Book Title: Madhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Author(s): Hiralal Duggad
Publisher: Jain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi

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Page 551
________________ ५०४ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म उन्हें यहां तुरत बुलाया जावे। उस समय गुरुदेव और आप उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के एक छोटे से गांव खिवाई में विराजमान थे। यह गांव गुजरांवाला से लगभग ४०० मील की दूरी पर है। गुजरांवाला के लाला जगन्नाथ प्रोसवाल (भाबड़ा) मुन्हानी गोत्रीय जो 'नाजर' के नाम से प्रसिद्ध थे वे श्वेतांबरों की तरफ से शास्त्रार्थ संघ के मंत्री थे । आपको गुजरांवाला में बुलाने के लिए उसके साथ प्राचार्य श्री विजयकमल सूरि ने गुरुदेव के नाम खिवाई में बड़ा मार्मिक पत्र दिया। बिनोली वाले लाला मुसद्दीलाल प्यारेलाल के नाम तार और पत्र भी दिए कि वे मुनि वल्लभविजय जी को गुजरांवाला के लिए शीघ्र रवाना कर देवे। सब तारों और पत्रों का यही प्राशय था कि आप शीघ्रातिशीघ्र गुजरांवाला पहुंचे और इस भयावह स्थिति पर काबू पावें । गुरुदेव के साथ प्राप(मुनि सोहनविजय) भी चल पड़े। प्रतिदिन तीस-तीस, चालीस-चालीस मील का नंगे पांव नंगे सिर पैदल विहार करते हुए आप दोनों गुरु शिष्य जेठ मास की कड़कड़ाती गर्मी और धूप में जब धरती तवे के समान तपती थी, केवल धर्म की रक्षा के लिए थोड़े दिनों में गुजरांवाला में प्रा पहुंचे । विहार के कारण आप दोनों गुरु शिष्य के पांव सूज गए, छाले पड़ गये। मारे दर्द के धरती पर पांव रखते ही फोड़े के समान दुखने लगते तो भी गुजरांवाला पधारने पर विजयदेवी ने आपके चरण चूमे। हमारे चारित्रनायक की अन्त तक यही भावना रही कि जैसे भी बने पंजाब के सब नगरोंग्रामों में पहुंचकर वहां की जनता जनार्दन में जैनधर्म की भावना जागृत की जावे। परन्तु आयु ने साथ न दिया। वि. सं. १९७८ से १९८२ तक मात्र पांच वर्षों में पंजाब में जो-जो क्रांतिकारी समाज सुधार, जिनशासन की प्रभावना, अहिंसा धर्म के प्रचार प्रादि अनेक कार्यों को हमारे चारित्रनायक ने किस तन्मयता, दुढ़ता और उत्साह से किया इस बात का यह संक्षिप्त वर्णन पाठकों को आश्चर्यचकित करने वाला है। यदि आप कुछ वर्ष और जीते रहते तो पंजाब की काया पलटकर रख दी होती। सार्वजनिक व्याख्यानों की सूची आपके प्रत्येक स्थान पर सार्वजनिक भाषण होते रहे और उन्हें जनता बड़ी श्रद्धा और भावपूर्वक सुनती थी। यहां पर कतिपय सार्वजनिक (पब्लिक) व्याख्यानों के स्थलों का नाम निर्देश किया जाता है। आप के सब व्याख्यान राष्ट्र भाषा हिन्दी में ही होते थे। बड़नगर, बदनावर, इन्दौर, उदयपुर, सोजत, जूनागढ़, सरदार शहर, डबवाली मंडी, फ़ाजलका बंगला, मुदकी, जीरा, पट्टी, जंडियाला गुरु, सनखतरा, गुजरांवाला, नारोवाल, ज़फ़रवाल, किला सोभासिंह, जम्मू, स्यालकोट, जेहलम, पिंडदादनखां, रामनगर, हाफिजाबाद, लाहौर, लुधियाना, टांडा, उरमड़, मियानी, पसरूर, सामाना, पालेज, इत्यादि अनेक नगरों में आपने सार्वजनिक व्याख्यान दिए थे। चतुर्मास विवरण विक्रम संवत् स्थान प्रदेश विक्रम संवत् स्थान प्रदेश पालीताना ५-- १९६५ गुजरांवाला पंजाब २-१९६२ जीरा पंजाब पालनपुर गुजरात ३-१९६३ ७-१९६७ बड़ौदा ४---१९६४ अमृतसर ८-१९६८ भरुच सौराष्ट्र लधिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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