Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 550
________________ मादर्शोपाध्याय श्री सोहनविजय जो को अाप ने मौन व्रत धारण कर लिया । आयंबिल की तपस्या के साथ आप ने श्री नवपद जी सिद्धचक्र की आराधना भी चालू कर दी और आराधना की पूर्णाहूति कातिक सुदि ५ (ज्ञानपंचमी) के दिन की। अन्तिम चतुर्मास वि०सं० १९८२ का चर्तुमास आप ने गुरुदेव के साथ ही गुजराँवाला में किया। यह आप का अन्तिम चतुर्मास था । आप का शरीर कृश होता गया। कार्तिक सुदी ११ से तो आप ऐसे अस्वस्थ हो गये कि उठ कर बैठने का भी सामर्थ्य न रहा। चातुर्मासिक प्रतिक्रमण भी आपने बड़ी कठिनाई से किया। यहाँ के संघ ने अच्छे-अच्छे वैद्यों-डाक्टरों से आप की चिकित्सा कराई किन्तु रोग बढ़ता ही गया। अन्त में मार्गशीष वदि १४ रविवार को दोपहर के ठीक ११ बजे अापने स्वर्गलोक का रास्ता लिया। आपके चार शिष्य थे-(१) श्री मित्रविजयजी, (२) श्री समुद्रविजय (जिन-शासन-रत्न प्राचार्य विजयसमुद्र सूरि) जी, (३) मुनि सागरविजयजी, (४) मुनि रविविजयजी । इन चारों में से श्री समुद्रविजय जो, और मुनि सागरविजय जी ये दोनों अन्त समय में आपकी सेवा में रहे । अभिनन्दन पत्र आपको पंजाब के अनेक नगरों में भिन्न-भिन्न धर्मानुयायियों ने मानपन दिए। उनमें से यहां कतिपय का नाम निर्देश किया जाता है । (१) सनखतरा निवासी कृष्णदत्त आदि विद्वद्जनों द्वारा संस्कृत में । (२) मसलमानों के पीर साहब (धर्मगुरु) ने अपनी प्रतिज्ञाओं के नामनिर्देश वाला प्रतिज्ञापत्र उर्दू में। ३ --सनखतरा के मुसलमान कसाइयों की तरफ से प्रतिज्ञापत्र, उर्द में। ४-सनखतरा के मुसलमान भाइयों की तरफ से मानपत्र, उर्द में। ५-सनखतरा के निवासी कसाइयों की ओर से मानपत्र, उर्दू में।। ६----पिंडदादनखां के सब धर्मामुयायियों की ओर से मानपत्र, उर्दू में। इत्यादि अन्य भी अनेक मानपत्र, अभिनन्दन पत्र, प्रशस्तिपत्र आपको भेंट किए गए। आदर्श गुरुभक्ति वि. सं. १६६५ में गुजरांवाला में स्वर्गवासी प्राचार्य श्री विजयानन्दसूरि (प्रात्माराम) जी के समाधिमंदिर की प्रतिष्ठा होने वाली थी। इस अवसर पर यहां प्राचार्य विजयकमल सूरिजी उपाध्याय वीरविजयजी, मुनि लब्धिविजय (बाद में प्राचार्य विजयलब्धि सूरि) जी, मुनि ललितविजय (वाद में प्राचार्य विजयललित सूरि) जी आदि १३ साधु विराजमान थे। ढूंढियों के बहकाने-भड़काने से यहां के सनातनर्मियों ने श्री विजयानन्द सूरि द्वारा रचित अज्ञान-तिमिर-भास्कर और जैन तत्त्वादर्श नामक ग्रंथों को असत्य ठहराने के लिए गुजरांवाला के श्वेतांबर जैनसंघ से नोटिसबाजी शुरू कर दी। नगर का बातावरण अति क्ष ब्ध हो उठा और खेंचाव ने भयानक रूप धारण कर लिया। यहां विराजमान सब श्वेतांबर मुनिराजों तथा श्रावकसंघ के दिलों में एक ही बात समा गई कि 'मुनि वल्लभविजय' (आचार्य विजयवल्लभ सूरि) ही इस विवाद में विजय पाने में समर्थ हैं अतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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