो गया।
आप ने अपने प्रशिष्य श्री समुद्र विजय जी को आचार्य पद से अलंकृत कर अपना पट्टधर बनाया पोर शासननायक बनाकर विशेषकर पंजाब की सार संभाल करने का दायित्व सौंपा।
प्राप श्री के मृतक शरीर का भायखला बम्बई में दाह संस्कार करके चितास्थान पर श्री संघ ने भव्य समाधिमंदिर का निर्माण कर आप की पाषाण प्रतिमा प्रतिष्ठित की।
पाप का शिष्य समुदाय हम लिख पाये हैं कि आप ने १७ वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण करने से लेकर ८५ वर्ष की मायु में स्वर्गवास तक ६८ वर्ष की साधु अवस्था में लगभग आधा समय पंजाब में ध्यतीत किया। प्राचार्य श्री विजयानन्द सुरि की अन्तिम भावना को शिरोधार्य करके जीवन के अन्तिम क्षणों तक पंजाब की सारसंभाल की।
आप के १५ शिष्य थे-(१), मुनि श्री विवेकविजय जी, (२) आचार्य श्री विजयललित सूरि जी (३) उपाध्याय श्री सोहनविजय जी, (४) मुनि श्री विबुधविजयजी, (५) प्राचार्य श्री विजय विद्या सरि जी, (६) मुनि श्री विचार विजय जी, (७) मुनि श्री विचक्षणविजय जी, (८) मुनि श्री शिवविजय जी, () मुनि श्री विशुद्धविजय जी, (१०) प्राचार्य श्री विजयविकासचन्द्र सूरि जी, (११) मुनि श्री विक्रमविजय जी, (१२) मुनि श्री दानविजय जी, (१३) मुनि श्री विशारदविजय जी, (१४) मुनि श्री बलवन्तविजय जी, (१५) मुनि श्री जयविजय जी । इस शिष्य समुदाय में अनेक प्रौढ़ विद्वान हो गये हैं । इन में से नं० २, ३, ४, ५, ६, ८, ६, १४, १५ मुनिराज पंजाबी थे। इन में से प्राचार्य श्री विजयललित सूरि तथा उपाध्याय श्री सोहन विजय जी, आचार्य श्री विजयविद्या सरि, मुनि श्री विचारविजय जी, मुनि श्री शिवविजय जी, मुनि विशुद्धविजय जी, मुनि श्री जयविजय जी पंजाब में भी विचरे और जैनशासन की सेवाएं की हैं । 1. उस समय मात्र गुजरांवाला की ही भयावह स्थिति नहीं थी परन्तु सारे पंजाब और सिंघ,
उत्तर-पश्चिमी सीमाप्रांत के सारे क्षेत्र की ही अत्यंत भयावह स्थिति थी।
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